चित्रकूट। पहली बार नाना जी के बिना हुई संस्थान की बैठक में मौजूद सभी सदस्यों की आंखें एक दो बार नहीं बल्कि कई बार भरीं। कुछ तो इतने भावुक हुये कि उनकी आंखों से जल की धारा रुकने का नाम ही नही ले रही थी।
पद्म विभूषण नाना जी देशमुख के त्रयोदशाह के बाद शनिवार को सिया राम कुटीर के बंद कमरे हुई दीनदयाल शोध संस्थान के प्रबंध मंडल की बैठक में सभी ने नाना जी से संबंधित जब अपने संस्मरण सुनाये तो धीरे-धीरे करके सभी की आंखें भर आयी।
नाना जी के साथ सर्वाधिक 64 साल का समय व्यतीत करने वाले देवेन्द्र स्वरुप अपने संस्मरण सुनाते कई बार भावुक हुये पर बाद में उन्होंने कहा कि नाना जी के प्राण चित्रकूट में ही बसते हैं। वे कहीं गये नही बल्कि अब वे समाज की पुनर्रचना के कामों को और भी तेजी से आगे बढ़ाने का काम करेगें।
प्रबंध मंडल की बैठक तो बंद कमरे में हुई और कार्यवाही पूरी तरह गोपनीय रही पर युगानुकूल सामाजिक पुनर्रचना सहयोगी कार्यकर्ता सम्मेलन में जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाह सुरेश सोनी ने अपना संबोधन शुरु किया तो उन्होंने सुबह हुई प्रबंध मंडल की बैठक का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि संस्थान की बैठक में नाना जी के एकात्म मानव दर्शन के आधार पर उनके द्वारा चयनित किये गये पांच सौ गांवों में और भी बेहतर तरीकों से समाज के अंतिम व्यक्ति की खुशहाली के लिये काम किया जायेगा।
संस्थान के प्रबंध मंडल की बैठक में संरक्षक मदन सिंह देवी, अध्यक्ष वीरेन्द्र जीत सिंह, संगठन सचिव अभय महाजन, प्रधान सचिव डा. भरत पाठक, उपाध्यक्ष प्रभाकर राव मुंडले, उपाध्यक्ष नितिन सांवले, शंकर प्रसाद ताम्रकार सहित अन्य सदस्य मौजूद रहे।
एक ऐसा स्थान जो विश्व भर के लोगो के लिये किंवदंतियों कथाओं कथानकों के साथ ही यथार्थ चेतना का पुंज बना हुआ है। प्रजापति ब्रह़मा के तपोबल से उत्पन्न पयस्वनी व मां अनुसुइया के दस हजार सालों के तप का परिणाम मां मंदाकिनी के साथ ही प्रभु श्री राम के ग्यारह वर्ष छह माह और अठारह दिनों के लिये चित्रकूट प्रवास के दौरान उनकी सेवा के लिये अयोध्या से आई मां सरयू की त्रिवेणी आज भी यहां पर लोगों को आनंद देने के साथ ही पापों के भक्षण करने का काम कर रही है।
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Tuesday, March 30, 2010
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