Friday, April 10, 2020

क्‍याेें हमारे देश में रहकर कुछ विदेशी फैला रहे हैं नकारात्‍मकताा, आईये जानिए मेरे साथ

तत्यः सत्य और असत्य 

संदीप रिछारिया 

सोचिये, भारत में मानव जनित नकारात्मकता का आगमन कब हुआ कैसे हुआ और क्यों हुआ। आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह कैसा सवाल है, नया शब्द मानव जनित नकारात्मकता। चलिए स्पष्ट किए देते हैं यह मानव से मानव को दूर करने, किसी व्यक्ति को मानसिक रूप से अपमानित करने का प्रतीक है। नही समझ में आया, बताते है। वास्तव में यह उस मानसिकता का प्रतीक है जो  अमीर और गरीब का भेद बताकर मानव को छोटा या बड़ा बताती है। इन मानसिकता के अनुसार हम समर्थ हैं इसलिए कि हमारे पास पैसा है और पैसा से हम ताकत यानि नीति अनीति के लिए श्रम ( अपराध) व वैभव  ( विलासिता) खरीद सकते हैं।

नकारात्मकता का विस्तार है धार्मिक 

मानव जनित नकारात्मकता वास्तव में उस सोच का परिणाम है जो पूर्णतया धार्मिक है। कोलंबस ने जब अमेरिका की खोज की तो उसे नही मालूम था कि वहां का धर्म क्या है। दो हजार साल पहले ईसा मसीह का प्रादुर्भाव हुआ, उसके पहले पूरा यूरोप यहूदी था। एशिया हिंदू था। 1400 साल पूर्व मुहम्मद साहब के जन्म के पहले मुसलमान धर्म का अता पता नही था। अब सवाल खड़ा होता है कि मैं आपको यह इतिहास क्यों बता रहा हूं।

 वैदिक संस्कृति में छिपा उन्नति का बीज मंत्र 

भारत वास्तव में हजारों साल पुरानी उस संस्कृति का परिचायक है। जिसे युगों में बांटा गया है। सतयुग, त्रेता, द्वापर व कलियुग। इस समय कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है। सिंधु से हिंदू बनने की प्रकिया के पूर्व हम सत्य सनातन धर्म को मानने वाले थे। इसे वैदिक धर्म भी कहते हैं। काल्पनिक देवताओं के उदभव के पूर्व हम पंचतत्वों के साथ ही जीवित देवताओं की पूजा किया करते थे। आज भी इन देवताओं की पूजा न केवल हिंदू धर्म में बल्कि मुसलमान व ईसाई धर्म में की जाती है। हिंदू सूर्य को तो मुस्लिम चंद्र को आधार मानते हैं। जल को पूजना हर धर्म में आज भी आवश्यक है। क्योंकि इसके बिना किसी भी जीवधारी का जीवन चल नही सकता।

 आश्रम व्यवस्था के साथ कर्म के हिसाब से तय थे वर्ण 

विभिन्न नदियों व जलश्रोत के अपार भंडार वाले इस देश में हमेशा सुख, शांति और संपन्नता रही है। अगर हम आर्यावर्त के निवासियों की सुख, शांति व सम्पन्नता के बारे में बात करें तो इसकी जड़ जीवन जीने की कला पर छिपी है। आयु के अनुसार बनाए गए मानव को जीवन जीना होता है। यह जीवन खुद के लिए नही बल्कि समाज व राष्ट्र को समर्पित होता था। बच्चे के पैदा होने के बाद उसे 5 वर्ष तक घर में रखा जाता था। 5 वर्ष का होते ही उसे गुरू को सौंप दिया जाता था। उस जमाने में शिक्षण काल के दौरान गुरू यह जांचता था कि बालक की रूचि किस ओर है। अगर शूद्र का बालक शिक्षा की ओर उन्मुख है तो उसे ब्राहमण करार दिया जाता था। क्योंकि ब्रहृम जानयति इति ब्राहृमणः का घोष वेद करते हैं। इसी प्रकार अन्य वर्ण भी तय किए जाते थे। विश्वमित्र जाति से ठाकुर थे पर उन्हें ऋषि माना गया है। भीलनी शबरी को संत माता जैसे कई उदाहरण पुराणों में भरे पड़े हैं।  25 वर्ष तक गुरूकुल में शिक्षा अध्ययन, 25 से 50 तक श्रम करके जीविकोपार्जन व संतानोत्पत्ति, 50 के बाद अपनी संतान को जीविकोपार्जन के तरीके सिखाकर खुद को सन्यास के लिए तैयार करना और 75 के बाद सन्यास यानि पूरी तरह से एकाकी होकर समाज के लिए काम करना। इस जीवन पद्वति परिवारवाद को पोषित नही करती थी बल्कि यह समाजवाद को पोषित करती थी। शिक्षा गुरूकुलों में हुआ करती थी, जहां पर बिना भेदभाव के सभी को शिक्षा मिला करती थी। राज पुत्र व छोटा काम करने वाले सभी के पुत्र एक साथ अध्ययन करते थे।

