Tuesday, December 29, 2009

याद ए इमाम हुसैन :जब अंगारे बन जाते हैं फूल

चित्रकूट। राजा यजीद की क्रूरता की कहानी एक बार फिर दोहराई गई। कौम की सलामती के लिये संघर्ष करने वाले इमाम हुसैन को याद कर अकीकतमंदों ने जलने की परवाह न करते हुये अंगारों को फूलों की मानिंद हवा में उछाला। कर्वी के साथ ही तरौंहा, सीतापुर, बरगढ़, मानिकपुर, मऊ के आसपास के क्षेत्रों में इस तरह के मजमें को देखने के लिये रात भर लोग सड़कों पर रहे। मुख्यालय के पुरानी बाजार में ही लगभग आधा दर्जन इमाम बाड़ों के बाहर इस तरह के दृश्य नंगी आंखों के गवाह बने।

रविवार देर रात से शुरु हुआ यह मातमी अलम अलसुबह तक जारी रहा। रात एक बजे के बाद अलावों में आग लगा दी गई। अकीकतमंद नहा धोकर मातमी ढोल और ताशों की आवाजों के साथ इमाम बाडों से निकले और हजारों के हुजूम के सामने जलती हुई आग में अपने जौहर दिखाने के लिये कूद पड़े।
सांसद आरके पटेल बांदा से मुहर्रम मिलकर जैसे ही कर्वी आये। पुरानी बाजार चौराहे पर बज रहे मातमी ढोल की आवाजों से खुद को अलग नही कर पाये। उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों को बधाई भी दी।
जियारत करने के लिये लोग टूट पड़े
अलाव के बाद इमाम बाड़ों से निकले ताजियों को देखने के लिये लोग टूट पड़े। कर्वी, तरौंहा व सीतापुर में हजारों लोग ताजियों के नीचे अपने बच्चों को लेकर निकल रहे थे। काफी लोग रेवडि़यों का प्रसाद भी चढ़ा रहे थे। ताजियों के आसपास लगे हुजूम में नेजा व सवारियां अपने करतब ढोल की आवाजों पर करतब दिखा रहे थे। नाथ बाबा की सवारी में मन्नत मांगने वालों का तांता लगा रहा। सोमवार को दोपहर पुरानी बाजार व तरौंहा के साथ ही अन्य जगहों से उठे ताजिये शाम को धुस के मैदान में मिलाप के बाद सुपुर्दे आव कर दिये गये।

बीता वर्ष:सड़क पर कराहती रही गर्भवती महिलायें

चित्रकूट। भले ही स्वास्थ्य मंत्रालय हो हल्ला मचाकर परिवार कल्याण के कार्यक्रमों की रीढ़ नसबंदी के साथ ही गर्भनिरोधकों के प्रयोग को मुख्य मानकर जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास में लगा हो। वहीं दूसरी तरफ सुरक्षित मातृत्व के लिये जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती माता को स्वास्थ्य केंद्रो पर प्रसव के लिये पैसे भी देता हो पर सरकारी अस्पतालों में चलने वाला यह कार्य अलग ही शक्ल में दिखाई देता रहा। गर्भवती मातायें सड़कों, अस्पताल के गेट पर कराहती बच्चा जनती रहीं और उनकी कराहें जिम्मेदारों के कान तक नही पहुंची। इस साल तो जनसंख्या को घटाने के ज्यादा से ज्यादा प्रयास स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जनसंख्या को बढ़ाते दिखे।
गौरतलब है कि सरकारी आंकड़े वर्ष 2001 में जिले की चित्रकूट। भले ही स्वास्थ्य मंत्रालय हो हल्ला मचाकर परिवार कल्याण के कार्यक्रमों की रीढ़ नसबंदी के साथ ही गर्भनिरोधकों के प्रयोग को मुख्य मानकर जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास में लगा हो। वहीं दूसरी तरफ सुरक्षित मातृत्व के लिये जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती माता को स्वास्थ्य केंद्रो पर प्रसव के लिये पैसे भी देता हो पर सरकारी अस्पतालों में चलने वाला यह कार्य अलग ही शक्ल में दिखाई देता रहा। गर्भवती मातायें सड़कों, अस्पताल के गेट पर कराहती बच्चा जनती रहीं और उनकी कराहें जिम्मेदारों के कान तक नही पहुंची। इस साल तो जनसंख्या को घटाने के ज्यादा से ज्यादा प्रयास स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जनसंख्या को बढ़ाते दिखे।




