Monday, March 28, 2011

खुद अपने हाथों लिख रहे मेहनतकश अपनी तकदीर

क्रासर- सूखी सिंघन नदी में निकला पानी


चित्रकूट, संवाददाता: भय, भूख और भ्रष्टाचार को सहने की बेबसी से जब ग्रामाणों ने आगे निकलकर सोचा तो एक नई इबारत लिख डाली। मानव और पशुओं की सूखती काया को जीवनदान देने का काम खुद अपने ही हाथों कर डाला। बरगढ़ के पास गांव सत्यनारायण नगर के भौंटी कैमहाई के पास सूखी पड़ी सिंघन नदी को एक बार फिर जिंदा कर दिया गया। लगभग साठ मीटर दूरी पर तीन फिट गहरी व सोलह फिट दूरी की नदी को बहते देख जितनी प्रसन्नता गांव वालों को हो रही है उससे ज्यादा प्रसन्नता वहां पर पहुंचे पुलिस अधीक्षक डा. तहसीलदार सिंह को हुई। वे अपने आपको रोक न पाये और खुद ही फावड़ा लेकर श्रमदान करने के लिये जुट गये। इस दौरान काम कर रहे ग्रामीणों में भी काफी उत्साह आ गया और वे भी प्रेरणा गीत गाकर उमंग के साथ काम में जुट गये। इसके बाद पुलिस अधीक्षक ने वहीं पर चौपाल लगाकर ग्रामीणों के साथ बातचीत की। ग्रामीणों ने उन्हें जानकारी दिया कि विकास खंड के छितैनी गांव में पिछले तीन माह से फ्रांस के अलेक्सिस व अमेरिका के जैफ फ्री मैन बरसात के पानी की एक-एकबूंद को बचाने के लिये ग्रामीणों को समझाने का काम कर रहे हैं। वे यहां पर सर्वोदय सेवा आश्रम द्वारा लाये गये हैं। पिछले दिनों जब पानी की कमी के कारण दिक्कतें बढ़ी और पलायन होने लगा तो आश्रम के अभिमन्यु सिंह ने जलपुरूष राजेन्द्र सिंह द्वारा पानी की कमी वाले राजस्थान में सूखी नदी को जिंदा करने की कथा सुनाई। ग्रामीणों में उत्साह भरा कि अगर वे चाहे तो यहां पर भी ऐसा हो सकता है। पानी की कमी के कारण बेबसी का सामना करने वाले मेहनतकशों ने कमर कसी और फावड़ा लेकर नदी में खुदाई प्रारंभ कर दी। देखते ही देखते नदी की सिल्ट हटी और जलस्रोत फूटने लगे। ग्रामीणों के साथ ही सर्वोदय सेवा आश्रम के संतोष, अखिलेश, कमलेश, रीतू, बबलू व भीमसेन आदि तो खुशी के मारे नाचने लगे। ग्रामीणों ने बताया कि पांच गांवों के लोग इस नदी से कभी पानी पीने आया करते थे अब फिर से पशुओं व सिंचाई के लिये पानी मिल सकेगा।
सर्वोदय सेवा आश्रम के मंत्री अभिमन्यु सिंह ने बताया कि अभी तो यह शुरुआत है अब जनसहयोग से बरगढ़ क्षेत्र की नेवादा, कितहाई, मेडना, मौना व मादा नदी को पुर्नजीवित करने का काम किया जायेगा। उन्होंने कहा कि जिलाधिकारी ने सभी नदियों में खुदाई के काम को मनरेगा से करवाने के आदेश दिये है। इससे तो सभी ग्रामीणों में बड़ी आशा का संचार हुआ है पर यहां पर तो पिछले पन्द्रह दिनों में ग्रामीणों ने लगभग साठ मीटर नदी खोद डाली है पर बीडीओ के आने के बाद भी ग्राम प्रधान ने इसे प्रस्ताव में शामिल नही किया है। बल्कि रविवार को ही ग्राम प्रधान काम कर रहे मजदूरों को लालच देकर सड़क बनाने के काम के लिये ले गये हैं।