नकारात्मकता का उदभव 

नकारात्मकता का सही मायने में उदभव हमारे देश में मुस्लिम काल से माना जा सकता है। जब सूखे व ठंडे देश वालों ने भारत पर आक्रमण करने का काम किया तो उसका जवाब सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने दिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस समय आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य ने खंड खंड में बंटे आर्यावर्त को एक सूत्र में बांधा और यूनानी व खुरासानियों को उनकी औकात ताकत के बल पर दिखाई। सेल्यूकस निकेटर व खुरासानियों ने संधि कर अपनी पुत्रियों को उन्हें सौंपा। सम्राट अशोक तक का काल भारतीयों के शौर्य व उत्कर्ष से भरा पड़ा है। महात्मा बुध के सम्राट अशोक के मिलने व अपने धर्म को विस्तार देने की प्रक्रिया के कारण देश में भारतीयता का लोप हो गया। आज जिस दौर में भारत गुजर रहा है उसकी जड़ उसी समय पड़ी। देश में शिक्षा व आयुध निर्माण की जगह शासक ने स्तूप व विहार बनाने का काम प्रारंभ कर दिया। धीरे धीरे भारत की संपत्ति मुसलमान व ईसाईयों ने लूटना प्रारंभ कर दिया। ईसाई शासन के दौरान अंग्रेजों ने बहुत ही चतुराई से कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। इसको ऐसा मान सकते हैं कि आज तमाम फैक्ट्रिषें के मालिक यूनियन बनाते हैं और अपने लोगों को उसका नेता। कुछ ऐसा ही हाल हुआ और विदेशियों ने भारत को भूखा और नंगा दिखाना प्रारंभ कर दिया। कुछ विदेशियों के चमचों ने इसको अपने हिसाब से हवा दी। क्योंकि वह खुद को शक्ति सम्पन्न बनाए रखना चाहते थे। सवाल खड़ा होता है जब मुस्लिम लीग ने मुस्लिम राष्ट्र बनाया तो भारत हिंदू राष्ट्र क्यों नही बना। गांधी व अन्य कांगे्रेसी नेता क्यों मुसलमानों को इस देश में रखने के लिए मरे जा रहे थे। क्यों गांधी मुसलमानों के लिए उपवास कर रहे थे। इसके बाद भी यह सिलसिला थमा नहीं। भले ही आज भारतवंशी विश्व के 195 देशों में जाकर अपनी मेघा के बल पर झंडे गाड़ रहे हों पर सच्चाई यह है कि पश्चिमपोषित हिंदुस्तान की मीडिया के कुछ लोग और हिंदुओं के वेश में बैठे जयचंदों को देश में गरीबी, भुखमरी व अन्य समस्याएं दिखाई देती है। इन समस्याओं का निदान हर भारत वासी को सोचना होगा।   

Monday, March 30, 2020

कोरोना नहीं भूख बनेगी मानव की बड़ी दुश्मन

- शासन व प्रशासन के द्वारा किए गए इंतजामों में आम लोगों के साथ ही एनजीओ को भी मदद करनी होगी
- भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ अन्य पार्टियों के कार्यकर्ता भी जुटने चाहिए 

संदीप रिछारिया 

कोरोना के रूप में आई वैश्विक महामारी की चपेट में लगभग पूरा विश्व आ चुका है। अब ताकतवर अमेरिका के साथ अन्य सभी विकसित देशों का हाल यह है कि वह खुद अपनी मदद के लिए भगवान की तरफ लाचारी से देख रहे हैं। हमारा 130 करोड भारतीयों वाला देश भी कोरोना की चपेट में आ चुका है। भले ही अभी कोरोना पाजिटिव के आंकड़े बहुत कम दिखाई देे रहे हैं, पर शनिवार की रात व उसके पहले के दृश्य जो दिल्ली के आनंद बिहार बसस्टैंड व सड़कों पर दिखाई दिए में दिखाई आंखें खोल देने वाले हैं। अभी तक तमाम सामथ्र्यवान लोग प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के साथ अन्य तरह से अपनी -अपनी तरफ से मदद करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह मदद कैसे व किस प्रकार की जाएगी, इसका पूरा प्लान अभी तक स्पष्ट नही हो पाया है। विचारणीय बात यह है कि इस वैष्विक महामारी से जंग की तैयारी किसी भी देश ने कभी की ही नहीं, इसका कारण भी साफ है कि अभी जक जंग केवल अपनी सामाजिक शक्ति के प्रदर्शन को लेकर ही की जाती रही है। उसकी के लिए सब इंतजाम किए जाते थे, दूसरी जंग दूसरे गृहों पर जाने को लेकर की जा रही थी। लेकिन अब अगली जंग हमें कोरोना के साथ भूख की महामारी को लेकर करनी होगी।
यहां पर यह बताना जरूरी है कि भारत कृषि प्रधान देश है। आज भी यहां की 85 फीसद आबादी गांवों में रहती है। गांवों में रोजगार की कमी के कारण लोग मौसमी या पूर्ण रूप से पलायन कर शहरों की ओर जाते हैं। ऐसे में जब लाॅक डाउन हुआ और शहरों में काम समाप्त हो गया तो वहां से गांव वापस आने का रास्ता ही लोगों के लिए बचा तो वह लोग क्या करेंगे। आनंद विहार व के साथ ही देश के लगभग हर बडे व छोटे शहर से वापसी के लिए लोग परेशान हैं। दिल्ली के हंगामें को देखकर राज्य सरकारों ने लोगों को उनके घरों में भेजने का ्रपबंध भी किया। लेकिन मामला यहीं पर नही खत्म होता, क्योंकि अभी भी देश के 90 फीसद लोग न तो सरकारी नौकरी करते हैं और न ही वह पूर्ण कालीक प्राइवेट नौकरियों में हैं। अब ऐसे में रोज कमाकर अपना पेट भरेन वालों के हाल यह है कि उन्हें सरकार ने एक हजार रूपये देने का काम किया है, लेकिन उनमें भी कितने लोग रजिस्टर्ड है , इसकी संख्या भी जान लेना जरूरी है। क्योंकि इनमें भी 80 फीसद से ज्यादा का रजिस्ट्रेशन हुआ ही नहीं। रेहडी लगाने वाले, बैठकर अपना छोटा मोटा व्यवसाय कर पेट भरने वाले लोग भी देश में भारी मात्रा में हैं। इन सभी की हालत देखी जाए तो इनके पास दो से तीन दिनों का ही भोजन घरों में होता है। अब लाॅक डाउन और जनता कफर्यू को जाड़ दिया जाए तो एक सप्ताह से उपर का समय बीत चुका है। इस समयांतर में अब इन परिवारों के पास भी राशन खत्म हो गया होगा। आने वाले समय में जब यह लोग घर से नही निकल सकते और न ही इनके पास पैसा है तो इनका परिवार कैसे जीवित रहेगा। इसकी कल्पना करके ही दिल बैठ जाता है। प्रशासन को चाहिए कि सामुदायिक रसोई के जरिए बिना किसी प्रचार के इस तरह के सभी लोगों को चिन्हित कर उनके पास प्रतिदिन दो समय का भोजन उपलब्ध कराएं जिससे कम से कम उनका जीवन भूख से तो सुरक्षित रह पाए। सामथ्र्यवान लोगों को चाहिए कि वह लोग अपनी तरफ से इस तरह के परिवारों को चिन्हित कर उनको भोजन उपलब्ध कराएं। लोगों को चाहिए कि भोजन उपलब्ध कराने वालों की सूची प्रशासन को दें ताकि प्रशासन के वालिंटियर दूसरे जरूरतमंदों को भोजन दे सकें। जिलाधिकारी को चाहिए  िकइस मामले में एक विस्तृत कार्य योजना बनाकर उसको अमल में लाएं ताकि लोगों का जीवन भूख से बच सके।
   

