आइये हम आपको परिचित कराते हैं आपके डीएनए से
- चित्रकूट में बना था मानव का पहला डीएनए
- सप्तऋषियों के साथ वेद, पुराण, निगम, आगम व देवी सरस्वती को उत्पन्न किया था प्रजापति ब्रहमा जी ने
- मनु व सतरूपा थे पहले पुरूष व स्त्री
डीएनए यानि डी-आक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल, यह अब ऐसा शब्द है जिससे लगभग सभी लोग परिचित हो चुके हैं। वास्तव में यह हमारे उन गुणसूत्रों का पता देता है कि हमारी जड़े कहां से जुड़ी हैं और हमारी मूल आदतें क्या हैं। आधुनिक विज्ञान की यह खोज 1953 में अंग्रेजी वैज्ञानिक जेम्स वाॅटसन और फ्रान्सिस क्रिक ने की। लेकिन हम आपको यह बताते हैं कि आपकी जड़े मूलरूप कैसे और कहां से जुड़ी हैं। कहां है आपकी पितृधरती और कौन है आपके गुणसूत्रों के प्रथम संवाहक। अगर आप हिंदू धर्म को मानने वाले हैं तो आपको थोड़ा सजगता के साथ याद करना होगा। किसी भी पूजा या अनुष्ठान में संकल्प करते समय जब पुरोहित आपसे आपका नाम लेने के लिए बोलते हैं तो साथ में गोत्र का उच्चारण करने के लिए भी आदेश देते हैं। वास्तव में यह गोत्र रूपी शब्द ही आपके डीएनए का पहला श्रोत है। गोत्र का मतलब आप सप्त में से किसी एक उस ऋषि के वंशज हैं, जिन्हें प्रजापिता ने धरती पर अवतरित किया था।
अब सवाल उठता है कि परमपिता ने उन्हें कहां और किसी प्रकार उत्पन्न किया था। इसका जवाब यह है कि त्रिदेवों (ब्रहमा, विष्णु व महेश ) द्वारा पूजित यह धरती सृष्टि आरंभ के पूर्व से ही अपने आपमें अनोखी रही है। त्रिदेवों ने मंत्रणा कर जब सृष्टि के आरंभ के लिए योजना बनाई तो निर्णय लिया गया कि इसकी शुरूआत चित्रकूट की पावन धरती से ही होगी। क्योंकि आने वाले समय में यही एक मात्र ऐसी धरती होगी, जहां पर स्वयं महादेव के राज में ब्रहमा व विष्णु की पूजा होगी। ब्रहमाजी ने योेजना के अनुसार श्री हरि विष्णु के चरण कमलों से विश्व की पहली नदी पयस्वनी ( दूध के समान ) को प्रकट किया और स्वयं रामार्चा रूपी यज्ञ में लग गए। समयानांतर के बाद मन से मारीच, नेत्रों से अत्रि, मुख से अंगिरा, कान से पुलस्त, नाभि से तुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भ्रगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगूठे से दक्ष तथा गोद से नारद उत्पन्न हुए। इसी प्रकार दाएं स्तन से धर्म, पीठ से अधर्म, हृदय से काम, दोनों भौहों के बीच से क्रोध, मुख से सरस्वती, नीचे के होठ से लोभ, लिंग से समुद्र, छाया से कर्दम ऋषि, प्रकट हुए। उनके पूर्व मुख से ऋग्वेद, दक्षिण से यजुर्वेद, पश्चिम से सामवेद और उत्तर मुख से अथर्ववेद की ऋचाएं निकलीं। इसके बाद उन्होंने आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद तथा स्थापत्व आदि उप वेदों की रचना की। उन्होंने अपने मुख से इतिहास पुराण उत्पन्न किया और फिर योग विद्या, दान, तप, सत्य, धर्म की रचना की। उनके हृदय से ओंकार,अन्य अंगों से वर्ण,स्वर, छंद आदि क्रीडा के सात स्वर निकले। इसके बाद ब्रहमा जी को लगा कि सृष्टि में वृद्वि नहीं हो रही है तो उन्होंने अपने शरीर को दो भागों में विभक्त कर दिया। जिसका नाम का औैर या हुए। का से पुरूष व या से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरूष का नाम मनु व स्त्री का नाम सतरूपा रखा गया।
आज के परिवेश में चित्रकूट में ब्रहमा जी का वह मंदिर यज्ञवेदी के रूप् में रामघाट के उपर विद्यमान है। यहां पर उनका बनाया हवन कुंड भी है। चित्रकूट के अलावा ब्रहमा जी की पूजा पुष्कर में होती है। इसके पीछे भी तमाम अंर्तकथाएं हैं। कोई अंर्तकथा शिव जी के श्राप को बताती है तो कोई अंर्तकथा विष्णु के श्राप को। लेकिन सार्वभौमिक सत्य यह है कि हर एक व्यक्ति का पहला डीएनए चित्रकूट की धरती पर आज भी विद्यमान है।
कैसे खोजें अपना डीएनए
डीएनए को पता लगाने के संदर्भ में आचार्य नवलेश दीक्षित जी आसान सा जवाब देते हैं। लगभग हर हिंदू जब पूजा पाठ में बैठता है तो उससे पुरोहित नाम व गोत्र का उच्चारण करने को बोलते हैं। गोत्र ही उनके डीएनए का मुख्य बिंदु है। आपको अपने डीएनए की सत्यता पता लगानी है तो अपने गोत्र के ऋषि व उनके वंशजों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी करें, उनके आदतों व लक्षणों को देखकर आप अपने आप ही सत्य से भिज्ञ हो जाएंगे।
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