जल्द ही जिले की हर नदी में होगा पानी

चित्रकूट, संवाददाता: बरदहा, ओहन, गेडुवा व बाल्मीकि के साथ ही जिले की अन्य सभी नदियों पर एक बार फिर सिंघन नदी की तरह ही पानी आने की प्रबल संभावना का जन्म हो चुका है। जहां बरगढ़ इलाके में नेबादा, कितहाई, मेडना, मौना आदि नदियों पर तो लोग खुद ही पहल कर अपने मेहनतकश हाथों से पानी निकालने का काम प्रारंभ करने वाले हैं वहीं जिलाधिकारी ने भी अपनी ओर से सभी नदियों और नालों को पुर्नजीवन देने के लिये मनरेगा से उन्हें मजदूरी दिये जाने के आदेश जारी कर दिये हैं।

हो सकता है कि आने वाली गर्मी में बंधोईन के आगे दम तोड़ चुकी मंदाकिनी को पुर्नजीवन मिल जाये। जिलाधिकारी दलीप कुमार गुप्ता द्वारा मंदाकिनी सहित जिले कीअन्य सभी नदियों और नालों को मनरेगा के द्वारा खुदाई व सफाई कराने के सभी खंड विकास अधिकारियों को दिये गये आदेश के बाद तो लोगों में खुशी का संचार हुआ है।
वैसे एक नहीं लगभग आधा दर्जन नदियों और दर्जनों नालों वाले इस जिले में इधर गर्मी ने दस्तक दी तो उधर गंभीर जल संकट ने अपने पैर फैलाने प्रारंभ कर दिये हैं। लेकिन पेयजल को लेकर हाहाकार मचे इसके पहले ही जिलाधिकारी ने खुद बढ़कर ऐसी पहल कर डाली है जिससे आने वाले में जल संकट को न केवल दूर किया जायेगा बल्कि पेयजल की उपलब्धता को लेकर जिले की दशा और दिशा दोनो बदल सकती है।
मामला जिले के प्रमुख नदी मंदाकिनी के साथ ही अन्य नदियों और नालों की जल धाराओं के टूटने का है। जिलाधिकारी दलीप कुमार गुप्ता ने इसका उपाय सरकारी और
गैरसरकारी दोनो स्तरों पर खोज लिया है। उन्होंने जिले के समस्त खंड विकास अधिकारियों को बैठक कर आने वाले दिनों में पाठा के साथ ही पूरे जिले में आने वाले जल संकट की भयावहता से परिचित कराते हुये कहा कि वे लोग अपने -अपने इलाकों की नदियों और नालों पर मजदूरों से खुदाई करवाना प्रारंभ करवा दें जिससे नदी की सिल्ट के साफ होने के साथ ही दबे पड़े जल स्रोत भी सामने आ सकें।
जिलाधिकारी ने जागरण से बातचीत में कहा कि नदियां जीवनदायिनी हैं। इसलिये ही इन्हें भारतीय संस्कृति में मां का दर्जा दिया गया है। अगर समय रहते इन पर ध्यान नही दिया गया तो ये गंदगी की आगोश में आकर विलुप्त हो सकती हैं। जिलाधिकारी कहते हैं कि मंदाकिनी सहित सभी नदियों और नालों पर खुदाई का काम करवाया जायेगा। सिल्ट साफ होने पर लगभग हर नदी में जलस्रोत अपने आप खुल जायेगे और इलाके से पानी की कमी दूर होगी।







Sunday, March 6, 2011

केंद्र सरकार से चित्रकूट का वैभव बचाने की अपील

 राष्ट्रीय रामायण मेले के 38 वें संस्करण के शाम की विद्वत गोष्ठी विद्वानों ने चित्रकूट को ही समर्पित कर इसके अलग स्वायत्तशाषी राज्य बनाये जाने की वकालत की।