Monday, March 23, 2020

जल्द ही चित्रकूट में भी हो सकता है लॉक डाउन,तैयारियां पूरी


चित्रकूट। जिलाधिकारी शेषमणि पांडे की अध्यक्षता में कलेक्ट्रेट स्थित सभागार में कोरोना वायरस की रोकथाम एवं बचाव के संबंध में डॉक्टर एसोसिएशन के साथ  बैठक हुई।

जिलाधिकारी ने प्राइवेट डॉक्टरों से कहा कि इस कोरोना वायरस को देखते हुए आप लोग जनपद में अधिक से अधिक व्यवस्था रखें। कहां कि हमारी सरकारी टीमें रेलवे स्टेशनों बस स्टॉप आदि जगह -जगह पर तैनात होकर कार्य कर रही हैं और बाहर से आने वाले लोगों की लगातार जांच जारी है सीएमओ से कहा कि गांव में आशा एएनएम को लगाकर जागरूक कराएं तथा जो बाहर से लोग आ रहे हैं उनको गांव में ही वाच करते रहें तथा बाहर से जो लोग आ रहे हैं उनके घरों में एक लिखकर चस्पा करें। इनसे 14 दिन तक कोई नहीं मिलेगा यह अपने घर पर ही रहे। चिकित्सकों ने जिलाधिकारी से जनपद को लाक डाउन घोषित कराए जाने की भी मांग की।
 इस पर डीएम ने अपर जिलाधिकारी से कहा जनपद की सीमा को सील कराने वहां मजिस्ट्रेट व पुलिस की व्यवस्था कराने तथा लाकडाउन आदि की भी तैयारी कर ली जाए। उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी से कहा कि 200 सैया अस्पताल पर सभी व्यवस्थाओं के लिए शासन को पत्र मेरी ओर से भेजा जाए ताकि वहां पर स्टाफ आदि सभी व्यवस्थाएं सुनिश्चित हो सके। और निजी संस्थानों के चिकित्सकों के साथ एक बैठक करके सभी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करा ले। एसोसिएशन के चिकित्सकों से कहा कि बाहर के जनपदों सेसर्जन व फिजीशियन से वार्ता कर ले ताकि आवश्यकता पड़ने पर जनपद में उन्हें बुलाया जा सके और उनकी सेवाएं ली जा सके। तथा कोई भी मरीज इस वायरस से ग्रसित पाया जाए तो उसकी सूचना तत्काल मुख्य चिकित्सा अधिकारी को उपलब्ध कराएं जिससे कि उसकी इलाज की संपूर्ण व्यवस्था कराई जा सके। उन्होंने सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट जानकीकुंड के चिकित्सक से कहा कि वेंटिलेटर वाले कितने बेड हैं उसकी एक लिखित में सूचना दें और टेक्नीशियन आदि की भी व्यवस्था कराएं।
बैठक में अपर जिलाधिकारी  जी पी सिंह उप जिलाधिकारी कर्वी  अश्वनी कुमार पांडे मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ विनोद कुमार निजी संस्थानों के चिकित्सक डॉ सुरेंद्र अग्रवाल डॉक्टर महेंद्र गुप्ता डॉक्टर सुधीर अग्रवाल डॉक्टर प्रबोध अग्रवाल आदि विभिन्न चिकित्सक तथा संबंधित अधिकारी मौजूद रहे।

कोरोना से बचने के लिए डीएम चित्रकूट शेषमणि पांडेय ने की मार्मिक अपीलG


चित्रकूट। डीएम शेषमणि पांडेय ने वीडियो अपील जारी कर कहा कि अमावश्या के पर्व पर चित्रकूट न आये,अपने घर पर ही रहकर भगवान का स्मरण करें। यही काम नवरात्रि की परमा और नवमी को करे।
उन्होंने चित्रकूट जनपदवासियों से कहा कि अत्यंत जरूरी होने पर ही घरों से बाहर निकले।जिससे हम खुद को व दुसरो को कोरोना से बचाए रखे। कोरोना की जंग में हर एक व्यक्ति सैनिक है।उसे राष्ट्रहित में इस लड़ाई से लड़कर जल्द जीत हासिल करना है।

