चित्रकूट। 'भज ले पार करइया का, भज ले पर्वत वाले का' ये कुछ ऐसे उद्धोष हैं जो रविवार की दोपहर से ही धर्म नगरी के परिक्रमा मार्ग पर लगातार सुने जा रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या सोमवार की शाम तक लाखों लोगों की पार कर चुकी है। लोगों का आना और जाना लगातार जारी है। सोमवती अमावस्या पर्व पर पुण्य लूटने की आस्था और समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिये परिक्रमा पूरी करने की होड़ बुंदेलखंड के इसी अलौकिक तीर्थ में देखने को मिलती है। महिला हो या पुरुष, वृद्ध हो या जवान सभी के चेहरे की चमक लाखों लोगों की रेलम पेल में भी विश्वास की ज्योति कम नही होती। परिक्रमा पथ हो या फिर परिक्षेत्र के अन्य स्थान सभी जगहों पर कामतानाथ की जय के नारे तो जोरदारी से सुनाई ही देते हैं वहीं तेल बेचने वालों के अलावा तमाम गृह उपयोगी उत्पाद बेंचने वालों के भी प्रचारों की स्वर लहरियां उनमें मिलकर अलग ही वातावरण प्रस्तुत करती हैं।
सबसे ज्यादा आनंददायक क्षण मंदाकिनी गंगा के किनारे पर दिखाई देता है। जहां पर कड़ी चौकसी के बीच लाखों लोग रामघाट, राघव प्रयाग घाट के अलावा अन्य घाटों पर स्नान करते दिखाई देते हैं। इसके बाद लोगों में चित्रकूट के अधिष्ठाता देव स्वामी मत्स्यगयेन्द्र नाथ को जलाभिषेक करने की होड़ होती है। यहां के बाद लोग पैदल ही लगभग तीन किलोमीटर दूर स्वामी कामतानाथ के पर्वत की परिक्रमा करने के लिये निकलते हैं। तमाम श्रद्धालु तो ऐसे हैं जो लगभग चालीस-चालीस सालों से हर एक अमावस्या पर यहां पर आकर परिक्रमा लगाते हैं।
महोबा जिले के चरखारी से आये लेखपाल संतोष कुमार चौबे बताते हैं कि पिछले पैंतीस सालों से ज्यादा से वे हर अमावस्या पर वे आकर यहां परिक्रमा लगा रहे हैं।
ऐसे ही तमाम और लोग हैं जो यहां हर अमावस्या को आकर परिक्रमा करते हैं तमाम लोग तो अपने निवास स्थान से चित्रकूट तक पैदल आते हैं। कुछ की मनौती होती है तो कुछ जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिये ऐसा करते हैं।
ग्वालियर से आये कैलाश, मीना, राजकुमार व चंद्र मोहन ने कहा कि भले ही वे लोग अपने घरों से पैदल न आ पाते हो पर वे चित्रकूट धाम कर्वी के रेलवे स्टेशन से तो पैदल ही स्वामी कामतानाथ के दरबार में जाते हैं।
एक ऐसा स्थान जो विश्व भर के लोगो के लिये किंवदंतियों कथाओं कथानकों के साथ ही यथार्थ चेतना का पुंज बना हुआ है। प्रजापति ब्रह़मा के तपोबल से उत्पन्न पयस्वनी व मां अनुसुइया के दस हजार सालों के तप का परिणाम मां मंदाकिनी के साथ ही प्रभु श्री राम के ग्यारह वर्ष छह माह और अठारह दिनों के लिये चित्रकूट प्रवास के दौरान उनकी सेवा के लिये अयोध्या से आई मां सरयू की त्रिवेणी आज भी यहां पर लोगों को आनंद देने के साथ ही पापों के भक्षण करने का काम कर रही है।
Showing posts with label तीर्थ में देखने को. Show all posts
Showing posts with label तीर्थ में देखने को. Show all posts
Tuesday, March 30, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)