गौरतलब है कि सरकारी आंकड़े वर्ष 2001 में जिले की जनसंख्या 8 लाख एक हजार नौ सौ सन्तावन थी। सरकारी लिहाज से जनसंख्या वृद्धि दर 34.33 प्रतिशत होने पर प्रतिवर्ष बढ़ी जनसंख्या के हिसाब से इस समय यह संख्या तेरह लाख पार कर चुकी है। वर्ष 01 में लिंग का अनुपात एक हजार पुरुषों पर 898 महिला था जो कि निराशाजनक है पर आल्ट्रासाउंड सेंटरों पर की गई सख्ती का परिणाम अब कारगर रुप में दिखाई देने लगा है। सरकारी सूत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि अब जिले में 935 से ऊपर महिलाओं की जनसंख्या है।



वैसे इस समय जिले में स्वास्थ्य विभाग के वास्तविक हालातों को देखा जाये तो लगातार जांचों के बाद महकमें में हडकंप की स्थिति है। डब्लू एच ओ के साथ ही सुरक्षित मातृत्व व बच्चों के पोषण के लिये स्वयंसेवियों के हस्तक्षेप के बाद ग्रामीण स्तर पर काफी काम इस साल हुआ है। फिर भी जिला स्तर पर चिकित्सकों की कमी और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी व एएनएम व नर्सो की संख्या कम होने से लोगों को स्वास्थ्य सुविधायें पूरे तौर पर नही मिल पा रही हैं।



जिले में कम से कम तीन बार प्रसव पीडा से जूझती गर्भवती महिलाओं की कराहें सड़कों पर सुनी गई। मुख्यालय के पुरानी बाजार और इलाहाबाद रोड़ बैरियल पर दो महिलाओं ने बच्चे जने। जिसमें एक को तो जिला चिकित्सालय से वापस कर दिया गया था। राम नगर में तो सड़क पर बच्चा जनने पर काफी बवाल हुआ था। आक्रोशित लोगों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर तोड़फोड कर जाम लगा दिया था। जिलाधिकारी के हस्तक्षेप और लापरवाही बरतने के आरोप में डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया गया था। नसबंदी की बात की जाये तो नवंबर तक महिलाओं ने डेढ़ हजार व पचास पुरुषों ने कराये।