Tuesday, March 10, 2020

इंद्रदेव का कोरोना पर ‘वार‘ होरियारे मायूस


अजब तेरी माया, अजब तेरे खेल छछूदर के सिर पर चमेली का तेल, कुछ ऐसा हाल चीन से निकले और इटली में सबसे ज्यादा कहर बरपाने वाले कोरोना के यहां पर हो रहे हैं। वैश्विक स्तर पर डर के माहौल के बीच प्रधानमंत्री से लेकर अभिनेता अभिभावदन में हाथ मिलाने की जगह नमस्ते करने की सलाह दे रहे हैं।

होली पर दूर से रंग फेंकने की सलाह भी खूब जारी की गई। खांसने व छीकने तक के लिए एडवाइजरी जरी कर मुंह में मास्क लगाने की अपील लगातार जारी की जा रही है। मीडिया भी लगातार कोरोना का मरीज यहां मिला, वहां मिला। होलिका दहन में कपूर व लौंग का प्रयोग के साथ ही तमाम तरह के निवेदन सोशल मीडिया पर लगातार छाए हुए हैं। 
लेकिन हम जिस देश के वासी हैं। वहां पर तो 33 कोटि के देवता कुछ ऐसा कर देते हैं कि अपील एडवाइजरी कुछ नहीं मायूने नहीं रखती यहां पर सीधे तौर पर एक फरमान आता है तो सब मामला निपट जाता है।
होली की मस्ती करने को आतुर होरियारों को यह होली ताजिंदगी याद रखने की व्यवस्था इंद्र देव ने कर दी। सुबह सात बजे से ही चित्रकूट में रूक रूक कर बारिश हो रही है। जिससे वातावरण में हल्की गर्मी की जगह ठंड बढ गई। स्वेटर व जैकेट के साथ लोग होली की आग को अला समझ कर ताप रहे हैं। बरसात की बूंदे उसको धीमा करने का प्रयास कर रही है। जिससे न केवल होली की आग बुझती नजर आ रही है। लोग होली खेलने की जगह उस आग से अपने आपको तापकर गर्म करने का प्रयास कर रहे हैं। इस तरह से होली का मजा तो किरकिरा हो रहा है, साथ ही लाखों रूपये लगातार होली खेलने के लिए लाए गए रंग, गुलाल , पिचकारी की दुकानें भी ठंडी पड़ी दिखाई दे रही हैं। बच्चों को भी घरों में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। मां बाप खुश हैं कि कम से कम अब बच्चों के मुंह में लगा रंग व गुलाल उन्हें साफ करने के लिए श्रम नही करना होगा। एक दूसरे से छीना झपटी के बीच अभिभावकों के बीच कोरोना वायरस का डर भी नही सता रहा है।

Monday, March 2, 2020

चित्रकूट की धरती पर मौजूद हैं जलश्रोतों के लुटेरे, संतों की हरकत देख व्यापारियों ने भी डाला डाका


- श्री कामदगिरि की परिक्रमा का अतिक्रमण साफ करने का दावा करने वाले प्रशासन की बिरजाकुंड के पास प्राचीन बीहर पर कब्जा करने वाले को क्लीन चिट
- जगद्गुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के बाहर मौजूद है बेशकीमती बीहर  


संदीप रिछारिया

समय बदलने के साथ ही हम आदिम युग से निकलकर सभ्य युग तक आ गए। प्रकृति को पूजने वाले हम लोग पत्थर के भगवानों में सिमट आए हैं। भले ही प्राकृतिक भगवान हमारी जरूरतों को पूरा करने का काम करें, पर हमे उन्हें अपवित्र करने और उनको जड़मूल से उखाड़ने का कोई भी मौका नही छोड़ते। राममंदिर निर्माण के लिए फैसला आने के बाद खुशी का इजहार एक महीने की आधा दर्जन कथावाचकों के साथ रामकथा के द्वारा

श्रीकामदगिरि परिक्रमा मार्ग के बिरजाकुंड पर किया जाता है, वही राम-राम का जाप करने के साथ ही अनवरत चलने वाली रामायण का पाठ किया जाता है, और वहीं पर राजाओं की बनाई बेशकीमती बीहर ( सप्तदल वाले विशाल कुआं) पर खुले आम कब्जा भी कर लिया जाता है। हैरत की बात यह है कि उनका कद प्रशासन भी इतना उपर हो चुका है कि जिलाधिकारी स्वयं उस स्थान को देखते हैं कि कैसे उनके पर्यटन विभाग द्वारा बनवाए गए विशालकाय दो शेडों व बावली पर एक धर्माधिकारी ने कब्जा कर रखा है और वह कुछ नही बोलते हैं। आम लोग जब सवाल खड़े करते हैं तो योगी की सरकार और उन पर योगी की कत्रपा का हौवा बताकर उन्हें शांत कर दिया जाता है।
वैसे बिरजाकुंड स्थित बीहर की बात करें तो यहां पर राजस्व विभाग व धर्माधिकारियों की जुगलबंदी साफ दिखाई देती है। लगभग 35 साल पहले यहां पर बीहर के साथ आंवले के पेड़ लगे हुआ करते थे। इच्छा नवमी या आंवला नवमी को श्रद्वालु आंवले के नीचे भोजन कर पुण्य अर्पित किया करते थे। वहीं एक छोटे से विशाल बरगद के नीचे एक धर्माधिकारी की नजर पड़ी। अपने चार चेलों को रामधुन के साथ प्रतिस्थापित कर दिया। रामधुन का स्वरूप् बढा तो कमरे बनने लगे। सरकारी जमीन का स्वरूप बदलकर सरकारी अभिलेखों में उसे महंत व अखाड़े के नाम पर दर्ज करने में प्रशासन ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया। धीरे-धीरे बेशकीमती बीहर पर धर्माचार्य का कब्जा हो गया। अब यहां पर एक नही दो धर्माचार्य अपना- अपना दावा कर रहे हैं। हैरत की बात यह है कि हाल में एक धर्माचार्य को जलशक्ति मंत्रालय ने दिल्ली में बुलाकर मंदाकिनी को बचाने के लिए पोस्टर, बैनर व भाषण देने के लिए पुरस्कार भी दिया है। वैसे यह आश्रम राजनेताओं व अधिकारियों के साथ बड़े लोगों को नारियल का गोला देकर व शाल उड़ाकर अपने आपको पीठम का दर्जा दे चुका है।