बांदा से आये हिंदी के विद्वान डा. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने कहा कि चित्रकूट की संस्कृति तो सिंधु घाटी की सभ्यता से पुरानी है। इसे काल के अंतराल में बांटने का काम कोई कर ही नही सकता। आवश्कता तो इस क्षेत्र में अभी और उत्खनन के कार्य करके पुराने रहस्यों को उजागर करने की है। उन्होंने अद्भुत, अनोखे और अलौकिक इस परिक्षेत्र को राज्यों की मांग के बीच पिसने के कारण बर्बादी की कगार पर पहुंचने की बात कहते हुये कहा कि चित्रकूट में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश है चित्रकूट सबका है। इसे सबका रहने दिया जाये। केंद्र सरकार इसे सीधे अपने संरक्षण में लेकर इसका समुचित विकास करे तभी पूरे विश्व को यहां के बारे में सही जानकारी मिल सकेगी व उसका फायदा मिलेगा।
उन्होंने कविता के रूप में परिभाषित करते हुये कहा कि 'ऋषि राम रहीम जहां पर पैयस्वनी का जल है, संस्कृतियों के संगम वाला चित्रकूट स्थल है।' यह सृष्टि का सार्वभौमिक महत्व का अरण्य तीर्थ है। इसकी प्राकृतिक संपदा इसकी सौन्दर्य छवियां विश्व में सर्वाधिक मनोहारी है। चित्रकूट की संस्कृति जनवादी लोक व्यापी एवं त्याग तपस्या पर आधारित रही है। सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राचीन पयस्वनी घाटी की सभ्यता या चित्रकूट की सभ्यता अनुसंधान का विषय है। यहां की आग्नेय घाटी ज्वालामुखी, जल उद्गम्य श्रोत, पर्वतों से निकलने वाली जल धारायें झरने सभी कुछ आदिम और नैसर्गिक रूप को अभी भी सुरक्षित हैं। ऐसे में आवश्यकता है चित्रकूट को स्वायत्तशाषी क्षेत्र बना देने की। जो राजनीति से सर्वथा मुक्त हो। जिसका भूगोल, इतिहास, संस्कृति, भाषाई सौहार्द एवं इस धरती में आने वाले विभिन्न संप्रदायों एवं मत-मतान्तरों से ऊपर उठकर एक सर्वव्यापी संस्कृति का स्वर प्राणवान हो सके। चित्रकू ट की संस्कृति जोड़ने वाली है तोड़ने वाली नही, राम राज्य की मूल परिकल्पना लोक तंत्र की अवधारणा के बीच सबसे पहले इस धरती पर अवतरित हुई। जहां राज सत्ता पर चरित्र की विजय हुई जहां राम राज्य मुकुट उतारकर नंगे पांव परिभ्रमण करते हैं जहां आकांक्षाओं के अनुरूप दलितों, नारियों और वनवासियों की पीड़ा को अपनत्व प्रदान करते हैं। यही वह संस्कृति का स्थान है जो चित्रकूट को विश्व के सबसे प्रथम स्वतंत्र और सर्वोपरि महत्व प्रदान करती है।
अयोध्या से पधारे संत फलाहारी महराज ने कहा कि राम दलितों और निर्धनों के सम्बल बनकर चित्रकूट में आये। रामायण मेला के आयोजन के लिये डा. लोहिया ने चित्रकूट को इसलिये चुना कि वे यहां से एक लोक संस्कृति का नया संदेश दे सकें। जब तक जनता का मनोबल ऊंचा नहीं होगा और शोषण से मुक्ति नही मिलेगी तब तक हमारा प्रयास चलता रहेगा।
मेरठ के डा. सुधाकराचार्य ने कहा कि रामेश्वरम की स्थापना में जिन पत्थरों के तैरने का प्रसंग आता है वे वास्तव में पत्थरों को काट-काट कर बीच में पोला कर करके पम्पन पुल के रूप में बनाया गया था। जहा पर बीच में शिलाओं को जोड़कर बनाया गया।
अमरोहा के डा. राम अवध शास्त्री ने कहा कि राम कथा का नया संदर्भ ग्रहण किया जाना चाहिये। लखनऊ की विद्या विदुषी ने लोक गाथाओं में फैले हुये मां सीता के चरित्र को रेखांकित करते हुये कहा कि सीता ने कई बार राम का प्रतिरोध करने का मन बनाया। जब तक नारियों और बेटियों को समान दर्जा नही दिया जाता तब तक रामायण की कथा का कोई मूल्य नही है। अयोध्या से आये डा. हरि प्रसाद दुबे, गौहाटी से डा. देवेन्द्र चंद्र दास, तिरूपति से आये डा. आर उस त्रिपाठी, भागलपुर से आयी डा. राधा सिंह, बांदा के डा. सीताराम विश्वबंधु, बांदा से आये रस नायक, आगरा से डा. सरोज गुप्ता, डा. ओम प्रकाश शर्मा, ग्वालियर श्री लाल पचौंरी, भोपाल से अवधेश कुमार शुक्ला आदि विद्वानों ने अपने विचार रखे।
एक दूसरी विद्वत गोष्ठी में वृन्दावन से आये दामोदर शर्मा, कानपुर से आये डा. यतीन्द्र तिवारी, मेरठ के नरेन्द्र कुमार, चित्रकूट की डा. कुसुम सिंह, डा. प्रज्ञा मिश्र, डा. मानस मुक्ता यशुमति ने भी श्री राम चरित मानस के नायक राम के विभिन्न स्वरूपों को सामने लाने का प्रयास किया।
संचालन डा. सीताराम विश्वबंधु ने किया।