वैसे विभागीय आंकड़े चाहे जो कुछ भी कहे पर वास्तव में भारत सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के लिये चलाया जाने वाला यह कार्यक्रम जनसामान्य के साथ ही अधिकारियों के खाने कमाने का जरिया साबित हो रहा है। जननी सुरक्षा योजना में तो घालमेल को लेकर तमाम शिकायतें तहसील दिवसों पर आती रहती हैं।
लाख एक हजार नौ सौ सन्तावन थी। सरकारी लिहाज से जनसंख्या वृद्धि दर 34.33 प्रतिशत होने पर प्रतिवर्ष बढ़ी जनसंख्या के हिसाब से इस समय यह संख्या तेरह लाख पार कर चुकी है। वर्ष 01 में लिंग का अनुपात एक हजार पुरुषों पर 898 महिला था जो कि निराशाजनक है पर आल्ट्रासाउंड सेंटरों पर की गई सख्ती का परिणाम अब कारगर रुप में दिखाई देने लगा है। सरकारी सूत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि अब जिले में 935 से ऊपर महिलाओं की जनसंख्या है।
वैसे इस समय जिले में स्वास्थ्य विभाग के वास्तविक हालातों को देखा जाये तो लगातार जांचों के बाद महकमें में हडकंप की स्थिति है। डब्लू एच ओ के साथ ही सुरक्षित मातृत्व व बच्चों के पोषण के लिये स्वयंसेवियों के हस्तक्षेप के बाद ग्रामीण स्तर पर काफी काम इस साल हुआ है। फिर भी जिला स्तर पर चिकित्सकों की कमी और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी व एएनएम व नर्सो की संख्या कम होने से लोगों को स्वास्थ्य सुविधायें पूरे तौर पर नही मिल पा रही हैं। जिले में कम से कम तीन बार प्रसव पीडा से जूझती गर्भवती महिलाओं की कराहें सड़कों पर सुनी गई। मुख्यालय के पुरानी बाजार और इलाहाबाद रोड़ बैरियल पर दो महिलाओं ने बच्चे जने। जिसमें एक को तो जिला चिकित्सालय से वापस कर दिया गया था। राम नगर में तो सड़क पर बच्चा जनने पर काफी बवाल हुआ था। आक्रोशित लोगों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर तोड़फोड कर जाम लगा दिया था। जिलाधिकारी के हस्तक्षेप और लापरवाही बरतने के आरोप में डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया गया था। नसबंदी की बात की जाये तो नवंबर तक महिलाओं ने डेढ़ हजार व पचास पुरुषों ने कराये।
वैसे विभागीय आंकड़े चाहे जो कुछ भी कहे पर वास्तव में भारत सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के लिये चलाया जाने वाला यह कार्यक्रम जनसामान्य के साथ ही अधिकारियों के खाने कमाने का जरिया साबित हो रहा है। जननी सुरक्षा योजना में तो घालमेल को लेकर तमाम शिकायतें तहसील दिवसों पर आती रहती हैं।

नये साल में मिल जायें और भी महिला चिकित्सक

चित्रकूट। साल भर प्रसव पीड़ा को लेकर महिलायें अस्पतालों की दस्तक तो देती रही पर उन्हें अपना इलाज पूरी तरह से कहीं नही मिला यह बात दीगर है कि कभी स्थानांतरित होती चिकित्सकों के कारण तो कभी हालिया बनाये गये मेडिकल केयर यूनिट में तैनात महिला चिकित्सकों की झिड़कियों के कारण उनकी परेशानियां बढ़ती ही रही। स्वास्थ्य महकमें के लिये आने वाला साल एक्सीडेंटल मरीजों के साथ ही महिलाओं के लिये खास होगा क्योंकि अभी आबादी व बीमारी के हिसाब से महिला चिकित्सकों की संख्या जिले में काफी कम है। जिसके कारण महिलाओं को भारी दिक्कतें हैं।
गौरतलब है कि कभी जिला संयुक्त चिकित्सालय में ही महिला चिकित्सालय भी संचालित किया गया था। पुराने जिला अस्पताल की बिल्डिंग में काफी जगह खाली होने के कारण पूर्व सीएमओ डा. आरके निरंजन ने काफी प्रयास कर मेडिकल केयर यूनिट की स्थापना करवाकर यहां पर महिलाओं के लिये अस्पताल खुलवा दिया था। इसके बाद यहां पर कुछ महिला डाक्टरों की नियुक्ति हुई। तीन महिला डाक्टरों में से एक भी महिला डाक्टर पूर्ण कालिक नियुक्त नही हुई। स्वास्थ्य महकमे के काफी प्रयासों के बाद तीन डाक्टर संविदा पर मिली। जिनमें से एक डाक्टर को पिछड़े मोहल्लों के छोटे अस्पताल मे काम करने के लिये लगाया गया। लगभग डेढ़ लाख की आबादी के जिला मुख्यालय और जिले भी के गांवों से आने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी केवल इन्हीं महिला डाक्टरों पर है। अब ऐसे में मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा शासन से बार-बार मांग किये जाने के बाद भी सृजित पदों के सापेक्ष महिला डाक्टरों की तैनाती न होने के कारण लोगों को भारी निराशा है।
मुख्य चिकित्साधिकारी डा. आरडी राम कहते हैं कि हमारे पास महिला चिकित्सक नही हैं फिर भी हम महिलाओं को बेहतर इलाज देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने आशा जताई कि आने वाले साल में और भी महिला चिकित्सक मिलेगी जिससे महिला मरीजों को भी सुविधा होगी। उधर नसबंदी कार्यक्रम के बारे में पूछे जाने पर कहा कि जहां महिलायें नसबंदी कराने के लिये हर साल आगे आती है इस बार विभाग के प्रचार प्रसार का फायदा पुरुष नसबंदी पर हो रहा है। हालिया पांच कैंम्पों में लगभग पांच दर्जन पुरुषों की नसबंदी इस बात का प्रमाण है।

