नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति के प्राणाधरभगवान राम दक्षिण-पूर्व एशिया के मुस्लिम देशों की संस्कृति में भी रचे बसे हैं। वहां रामकथा विभिन्न रूपों में प्रचलित है और लोकजीवनसे इतनी गहराई तक जुडी हुई है कि वह उनकी संस्कृति का अभिन्न अंग बन गई है।
दक्षिण-पूर्व एशिया में रामकथा विषय पर शोध कार्य कर रहे साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से अलंकृत संस्कृत के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर डा. सत्यव्रतशास्त्री ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में रामकथा के विभिन्न प्रचलित रूपों, उसके विविध आयामों तथा वहां की लोक संस्कृति में रामायण के महत्व पर यहां विस्तार से बातचीत की। उन्होंने बताया कि म्यांमार, थाइलैंड, मलेशिया, कम्बोडिया, लाओसआदि देशों में रामकथा विभिन्न नामों से प्रचलित है।
थाइलैंड में इसे रामकियनअर्थात् रामकीर्ति,कम्बोडिया में रामकेररामकथा, म्यांमार में रामवत्थुरामवस्तुऔर रामाथग्गियन,मलेशिया में हेकायतश्रीराम श्रीराम कथा तथा लाओसमें फ्रलकफ्ररामयानी श्री लक्ष्मण-श्रीराम कहा जाता है। सभी उदात्तपात्रों के नाम के आगे फ्रयानीश्री लगाना आवश्यक होता है। जैसे फ्रआतिथआदित्य, फ्रचानश्रीचंद्र। इसी तरह उदात्तमहिला पात्रों के नाम के आगे नांग्यानी श्रेष्ठ लगाना जरूरी है। जैसे नांग्सीदासीता।
इस संदर्भ में उन्होंने एक दिलचस्प बात बताई कि दक्षिण पूर्व एशिया के अधिकतर देश बौद्ध या मुस्लिम धर्म के अनुयायी हैं इसलिए मलेशिया की रामायण में रावण को भगवान् शंकर के बजाय अल्लाह से वर मांगते दिखाया गया है। उन्होंने कहा कि इस सिलसिले में यह भी बताना प्रासंगिक होगा कि केवल लाओसमें रामकथा के शीर्षक में श्रीराम के नाम के आगे लक्ष्मण का नाम आता है। इसके अलावा सिर्फ इंडोनेशिया में ही रामकथा के लिए रामायण शब्द का इस्तेमाल होता है। वहां इसे रामायण ककविन,रामायण काव्य कहा जाता है।
एक ऐसा स्थान जो विश्व भर के लोगो के लिये किंवदंतियों कथाओं कथानकों के साथ ही यथार्थ चेतना का पुंज बना हुआ है। प्रजापति ब्रह़मा के तपोबल से उत्पन्न पयस्वनी व मां अनुसुइया के दस हजार सालों के तप का परिणाम मां मंदाकिनी के साथ ही प्रभु श्री राम के ग्यारह वर्ष छह माह और अठारह दिनों के लिये चित्रकूट प्रवास के दौरान उनकी सेवा के लिये अयोध्या से आई मां सरयू की त्रिवेणी आज भी यहां पर लोगों को आनंद देने के साथ ही पापों के भक्षण करने का काम कर रही है।
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