डा. लोहिया की परिकल्पना से भटक गया रामायण मेला

संदीप रिछारिया, चित्रकूट : धर्म दीर्घकालीन राजनीति है। राजनीति अल्प कालीन धर्म। धर्म का काम है अच्छा करें और उसकी स्तुति करें। राजनीति का काम है बुराई से लड़े और उसकी निंदा करे। किंतु जब धर्म अच्छाई न कर केवल स्तुति भर करता है तो वह निष्प्राण हो जाता है और राजनीति जब बुराई से लड़ती नही तो वह कलंकित हो जाती है। पर यह सही है कि धर्म और राजनीति का अविवेकी मिलन दोनो को भ्रष्ट कर देता है। किसी एक धर्म को किसी एक राजनीति से नही मिलना चाहिये। इससे संप्रदायिक कट्टरता पनपती है। यह बातें चित्रकूट में रामायण मेला की कल्पना करने वाले समाजवादी आंदोलन के नायक डा. राम मनोहर लोहिया ने अपने घोषणा पत्र में लिखी थी। घोषणा पत्र में भले ही डा. लोहिया ने इसे राजनीति से सर्वथा अलग बताते हुये साफ तौर पर लिखा था कि रामायण मेले की पृष्ठभूमि में कोई राजनीतिक चाल नहीं है।

