एक ऐसा स्थान जो विश्व भर के लोगो के लिये किंवदंतियों कथाओं कथानकों के साथ ही यथार्थ चेतना का पुंज बना हुआ है। प्रजापति ब्रह़मा के तपोबल से उत्पन्न पयस्वनी व मां अनुसुइया के दस हजार सालों के तप का परिणाम मां मंदाकिनी के साथ ही प्रभु श्री राम के ग्यारह वर्ष छह माह और अठारह दिनों के लिये चित्रकूट प्रवास के दौरान उनकी सेवा के लिये अयोध्या से आई मां सरयू की त्रिवेणी आज भी यहां पर लोगों को आनंद देने के साथ ही पापों के भक्षण करने का काम कर रही है।
Wednesday, July 29, 2009
..यहीं पर लिखा गया था अयोध्या कांड
चित्रकूट [संदीप रिछारिया]। आज का 'रामबोला' कल गोस्वामी तुलसीदास बन श्री राम कथा का अमर गायक बन पूरे विश्व में आदर का पात्र बन जायेगा, यह राजापुर के निवासियों ने कभी सोचा भी न था। यह बात और थी कि यह विलक्षण योगी स्वामी नरहरिदास को राजापुर के ही समीप हरिपुर के पास एक पेड़ के नीचे मिल गया और वे उसे उठाकर अपने साथ ले गये। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम व उनकी महिमा से परिचित कराने के साथ ही उन्होंने राम बोला को संस्कार व काशी ले जाकर शिक्षा दी तब वह गोस्वामी तुलसीदास बन सके।
तुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य बताते हैं कि वैसे तो संत तुलसीदास चित्रकूट में अपने गुरु स्थान नरहरिदास आश्रम पर कई वर्षो तक रहे और यहां पर उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम व भ्राता लक्ष्मण के दो बार साक्षात् दर्शन भी किये। उन्होंने यहीं पर रहकर रामचरित मानस का पूरा अयोध्या कांड व विनय पत्रिका पूर्वाद्ध भी लिखा।
अभी तक ज्यादातर लोग सिर्फ यही जानते हैं कि तुलसीदास की हस्तलिखित रामचरित मानस की प्रति सिर्फ राजापुर में है पर इस दुर्लभ प्रति को चित्रकूट परिक्रमा मार्ग स्थित नरहरिदास आश्रम में देखा जा सकता है। यही स्थान गोस्वामी तुलसीदास जी का गुरु स्थान है, इसे महल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर पिछले चालीस वर्षो से मंदिर की व्यवस्था का काम देखने वाले स्वामी रघुवर दास बताते हैं कि स्वामी नरहरिदास ने अपने जीवन काल का अधिकांश समय चित्रकूट में ही व्यतीत किया। गोस्वामी जी चित्रकूट में ही पले व बडे़ हुए। वह हमेशा अपने गुरु स्थान पर आते रहे और यहां पर भी वे रामचरित मानस के साथ ही अन्य ग्रंथों की रचना में तल्लीन रहते थे।
उन्होंने रामचरित मानस की एक मूल हस्तलिखित प्रति दिखाते हुए कहा कि यह गोस्वामी जी के हाथ की लिखी गयी प्रति है। इसके लगभग पांच सौ पेज अभी भी सुरक्षित हैं जिसमें सभी कांडों के थोड़े-थोड़े पन्ने हैं। आर्थिक अभावों के चलते वे इसका संरक्षण कराने में अपने आपको असमर्थ बताते हैं। कहा कि न तो मंदिर में आमदनी का कोई स्रोत है और न ही उनके पास किसी तरह की मदद आती है।
उन्होंने बताया कि संत तुलसीदास का लगाया गया पीपल का पेड़ भी यहीं पर है जो उचित संरक्षण के अभाव में गिरने के कगार पर है। चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बाबा तुलसी दास का लगाया पेड़ तो सबकी नजरों के सामने ही है पर उसके संरक्षण और संवर्धन का कोई प्रयास नही करता।
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