तत्यः सत्य और असत्य
संदीप रिछारिया
सोचिये, भारत में मानव जनित नकारात्मकता का आगमन कब हुआ कैसे हुआ और क्यों हुआ। आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह कैसा सवाल है, नया शब्द मानव जनित नकारात्मकता। चलिए स्पष्ट किए देते हैं यह मानव से मानव को दूर करने, किसी व्यक्ति को मानसिक रूप से अपमानित करने का प्रतीक है। नही समझ में आया, बताते है। वास्तव में यह उस मानसिकता का प्रतीक है जो अमीर और गरीब का भेद बताकर मानव को छोटा या बड़ा बताती है। इन मानसिकता के अनुसार हम समर्थ हैं इसलिए कि हमारे पास पैसा है और पैसा से हम ताकत यानि नीति अनीति के लिए श्रम ( अपराध) व वैभव ( विलासिता) खरीद सकते हैं।
नकारात्मकता का विस्तार है धार्मिक
मानव जनित नकारात्मकता वास्तव में उस सोच का परिणाम है जो पूर्णतया धार्मिक है। कोलंबस ने जब अमेरिका की खोज की तो उसे नही मालूम था कि वहां का धर्म क्या है। दो हजार साल पहले ईसा मसीह का प्रादुर्भाव हुआ, उसके पहले पूरा यूरोप यहूदी था। एशिया हिंदू था। 1400 साल पूर्व मुहम्मद साहब के जन्म के पहले मुसलमान धर्म का अता पता नही था। अब सवाल खड़ा होता है कि मैं आपको यह इतिहास क्यों बता रहा हूं।
वैदिक संस्कृति में छिपा उन्नति का बीज मंत्र
भारत वास्तव में हजारों साल पुरानी उस संस्कृति का परिचायक है। जिसे युगों में बांटा गया है। सतयुग, त्रेता, द्वापर व कलियुग। इस समय कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है। सिंधु से हिंदू बनने की प्रकिया के पूर्व हम सत्य सनातन धर्म को मानने वाले थे। इसे वैदिक धर्म भी कहते हैं। काल्पनिक देवताओं के उदभव के पूर्व हम पंचतत्वों के साथ ही जीवित देवताओं की पूजा किया करते थे। आज भी इन देवताओं की पूजा न केवल हिंदू धर्म में बल्कि मुसलमान व ईसाई धर्म में की जाती है। हिंदू सूर्य को तो मुस्लिम चंद्र को आधार मानते हैं। जल को पूजना हर धर्म में आज भी आवश्यक है। क्योंकि इसके बिना किसी भी जीवधारी का जीवन चल नही सकता।
आश्रम व्यवस्था के साथ कर्म के हिसाब से तय थे वर्ण
विभिन्न नदियों व जलश्रोत के अपार भंडार वाले इस देश में हमेशा सुख, शांति और संपन्नता रही है। अगर हम आर्यावर्त के निवासियों की सुख, शांति व सम्पन्नता के बारे में बात करें तो इसकी जड़ जीवन जीने की कला पर छिपी है। आयु के अनुसार बनाए गए मानव को जीवन जीना होता है। यह जीवन खुद के लिए नही बल्कि समाज व राष्ट्र को समर्पित होता था। बच्चे के पैदा होने के बाद उसे 5 वर्ष तक घर में रखा जाता था। 5 वर्ष का होते ही उसे गुरू को सौंप दिया जाता था। उस जमाने में शिक्षण काल के दौरान गुरू यह जांचता था कि बालक की रूचि किस ओर है। अगर शूद्र का बालक शिक्षा की ओर उन्मुख है तो उसे ब्राहमण करार दिया जाता था। क्योंकि ब्रहृम जानयति इति ब्राहृमणः का घोष वेद करते हैं। इसी प्रकार अन्य वर्ण भी तय किए जाते थे। विश्वमित्र जाति से ठाकुर थे पर उन्हें ऋषि माना गया है। भीलनी शबरी को संत माता जैसे कई उदाहरण पुराणों में भरे पड़े हैं। 25 वर्ष तक गुरूकुल में शिक्षा अध्ययन, 25 से 50 तक श्रम करके जीविकोपार्जन व संतानोत्पत्ति, 50 के बाद अपनी संतान को जीविकोपार्जन के तरीके सिखाकर खुद को सन्यास के लिए तैयार करना और 75 के बाद सन्यास यानि पूरी तरह से एकाकी होकर समाज के लिए काम करना। इस जीवन पद्वति परिवारवाद को पोषित नही करती थी बल्कि यह समाजवाद को पोषित करती थी। शिक्षा गुरूकुलों में हुआ करती थी, जहां पर बिना भेदभाव के सभी को शिक्षा मिला करती थी। राज पुत्र व छोटा काम करने वाले सभी के पुत्र एक साथ अध्ययन करते थे।
नकारात्मकता का उदभव
नकारात्मकता का सही मायने में उदभव हमारे देश में मुस्लिम काल से माना जा सकता है। जब सूखे व ठंडे देश वालों ने भारत पर आक्रमण करने का काम किया तो उसका जवाब सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने दिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस समय आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य ने खंड खंड में बंटे आर्यावर्त को एक सूत्र में बांधा और यूनानी व खुरासानियों को उनकी औकात ताकत के बल पर दिखाई। सेल्यूकस निकेटर व खुरासानियों ने संधि कर अपनी पुत्रियों को उन्हें सौंपा। सम्राट अशोक तक का काल भारतीयों के शौर्य व उत्कर्ष से भरा पड़ा है। महात्मा बुध के सम्राट अशोक के मिलने व अपने धर्म को विस्तार देने की प्रक्रिया के कारण देश में भारतीयता का लोप हो गया। आज जिस दौर में भारत गुजर रहा है उसकी जड़ उसी समय पड़ी। देश में शिक्षा व आयुध निर्माण की जगह शासक ने स्तूप व विहार बनाने का काम प्रारंभ कर दिया। धीरे धीरे भारत की संपत्ति मुसलमान व ईसाईयों ने लूटना प्रारंभ कर दिया। ईसाई शासन के दौरान अंग्रेजों ने बहुत ही चतुराई से कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। इसको ऐसा मान सकते हैं कि आज तमाम फैक्ट्रिषें के मालिक यूनियन बनाते हैं और अपने लोगों को उसका नेता। कुछ ऐसा ही हाल हुआ और विदेशियों ने भारत को भूखा और नंगा दिखाना प्रारंभ कर दिया। कुछ विदेशियों के चमचों ने इसको अपने हिसाब से हवा दी। क्योंकि वह खुद को शक्ति सम्पन्न बनाए रखना चाहते थे। सवाल खड़ा होता है जब मुस्लिम लीग ने मुस्लिम राष्ट्र बनाया तो भारत हिंदू राष्ट्र क्यों नही बना। गांधी व अन्य कांगे्रेसी नेता क्यों मुसलमानों को इस देश में रखने के लिए मरे जा रहे थे। क्यों गांधी मुसलमानों के लिए उपवास कर रहे थे। इसके बाद भी यह सिलसिला थमा नहीं। भले ही आज भारतवंशी विश्व के 195 देशों में जाकर अपनी मेघा के बल पर झंडे गाड़ रहे हों पर सच्चाई यह है कि पश्चिमपोषित हिंदुस्तान की मीडिया के कुछ लोग और हिंदुओं के वेश में बैठे जयचंदों को देश में गरीबी, भुखमरी व अन्य समस्याएं दिखाई देती है। इन समस्याओं का निदान हर भारत वासी को सोचना होगा।
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