उनके शब्द थे कि 'मैं एक बात और स्पष्ट कर दूं कि चित्रकू ट के इस रामायण मेला से दल विशेष का संबंध नही है और न ही मेरी पार्टी सोसलिस्ट पार्टी से। हां सोसलिस्ट कार्यकर्ता जनहित का काम समझकर वैयक्तिक रूप में इसमें विशेष कार्य करें, उसी प्रकार वैयक्तिक रूप में कांग्रेस, कम्युनिष्ट व जनसंघ आदि पार्टियों से सम्बद्ध व्यक्ति भी रामायण मेला को कार्यान्वित करने में रूचि लें और सहयोग करें।'
कम्युनिष्टों से आज तक मेले में सहयोग लेने की कभी जरूरत नहीं समझी गई जबकि यहां के
सांसद और विधायक के पद पर कई बार भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के लोग विद्यमान रहे। जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के विपरीत जिसकी सरकार उसकी खुशामद के रूप मे यहां मामला चलता रहा। कांग्रेस के बाद भाजपा, सपा और बसपा के नेताओं को सरकारों के हिसाब से वरीयता दी गई। पिछले तीन सालों में रामायण मेला बसपा मय ही रहा। कुछ इसी तरह का हाल इस साल भी रहा। उद्घाटन सत्र पर पूर्व स्वागताध्यक्ष पूर्व सांसद भीष्म देव दुबे के पुत्र प्रदुम्न दुबे के अलावा मंच पर बसपा के अलावा किसी दूसरी पार्टी का कोई नेता नजर नहीं आया।
राष्ट्रीय रामायण मेले के 38 साल के सफरनामे पर भी नजर डाली जाये जो इस बात की पुष्टि होती है कि एक बार प्रधानमंत्री के रूप में मोरार जी देसाई तो विदेश मंत्री के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के अलावा राज्यपालों व राज्यमंत्रियों, कुलपतियों ने समय-समय पर उद्घाटन और समापन किया। जबकि सत्ता से अलग रही दूसरी पार्टियों के राजनेताओं और जिला स्तर के नेताओं को भी इस विशेष सम्मेलन में वरीयता नही दी गई। इस बार के आयोजन में उद्घाटन सत्र से लेकर अभी तक के कार्यक्रमों में बसपा नेताओं के अलावा सपा व भाजपा के नेताओं की मौजूदगी उस महामहोत्सव के दौरान बिल्कुल नहीं दिखी जिसे चित्रकूट का विकास का पर्याय माना जाता है।
गौरतलब है कि जब डा. लोहिया ने राष्ट्रीय रामायण मेला का पूरा कार्यक्रम तैयार कर घोषणा पत्र इसके आयोजकों को समर्पित किया था उनके जेहन में इस बात को लेकर बात साफ थी कि आने वाला समय चित्रकूट का होगा। रामायण मेला अगर उत्तरोत्तर प्रगति करता गया तो इससे चित्रकूट का विकास होगा। भौतिक संसाधन बढे़गे और यहां की गरीबी भी दूर होगी। पर क्या वास्तविकता में ऐसा हो पाया है?
सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राजबहादुर यादव, कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष पुष्पेन्द्र सिंह, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष लवकुश चतुर्वेदी व सपा नेता कमल सिंह मौर्या इस मुद्दे पर एक राय होकर कहते हैं कि रामायण मेला से वास्तव में चित्रकूट को एक नई पहचान मिली है पर यह तो अब पूरी तरह से वंशवाद का अखाड़ा बन गया है। यहां साल भर में शादियों, राम व भागवत कथाओं व अन्य आयोजनों के जरिये लाखों की आमदनी होने के बावजूद इसके संचालकों द्वारा मेले के आयोजन के लिये धनाभाव या सरकार की ओर से अनुदान कम मिलने की बात कहना हास्यास्पद लगता है। आयोजक धनाभाव बताकर अच्छे कार्यक्रम निरस्त कर लोगों की भावनाओं पर तुषाराघात कर रहे हैं।

Saturday, March 5, 2011

केंद्र सरकार से चित्रकूट का वैभव बचाने की अपील

राष्ट्रीय रामायण मेले के 38 वें संस्करण के शाम की विद्वत गोष्ठी विद्वानों ने चित्रकूट को ही समर्पित कर इसके अलग स्वायत्तशाषी राज्य बनाये जाने की वकालत की।