दूसरा कब्जे वाला बीहर सीतापुर - बेडीपुलिया मार्ग पर जगद्गुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के समीप मेन रोड पर है। मोदी के स्वच्छता दूत जगद्गुरू ने कई बार मंदाकिनी के लिए आवाज उठाई, पर आज तक उनकी नजर इस बीहर पर नहीं पड़ी। सबसे हैरत की बात तो यही है खुद जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह भी इस बीहर पर कब्जे को कई बार आंखों से देख चुके हैं लेकिन उन्होंने भी अपनी प्रतिक्रिया कभी इस मामले में नही दी।
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ते क्या कर सकता है शासन

मोदी जी अपना वादा निभाया, जल शक्ति मंत्रालय बनाया, लेकिन सरकार के साथ ही समाज के जिम्मेदारी भी जलश्रोतों को संरक्षित रखने की है। अगर हमें अपना जीवन चाहिए तो जलश्रोतों नदी, तालाब, बीहर, कुंओं, चोहड़ों को संरक्षित व सुरक्षित करने के लिए बड़े प्रावधान बनाने होंगे। इसके लिए पुलिस की एक अलग विंग स्थापित करनी होगी। जलश्रोतों पर अतिक्रमण या गंदा करने वालों के अंदर कानून का डर पैदा करना होगा। इसकी मानीटरिंग के लिए कई स्तर पर जांच करनी चाहिए।
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सीएम योगीजी के आदेश व श्रद्वालुओं की बढ़ती संख्या को लेकर प्रशासन ने अब श्रीकामदगिरि परिक्रमा पथ पर बसी खोही बस्ती की जमीन को खाली कराकर चैड़ीकरण कराने के लिए काफी हो हल्ले के बाद मामला शांत हो गया है। राजस्व व वन विभाग ने लगभग एक सैकड़ा लोगों को नोटिस देकर दस दिनों में जमीन खाली करने के आदेश दिए थे। जिलाधिकारी की बैठक के बाद कब्जेदार रात-रात भर सोए नहीं, वहीं तमाम अतिक्रमण किए हुए स्थानों पर संत समाज द्वारा अतिक्रमण किए जाने को लेकर स्थानीय लोगों में तीखी नाराजगी भी है। वैसे पर्वत की तरफ अस्थायी व स्थायी निर्माण कर रहने वाले लोगों के भी दो मत हैं। पट्टों की जमीन पर भूमिधरी होने के बाद तमाम लोग अदालतों के आदेश लेकर मुआवजा की मांग कर रहे हैं तो बहुत से लोग इस कार्यवाही को गलत बता रहे हैं।
परिक्रमा मार्ग पर दुकान लगाकर गुजर बसर करने वाली अंशु, दादू, पप्पू जैसे तमाम दुकानदार कहते हैं कि हमारा अतिक्रमण तो सामने प्रशासन को दिखाई दे रहा है, पर संत समाज का अतिक्रमण नहीं दिखाई दे रहा है। बिरजा कुंड के पास निर्मोही अखाड़ा ने कब्जा कर पहले छोटी कुटिया बनाई और धीरे धीरे रामधुन बैठाकर मंदिर का निर्माण किया। चैहद्दी बनाकर पर्यटन विभाग के दो शेडों को अपने सीमा के अंदर कर पूरी तरह से कब्जा कर लिया और राजाओं की बनाई पुरानी बेशकीमती चार मंजिला बीहर को पूरी तरह से गायब करने के लिए बाहर कमरे इत्यादि बना दिए। पट्टे की जमीन को भूमिधरी और फिर उस जमीन पर प्राचीन बनी बीहर का कब्जा प्रशासन को केवल इसलिए नहीं दिखाई दे रहा है क्योंकि वहां से जुड़े एक महंत प्रशासन के बहुत नजदीकी हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यह प्रशासन की दोगली नीति नही चल पाएगी। इसको लेकर आंदोलन किया जाएगा व कोर्ट की शरण ली जाएगी। जब प्रशासन कहता है कि हजार साल पुराना पट्टा भी अवैध है तो फिर इस पट्टे को क्यों नही खारिज किया जा रहा है। क्यों प्राचीन बीहर व पर्यटन विभाग द्वारा बनवाए गए शेडों को यात्रियों की सुविधा के लिए खोला जा रहा है।
 उप जिलाधिकारी कर्वी ने बताया कि प्राचीन बीहर होने जानकारी मिली है। इसकी पूरी जांच कराकर विधिक कार्यवाही की जाएगी। 

Sunday, February 23, 2020

चित्रकूट धाम की ओर से वरिष्ठ पत्रकार संदीप रिछारिया की कलम से निकली प्रधानमंत्री जी को खुली पाती

यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी आप पर सत्य सनातन धर्म के सभी देव, देवियों और उन्नायकों के साथ प्रतीकों की कृपा जीवन पर्यन्त बनी रहे।



