चित्रकूट। इंडियन आइडियल के टाप टेन में पहुंचकर बुंदेलखंड का नाम रोशन कर चुके गायक कुलदीप सिंह चौहान का मानना है कि शास्त्रीय संगीत ही संगीत की जड़ है। बगैर इसके किसी भी विधा में गाया जाने वाला गीत सफल हो ही नहीं सकता। जिस संगीत में अपने घरों की खुशबू न हो उसका मतलब भी कुछ नही होता। इसलिए अब वे बुंदेलखंड के संगीत को विश्व स्तर पर ले जाने का प्रयास करेंगे।
मंगलवार को एक कार्यक्रम में आये बांदा निवासी कुलदीप सिंह चौहान ने बातचीत में कहा कि बढ़ती पश्चिमी सभ्यता के चलते पाश्चात्य संगीत हावी होता जा रहा है। आधुनिक पीढ़ी इसे ज्यादा पसंद करती है परंतु यह शौक स्थायी नहीं होता। किसी भी गायक व संगीतकार को शास्त्रीय संगीत की मदद लेनी ही पड़ती है। शास्त्रीय संगीत किसी भी संगीत की प्राइमरी पाठशाला है। बगैर इसमें पढ़े कोई भी तरक्की नहीं कर सकता। कुलदीप ने बताया कि वह संगीत में पीएचडी करने के बाद बुंदेलखंड के गीत संगीत को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाने के लिए काम करेंगे।
एक ऐसा स्थान जो विश्व भर के लोगो के लिये किंवदंतियों कथाओं कथानकों के साथ ही यथार्थ चेतना का पुंज बना हुआ है। प्रजापति ब्रह़मा के तपोबल से उत्पन्न पयस्वनी व मां अनुसुइया के दस हजार सालों के तप का परिणाम मां मंदाकिनी के साथ ही प्रभु श्री राम के ग्यारह वर्ष छह माह और अठारह दिनों के लिये चित्रकूट प्रवास के दौरान उनकी सेवा के लिये अयोध्या से आई मां सरयू की त्रिवेणी आज भी यहां पर लोगों को आनंद देने के साथ ही पापों के भक्षण करने का काम कर रही है।
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Friday, December 11, 2009
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