बांदा से आये हिंदी के विद्वान डा. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने कहा कि चित्रकूट की संस्कृति तो सिंधु घाटी की सभ्यता से पुरानी है। इसे काल के अंतराल में बांटने का काम कोई कर ही नही सकता। आवश्कता तो इस क्षेत्र में अभी और उत्खनन के कार्य करके पुराने रहस्यों को उजागर करने की है। उन्होंने अद्भुत, अनोखे और अलौकिक इस परिक्षेत्र को राज्यों की मांग के बीच पिसने के कारण बर्बादी की कगार पर पहुंचने की बात कहते हुये कहा कि चित्रकूट में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश है चित्रकूट सबका है। इसे सबका रहने दिया जाये। केंद्र सरकार इसे सीधे अपने संरक्षण में लेकर इसका समुचित विकास करे तभी पूरे विश्व को यहां के बारे में सही जानकारी मिल सकेगी व उसका फायदा मिलेगा।
उन्होंने कविता के रूप में परिभाषित करते हुये कहा कि 'ऋषि राम रहीम जहां पर पैयस्वनी का जल है, संस्कृतियों के संगम वाला चित्रकूट स्थल है।' यह सृष्टि का सार्वभौमिक महत्व का अरण्य तीर्थ है। इसकी प्राकृतिक संपदा इसकी सौन्दर्य छवियां विश्व में सर्वाधिक मनोहारी है। चित्रकूट की संस्कृति जनवादी लोक व्यापी एवं त्याग तपस्या पर आधारित रही है। सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राचीन पयस्वनी घाटी की सभ्यता या चित्रकूट की सभ्यता अनुसंधान का विषय है। यहां की आग्नेय घाटी ज्वालामुखी, जल उद्गम्य श्रोत, पर्वतों से निकलने वाली जल धारायें झरने सभी कुछ आदिम और नैसर्गिक रूप को अभी भी सुरक्षित हैं। ऐसे में आवश्यकता है चित्रकूट को स्वायत्तशाषी क्षेत्र बना देने की। जो राजनीति से सर्वथा मुक्त हो। जिसका भूगोल, इतिहास, संस्कृति, भाषाई सौहार्द एवं इस धरती में आने वाले विभिन्न संप्रदायों एवं मत-मतान्तरों से ऊपर उठकर एक सर्वव्यापी संस्कृति का स्वर प्राणवान हो सके। चित्रकू ट की संस्कृति जोड़ने वाली है तोड़ने वाली नही, राम राज्य की मूल परिकल्पना लोक तंत्र की अवधारणा के बीच सबसे पहले इस धरती पर अवतरित हुई। जहां राज सत्ता पर चरित्र की विजय हुई जहां राम राज्य मुकुट उतारकर नंगे पांव परिभ्रमण करते हैं जहां आकांक्षाओं के अनुरूप दलितों, नारियों और वनवासियों की पीड़ा को अपनत्व प्रदान करते हैं। यही वह संस्कृति का स्थान है जो चित्रकूट को विश्व के सबसे प्रथम स्वतंत्र और सर्वोपरि महत्व प्रदान करती है।
अयोध्या से पधारे संत फलाहारी महराज ने कहा कि राम दलितों और निर्धनों के सम्बल बनकर चित्रकूट में आये। रामायण मेला के आयोजन के लिये डा. लोहिया ने चित्रकूट को इसलिये चुना कि वे यहां से एक लोक संस्कृति का नया संदेश दे सकें। जब तक जनता का मनोबल ऊंचा नहीं होगा और शोषण से मुक्ति नही मिलेगी तब तक हमारा प्रयास चलता रहेगा। मेरठ के डा. सुधाकराचार्य ने कहा कि रामेश्वरम की स्थापना में जिन पत्थरों के तैरने का प्रसंग आता है वे वास्तव में पत्थरों को काट-काट कर बीच में पोला कर करके पम्पन पुल के रूप में बनाया गया था। जहा पर बीच में शिलाओं को जोड़कर बनाया गया।
अमरोहा के डा. राम अवध शास्त्री ने कहा कि राम कथा का नया संदर्भ ग्रहण किया जाना चाहिये। लखनऊ की विद्या विदुषी ने लोक गाथाओं में फैले हुये मां सीता के चरित्र को रेखांकित करते हुये कहा कि सीता ने कई बार राम का प्रतिरोध करने का मन बनाया। जब तक नारियों और बेटियों को समान दर्जा नही दिया जाता तब तक रामायण की कथा का कोई मूल्य नही है। अयोध्या से आये डा. हरि प्रसाद दुबे, गौहाटी से डा. देवेन्द्र चंद्र दास, तिरूपति से आये डा. आर उस त्रिपाठी, भागलपुर से आयी डा. राधा सिंह, बांदा के डा. सीताराम विश्वबंधु, बांदा से आये रस नायक, आगरा से डा. सरोज गुप्ता, डा. ओम प्रकाश शर्मा, ग्वालियर श्री लाल पचौंरी, भोपाल से अवधेश कुमार शुक्ला आदि विद्वानों ने अपने विचार रखे।
एक दूसरी विद्वत गोष्ठी में वृन्दावन से आये दामोदर शर्मा, कानपुर से आये डा. यतीन्द्र तिवारी, मेरठ के नरेन्द्र कुमार, चित्रकूट की डा. कुसुम सिंह, डा. प्रज्ञा मिश्र, डा. मानस मुक्ता यशुमति ने भी श्री राम चरित मानस के नायक राम के विभिन्न स्वरूपों को सामने लाने का प्रयास किया।
संचालन डा. सीताराम विश्वबंधु ने किया।