मैं चित्रकूट, सृष्टि की उत्पत्ति के पूर्व का स्थान हूं। अनोखी छटा देखकर त्रिदेव यहां एक बार नहीं अनेक बार आए। यहां की तपस्वनी माता अनुसुईया के तप के चलते उनकी यह मातृ स्थली बनी। प्रजापिता ब्रहमा जी ने यहीं से सृष्टि का आरंभ किया। सृष्टि के लिए यज्ञ से पूर्व श्री हरि विष्णु का जिस स्थान पर पद प्रक्षालन किया, वहीं से पयस्वनी गंगा प्रकट हुई। मां अनुसुईया ने दस हजार साल का उग्र तप किया तो मां मंदाकिनी प्रकट हुई। श्रीराम जी के आगमन पर सरयू मैया तो स्वयं चित्रकूट में अपना वैभव दिखाने लगीं। वैसे मंदाकिनी को बनाने के लिए दर्जनों नदियां व नदी नाले हैं। 

अगर हर स्थान के बारे में लिखने बैठा तो पूरा एक ग्रंथ बन जाएगा। लेकिन जैसा की मेरे नाम से ही दृष्टिगोचर है कि चित्रों का दर्शन ही चित्रकूट है। पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक मान्यताओं, दस्तावेजों व नजरों के सामने मौजूद साक्ष्यों के आधार पर इस स्थान की प्रमाणिकता पर कोई प्रश्नचिंह नही लगा सकता। 
आज चित्रकूट की पहचान केवल श्रीराम के नाम पर की जाती है। यह गलत है, राम के पूर्व तो उनके लगभग सभी पूर्वज चित्रकूट आए। उन्होंने यहां पर ऋषियों से अग्नेयास्त्र प्राप्त किए। राम के पहले महाराज अम्बरीश ने तो 18 साल अमरावती पर उग्र तप किया था। 
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हाल के कुछ साहित्यकारों ने चित्रकूट को बुंदेलखंड का हिस्सा बताया जो कि सर्वथा अनुचित है। चित्रकूट की धरती हमेशा से चित्रकूटी रही है। यहां की रामरज लोगों के पापों को दूर करने का काम सदियों से करती रही है। ऋग्वेद की पिप्पलादि शाखा के अनुसार चित्रकूट के पहले राजा कसु थे। वैसे आरकोलोजिकल सर्वे आफ इंडियाजिल्द 10 पृष्ठ 11 में जनरल कनिंघम ने कौशाम्बी की करछना तहसील के गढवा गांव के निकट पाए गए महत्वर्पूण शिलालेख का उल्लेख किया। इसमें साफ तौर पर उल्लेख है कि वर्ष 138 के माघ मास के इक्कीसवें दिन भगवान चित्रकूट स्वामिन के चरणों में भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति की स्थापना की गई थी। मठ को संचालित करने क ेलिए भूमि दान दी गई थी। कलचुरी शासक कर्ण के बनारस ताम्रपत्र एपिक इंडिया जिल्द 4 पृष्ठ 284 श्लोक 38 में चित्रकूट को मंडल कहा गया। 1688 के यु़द्ध के बार जब राजा छत्रसाल यहा पर आते हैं, इसे बुंदेलखंड का हिस्सा बताते हैं। जबकि चित्रकूट की धरती अलग है। बुंदेलखंड का हिस्सा नही है। यहां की संस्कृति में  धर्म, तप और प्रेम भरा पड़ा है। जबकि बुंदेली संस्कृति ईष्या और बंटवारे की है। वहां का इतिहास गलत कारणों से युद्व का प्रतीक है। खान पान, पहनावा, बोली, रीति रिवाज, भाषा सब कुछ अलग है। ऐसे में वह चित्रकूटी संस्कृति का हिस्सा कैसे हो सकती है


बाबरनामा में स्वयं बाबर ने देश के तीन प्रतापी राजाओं में यहां के राजा रामजू देव की हैसियत अपने से युद्ध करने लायक आंकी है। अब जब औरंगजेब व शिवाजी की सेना के सिपाही महाराज छत्रसाल चित्रकूट आते हंै तो क्या वह महराज हो गए। यह बात दीगर है कि चित्रकूट धर्म स्थली है, यहां पर आकर राजा दान पुण्य के काम करते थे। राजा छत्रसाल भी आए, उन्होनें कामदगिरि परिक्रमा का निर्माण कराया, तमाम मंदिर बनवाए। वैसे विजावर, गौरिहार, चरखारी सहित अन्य स्टेटों के मंदिर, कुंए, बाबली इत्यादि भी यहां पर बने हुए हैं। इतिहासकारों के मुताबिक गुजरात से आए राजाओं ने यहां पर लम्बे समय तक राज किया। राजा बीसलदेव का नाम प्रमुख है। औरंगजेब ने तो यहां पर मंदिर बनवाकर जमीन दान दी