Wednesday, December 23, 2009

मानव बने रहना ही सबसे बड़ा पुरस्कार

चित्रकूट। भले ही गुजरता वक्त किसी की परवाह न करे और हौले हौले 2009 के कदम 2010 तक पहुंच गये हो पर नयी उम्मीदों का यह साल हर अच्छा काम करने वाले व्यक्ति के जीवन में वह क्षण लाये जो उसे आनंदित कर सकें। समाज के हितों में काम करने वाले अधिकतर लोगों के यही विचार हैं।

महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ज्ञानेन्द्र सिंह ने इस अलौकिक स्थान को विश्व पटल पर स्थापित करने के उद्देश्य से एक बड़ा कदम उठाया है। यूनिवर्सिटी आफ थर्ड एज की ओर से यहां फरवरी माह में होने वाले कार्यक्रम में लगभग सौ देशों के विद्वान जुटेंगे। इससे जहां यहां के पर्यटन को बढ़ावा मिलने की दिशा में काफी सार्थक प्रयास होंगे वहीं चित्रकूट का नाम ग्लोबल स्तर पर और ज्यादा ख्याति अर्जित करेगा।
भागवत कथा आचार्य नवलेश दीक्षित कहते हैं कि हर व्यक्ति को एक लक्ष्य बना कर ही योजनाबद्ध तरीके से काम करना चाहिये। लक्ष्यहीन व्यक्ति को कभी सफलता नही मिलती है। शिक्षा, खेल और समाजसेवा के क्षेत्र में काम करने वालों को पहचान कर पुरस्कार देना मानवता है।
शिक्षक आनंद राव तैलंग कहते हैं कि हर विद्यार्थी अपने जीवन के चरमोत्कर्ष को प्राप्त करे यही अभिलाषा है। उन्होंने कहा कि भले ही पुरस्कार व्यक्ति के जीवन के आनंद में वृद्धि करते हो पर कहीं यह क्षण सफलता की अगली सीढ़ी के बाधक न बन जायें इसलिये व्यक्ति को आगे बढ़ते रहना चाहिये। व्यापारी राजेश सोनी आशा जताते हैं कि यहां साल नई उम्मीदें लेकर आयेगा।

Friday, December 11, 2009

बुंदेलखंडी संगीत को आगे ले जाने की ख्वाहिश

चित्रकूट। इंडियन आइडियल के टाप टेन में पहुंचकर बुंदेलखंड का नाम रोशन कर चुके गायक कुलदीप सिंह चौहान का मानना है कि शास्त्रीय संगीत ही संगीत की जड़ है। बगैर इसके किसी भी विधा में गाया जाने वाला गीत सफल हो ही नहीं सकता। जिस संगीत में अपने घरों की खुशबू न हो उसका मतलब भी कुछ नही होता। इसलिए अब वे बुंदेलखंड के संगीत को विश्व स्तर पर ले जाने का प्रयास करेंगे।




मंगलवार को एक कार्यक्रम में आये बांदा निवासी कुलदीप सिंह चौहान ने बातचीत में कहा कि बढ़ती पश्चिमी सभ्यता के चलते पाश्चात्य संगीत हावी होता जा रहा है। आधुनिक पीढ़ी इसे ज्यादा पसंद करती है परंतु यह शौक स्थायी नहीं होता। किसी भी गायक व संगीतकार को शास्त्रीय संगीत की मदद लेनी ही पड़ती है। शास्त्रीय संगीत किसी भी संगीत की प्राइमरी पाठशाला है। बगैर इसमें पढ़े कोई भी तरक्की नहीं कर सकता। कुलदीप ने बताया कि वह संगीत में पीएचडी करने के बाद बुंदेलखंड के गीत संगीत को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाने के लिए काम करेंगे।