चित्रकूट। भले ही स्वास्थ्य मंत्रालय हो हल्ला मचाकर परिवार कल्याण के कार्यक्रमों की रीढ़ नसबंदी के साथ ही गर्भनिरोधकों के प्रयोग को मुख्य मानकर जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास में लगा हो। वहीं दूसरी तरफ सुरक्षित मातृत्व के लिये जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती माता को स्वास्थ्य केंद्रो पर प्रसव के लिये पैसे भी देता हो पर सरकारी अस्पतालों में चलने वाला यह कार्य अलग ही शक्ल में दिखाई देता रहा। गर्भवती मातायें सड़कों, अस्पताल के गेट पर कराहती बच्चा जनती रहीं और उनकी कराहें जिम्मेदारों के कान तक नही पहुंची। इस साल तो जनसंख्या को घटाने के ज्यादा से ज्यादा प्रयास स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जनसंख्या को बढ़ाते दिखे।
गौरतलब है कि सरकारी आंकड़े वर्ष 2001 में जिले की चित्रकूट। भले ही स्वास्थ्य मंत्रालय हो हल्ला मचाकर परिवार कल्याण के कार्यक्रमों की रीढ़ नसबंदी के साथ ही गर्भनिरोधकों के प्रयोग को मुख्य मानकर जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास में लगा हो। वहीं दूसरी तरफ सुरक्षित मातृत्व के लिये जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती माता को स्वास्थ्य केंद्रो पर प्रसव के लिये पैसे भी देता हो पर सरकारी अस्पतालों में चलने वाला यह कार्य अलग ही शक्ल में दिखाई देता रहा। गर्भवती मातायें सड़कों, अस्पताल के गेट पर कराहती बच्चा जनती रहीं और उनकी कराहें जिम्मेदारों के कान तक नही पहुंची। इस साल तो जनसंख्या को घटाने के ज्यादा से ज्यादा प्रयास स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जनसंख्या को बढ़ाते दिखे।
गौरतलब है कि सरकारी आंकड़े वर्ष 2001 में जिले की जनसंख्या 8 लाख एक हजार नौ सौ सन्तावन थी। सरकारी लिहाज से जनसंख्या वृद्धि दर 34.33 प्रतिशत होने पर प्रतिवर्ष बढ़ी जनसंख्या के हिसाब से इस समय यह संख्या तेरह लाख पार कर चुकी है। वर्ष 01 में लिंग का अनुपात एक हजार पुरुषों पर 898 महिला था जो कि निराशाजनक है पर आल्ट्रासाउंड सेंटरों पर की गई सख्ती का परिणाम अब कारगर रुप में दिखाई देने लगा है। सरकारी सूत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि अब जिले में 935 से ऊपर महिलाओं की जनसंख्या है।
वैसे इस समय जिले में स्वास्थ्य विभाग के वास्तविक हालातों को देखा जाये तो लगातार जांचों के बाद महकमें में हडकंप की स्थिति है। डब्लू एच ओ के साथ ही सुरक्षित मातृत्व व बच्चों के पोषण के लिये स्वयंसेवियों के हस्तक्षेप के बाद ग्रामीण स्तर पर काफी काम इस साल हुआ है। फिर भी जिला स्तर पर चिकित्सकों की कमी और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी व एएनएम व नर्सो की संख्या कम होने से लोगों को स्वास्थ्य सुविधायें पूरे तौर पर नही मिल पा रही हैं।
जिले में कम से कम तीन बार प्रसव पीडा से जूझती गर्भवती महिलाओं की कराहें सड़कों पर सुनी गई। मुख्यालय के पुरानी बाजार और इलाहाबाद रोड़ बैरियल पर दो महिलाओं ने बच्चे जने। जिसमें एक को तो जिला चिकित्सालय से वापस कर दिया गया था। राम नगर में तो सड़क पर बच्चा जनने पर काफी बवाल हुआ था। आक्रोशित लोगों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर तोड़फोड कर जाम लगा दिया था। जिलाधिकारी के हस्तक्षेप और लापरवाही बरतने के आरोप में डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया गया था। नसबंदी की बात की जाये तो नवंबर तक महिलाओं ने डेढ़ हजार व पचास पुरुषों ने कराये।
वैसे विभागीय आंकड़े चाहे जो कुछ भी कहे पर वास्तव में भारत सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के लिये चलाया जाने वाला यह कार्यक्रम जनसामान्य के साथ ही अधिकारियों के खाने कमाने का जरिया साबित हो रहा है। जननी सुरक्षा योजना में तो घालमेल को लेकर तमाम शिकायतें तहसील दिवसों पर आती रहती हैं।
लाख एक हजार नौ सौ सन्तावन थी। सरकारी लिहाज से जनसंख्या वृद्धि दर 34.33 प्रतिशत होने पर प्रतिवर्ष बढ़ी जनसंख्या के हिसाब से इस समय यह संख्या तेरह लाख पार कर चुकी है। वर्ष 01 में लिंग का अनुपात एक हजार पुरुषों पर 898 महिला था जो कि निराशाजनक है पर आल्ट्रासाउंड सेंटरों पर की गई सख्ती का परिणाम अब कारगर रुप में दिखाई देने लगा है। सरकारी सूत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि अब जिले में 935 से ऊपर महिलाओं की जनसंख्या है।
वैसे इस समय जिले में स्वास्थ्य विभाग के वास्तविक हालातों को देखा जाये तो लगातार जांचों के बाद महकमें में हडकंप की स्थिति है। डब्लू एच ओ के साथ ही सुरक्षित मातृत्व व बच्चों के पोषण के लिये स्वयंसेवियों के हस्तक्षेप के बाद ग्रामीण स्तर पर काफी काम इस साल हुआ है। फिर भी जिला स्तर पर चिकित्सकों की कमी और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी व एएनएम व नर्सो की संख्या कम होने से लोगों को स्वास्थ्य सुविधायें पूरे तौर पर नही मिल पा रही हैं। जिले में कम से कम तीन बार प्रसव पीडा से जूझती गर्भवती महिलाओं की कराहें सड़कों पर सुनी गई। मुख्यालय के पुरानी बाजार और इलाहाबाद रोड़ बैरियल पर दो महिलाओं ने बच्चे जने। जिसमें एक को तो जिला चिकित्सालय से वापस कर दिया गया था। राम नगर में तो सड़क पर बच्चा जनने पर काफी बवाल हुआ था। आक्रोशित लोगों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर तोड़फोड कर जाम लगा दिया था। जिलाधिकारी के हस्तक्षेप और लापरवाही बरतने के आरोप में डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया गया था। नसबंदी की बात की जाये तो नवंबर तक महिलाओं ने डेढ़ हजार व पचास पुरुषों ने कराये।
वैसे विभागीय आंकड़े चाहे जो कुछ भी कहे पर वास्तव में भारत सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के लिये चलाया जाने वाला यह कार्यक्रम जनसामान्य के साथ ही अधिकारियों के खाने कमाने का जरिया साबित हो रहा है। जननी सुरक्षा योजना में तो घालमेल को लेकर तमाम शिकायतें तहसील दिवसों पर आती रहती हैं।
No comments:
Post a Comment