जोधपुर। जोधपुर शहर में लंकाधिपति रावण के वंशजों ने बुधवार को श्राद्ध पक्ष की दशमी को रावण का श्राद्ध किया तथा अमरनाथ मंदिर परिसर में उसकी मूर्ति की विशेष पूजा अर्चना की।
अक्षय ज्योति अनुसंधान केंद्र के सचिव अजय दवेके अनुसार दवे,गोधा एवं श्रीमाली समाज के लोगों ने गत वर्ष स्थापित रावण मंदिर में पूजा-अर्चना की तथा बाद में हमेकरणनाडी पर तर्पण एवं पिंडदान किया। इसके बाद रावण की प्रतिमा एवं उसकी कुलदेवीमां खारानाको खीर, पूडी का भोग लगाया तथा ब्राह्माणों को भोजन कराया।
उन्होंने बताया कि श्रीलंका में राम-रावण युद्ध में रावण के मारे जाने पर उसके वंशज यहां जोधपुर आकर बस गए थे और ये लोग रावण को प्रकांड पंडित एवं विद्वान मानते हुए उसमें अटूट आस्था रखते हैं। हर साल रावण का श्राद्ध भी किया जाता हैं। दशहरा के पर्व पर जहां खुशी मनाई जाती हैं तथा रावण दहन किया जाता हैं वहीं हमारे समाज के लोग इस दिन को सूतक मानते हुए स्नान करते हैं।
श्री दवेने कहा कि लंकाधिपति की सुसराल भी जोधपुर मानी जाती हैं तथा उनकी रानी मंदोदरी का संबंध यहां की राजधानी मंडोरसे माना जाता हैं। उन्होंने कहा कि रावण के प्रति इसी आस्था के कारण ही गत वर्ष अमरनाथ मंदिर परिसर में रावण के मंदिर का निर्माण कराया गया और उसकी पूजा अर्चना की जाती है।
एक ऐसा स्थान जो विश्व भर के लोगो के लिये किंवदंतियों कथाओं कथानकों के साथ ही यथार्थ चेतना का पुंज बना हुआ है। प्रजापति ब्रह़मा के तपोबल से उत्पन्न पयस्वनी व मां अनुसुइया के दस हजार सालों के तप का परिणाम मां मंदाकिनी के साथ ही प्रभु श्री राम के ग्यारह वर्ष छह माह और अठारह दिनों के लिये चित्रकूट प्रवास के दौरान उनकी सेवा के लिये अयोध्या से आई मां सरयू की त्रिवेणी आज भी यहां पर लोगों को आनंद देने के साथ ही पापों के भक्षण करने का काम कर रही है।
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Saturday, May 23, 2009
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