सैकड़ों गुफाओं, वन प्रस्तरों, झरनों, विशाल जल प्रपातों, आदि मानव द्वारा रचित भित्ति चित्रों वाले इस नयनाभिराम दृश्यों से भरे इस अनोखे चित्ताकर्षक चित्रकूट में राम वन पथ गमन के साथ ही अगस्त, अत्रि, मारकंडेय, गौतम, जमदग्नि, सरभंग, सुतीक्षण, सहित अन्य ़ऋषियों की तपोस्थली आज भी समय की मार खाकर वीरान हो रही हैं। इतना ही नहीं जिस राजा भरत के नाम पर हम गौरव करते हैं, उनका जन्म यहीं पर हुआ। उनके पिता महाराजा दुश्यंत व शकुलंता की प्रेम कहानी मडफा के पहाड़ पर सुनाई देती है। 
चित्रकूट रामघाट, कामदगिरि परिक्रमा व राजापुर, वाल्मीकि आश्रम में फैला क्षेत्र नही अपितु 84 कोस में विस्तारित एक विहंगम झांकी प्रस्तुत करता विशाल शोभनीय अरण्य है। 
आदि कवि वाल्मीकि, तुलसीदास, रहीम, मीरा, भूषण, कालीदास सहित कितने ही कवियों साहित्यकारों ने इस अतभुद परिक्षेत्र को अपनी लेखनी से शब्द प्रदान किए। आज विश्व में तुलसीदास की लिखी रामचरित मानस करोड़ों लोगों की पेम की प्यास बुझाने का काम कर रही है। 
आप 2007 में भाजपा के विधायक पद के प्रत्याशी देव त्रिपाठी के लिए वोट मांगने आए। दुर्भाग्य से वह विधानसभा तक नहीं पहुंच सके। यह सुंदर रहा है कि सात साल बाद आपकी राशि में सूर्य पूरे देश में चमका और आप प्रधानमंत्री बने। अब छह साल बाद आपके चित्रकूट आने का सुयोग घटित हो रहा है। आप यहां पर बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और डिफेंस काॅरीडोर बनाने का शुभारंभ करेंगे। वैसे आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि आप जो काम कर रहे हैं, वह इस धरती पर बहुत पहले हो चुका है। यहां के बनाए अग्नेयास्त्रों से रावण का वध हुआ और प्यास बुझाने के लिए ही महासती अनुसुइया माता ने सहस्त्र हजार धाराओं के साथ मंदाकिनी को प्रकट किया। वैसे अब नए पक्के निर्माण माता की अनेक धाराओं को काल कलवित कर चुके हैं। आम लोगों के साथ ही साधू संतों का मलमूत्र भी मंदाकिनी के पवित्र जल में विसर्जित हो रहा है। 
अब जब हम आपको दो बार सांसद व पूरे चित्रकूट परिक्षेत्र (यूपी) में विधायक दे चुके हैं तो आपसे आशा करते हैं कि आप चित्रकूट के उस भौतिक विकास पर भी विचार करेंगे जिससे विश्व भर से लोग यहां पर आएं और यहां के अनोखे दृश्यों को देखें।
1ः चित्रकूट के 84 कोस परिक्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए।
2ः चित्रकूट को बुंदेली हिस्सा न माना जाए, क्योंकि साक्ष्यों के आधार पर चित्रकूट बुंदेलखंड का हिस्सा कभी नहीं रहा।  
3ः चित्रकूट को विश्व विरासत में शामिल कराया जाए। 
4ः चित्रकूट के हर एक स्थल का चिंहाकन कर उसका वैभव सबके सामने लाया जाए। 
5ः पुराने मंदिरों का जीर्णोधार कराने के साथ ही मंदिरों प्रापर्टी के लिए बन रहे महंतों पर रोक लगाई जानी चाहिए। 
6ः चित्रकूट राम की भूमि मानी जाती है। यहां के सभी कार्य भगवान राम यानि तुलसीदास जी द्वारा लिखित शिव स्तुति, राम स्तुति और स्वामी मत्तगयेन्द्रनाथ जी की स्तुति के आधार पर ही होना चाहिए। 
7ः मंदाकिनी की अविरलता, पयस्वनी, सरयू, चंद्रभागा, कौशकी, वाल्मीकि, गुंता आदि नदियों पर लगातार काम कर उन्हें पुर्नजीवित करने व संरक्षण की आवश्यकता है।   
8ः यहां पर हर महीना अमावश्या पर मेला लगता है। जिसमें देश भर से लाखों लोग आते हैं। दीपावली अमावश्या में मेला मे ंपांच दिनों में लगभग दो करोड लोग आते हैं। लेकिन आज तक यूपी के क्षत्र में कहीं पर भी पार्किंग या बड़े सुलभ की व्यवस्था नही है। स्वच्छ भारत अभियान यहां पर अमावस्या के दूसरे दिन मुंह चिढाता नजर आता है।
आशा है कि आप इस आगह पर ध्यान देंगे।
आपकी प्रगति का आकांक्षी 
चित्रकूट धाम 





Saturday, February 22, 2020

प्रकृति का संरक्षण करना हर व्यक्ति का दायित्वः साध्वी कात्यायनी गिरि




चित्रकूट। राम के भव्य मंदिर निर्माण में लगे दो विशेष संतों की शिष्या साध्वी कात्यायनी गिरि ने श्री कामदगिरि परिक्रमा मार्ग में स्थित ब्रहमकुंड के शनि मंदिर में सातवें दिन की श्री राम कथा के दौरान मंदाकिनी, पयस्वनी व सरयू को जिंदा रखने के लिए तमाम गुर बताए। उन्होंने कहा कि प्रकृति का संरक्षण करना हर एक व्यक्ति का दायित्व है। उन्होंने कथा के दौरान बताया कि महिर्षि अत्रि का अर्थ है जो इन तीनों गुणों से उपर उठ चुका है। इनका ब्रहम से सीधा संबंध है। चित्रकूट का इसी लिए इतना महत्व है। जब जीव अत्रि जैसा होगा, जब उसकी बुद्वि अनसुइया जैसी होगी। असुइया का अर्थ जलन, ईष्या या द्वेष न हो। जब यह गुण होंगे, तभी त्रिदेव पुत्र होते हैं। राम जी स्वयं दर्शन करने जाते हैं, वह राम के पास नही आए। जिसका संरक्षण स्वयं अत्रि अनुसुइया करते थे। मन से अनुसुइया ने मंदाकिनी को प्रकट किया। उनका संरक्षण किया।

 स्वार्थ में भरकर कभी हम प्रकृति का कुछ नही कर सकते। स्वार्थ में भरकर व्यक्ति अपने भाई बहन का नही हुआ, मां बाप का नही हो रहा तो कैसे इन नदियों का पुनर्जीवन होगा।  

श्री राम वन गमन का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करते हुए उपस्थित श्रोताओं की आंखों में आंसू ला दिए। उन्होंने बताया कि राजा दशरथ ने केकेई को बहुत समझाने का प्रयास किया। कहा कि अगर तुम यह वचन लोगी तो मेरा जीवन समाप्त हो जाएगा। स्वार्थ रूपी मंथरा ने दुर्बुद्वि रूपी केकेई के कान भर दिए। सीता जो भूमि सुता है। माता सीता प्रकृति या भक्ति का स्वरूप हैं तो लक्ष्मण वैराग्य का स्वरूप है। सात्विक, राजसिक व तामसिक तीनों गुणों के बारे में तात्विक विवेचना कर बताया कि

कुंभकर्ण तमसीगुणी है। आलस्य प्रमाद खाता और सोता रहता है।

रावण रजोगुणी है। वह जाता है, सोचता भी है। वह शिव भक्त ब्राहमण है। राक्षस क्यों है, इसलिए वह सोचता है कि ज्यादा से ज्यादा संसार के भोगों का भोग कर लूं। रजोगुण में स्वार्थ भाव होता है। विभीषण सत्व गुण का प्रतीक है। वह केवल भजन करना चाहता है। भगवान के दर्शन पाना चाहता है। भगवान के कार्य में लगना चाहता है। इस दौरान कथा की व्यवस्था करने का काम सत्ता बाबा, अखिलेश अवस्थी, संत धर्मदास, गंगा सागर महराज व रामरूप पटेल कर रहे हैं।



तो क्या रामवन पथ गमन मार्ग को हरी झंडी दिखाएंगे मोदी

मोदी इन चित्रकूट 
 नेपथ्य में पहुंची राजकुमार को लंकाविजयी बताने की योजना 




 संदीप रिछारिया 

 चित्रकूट। श्रीराम ने अपने जीवन काल में दो महत्वपूर्ण यात्राएं की थीं। पहली यात्रा महर्षि विश्वामित्र के साथ अयोध्या से श्रीजनकपुर धाम की व दूसरी अयोध्या से श्रीलंका की पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ। पहली यात्रा की उपलब्धि श्रीजनकपुर धाम में जाकर माता सीता का वरण करना व दूसरी यात्रा की उपलब्धि श्रीलंका पहुंचकर रावण वध करना रही। पहली यात्रा में जहां उन्होंने राक्षसी ताड़का व सुबाहु का वध किया, वहीं दूसरी यात्रा में श्रीराम ने न केवल भौतिक तौर पर राक्षसराज लंकाधिपति रावण व महाबली बाली का संहार किया, बल्कि इससे इतर उनकी उपलब्धियां भी बहुत सारी रहीं। सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में उन्हें श्री हनुमान मिले। सुग्रीव व विभीषण को राजा बनाया। श्री राम के द्वारा की गई इन दोनों यात्राओं को कई बार करने के बाद गाजियाबाद निवासी डाॅ0 राम अवतार शर्मा ने ‘रामवन पथ गमन मार्ग‘ की खोजकर प्रभु के चरण पड़ने वाले हर एक स्थल को चिंहिन्त किया। श्रीराम की द्वितीय यात्रा का मुख्य पड़ाव चित्रकूट रहा। उन्होंने अपने दाम्पत्य जीवन का सर्वाधिक समय चित्रकूट में बिताया। दृष्टांतों के आधार पर श्रीराम, माता जानकी व भैया लक्ष्मण के साथ चित्रकूट परिक्षेत्र में 11 साल 6 महीने और 18 दिन रहे। उन्होंने यहां के 84 कोस परिक्षेत्र में कई ऋषियों के दर्शन कर भगवत चर्चा करने के साथ ही अनेक आयुध व अस्त्र प्राप्त किए।


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की सरकार ने श्रीराम वन पथ गमन शोध यात्रा को आधार बना राजकुमार राम से तपस्वीराम व फिर लंकाविजयी राम को जोड़ने की विशेष कार्य योजना बनाई थी। योजना के अनुसार अयोध्या से लेकर श्रीलंका यानि तमिलनाडु के धनुषकोटि तक एक ऐसी आल वेदर रोड का निर्माण करना था, जो हर मौसम में लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाए। इसके मुख्य पड़ाव अयोध्या, प्रतापगढ, कौशाम्बी, चित्रकूट, सतना, पन्ना, कटनी, जबलपुर, शहडोल, अमरकंटक के बाद छत्तीसगढ़ व आगे बननी थी। हैरत की बात यह है कि 15 साल तक मप्र में भाजपा का राज होने के बाद भी राम वनपथगमन मार्ग बनाने में कोई रूचि नही दिखाई। यह बात और है कि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने पिछले दिनों 22 करोड़ की पहली किस्त जारी कर यह बताने का प्रयास किया कि उनकी सरकार श्रीराम के प्रति पूरी तरह से आस्था रखती है। इधर यूपी की बात करें तो इस सड़क को लेकर बातें तो बहुत सारी हो रही हैं। लेकिन अभी तक इसका कार्य रूप दिखाई नहीं दे रहा है। फैजाबाद यानि अयोध्या से प्रतापगढ़ से होकर कौशाम्बी और फिर चित्रकूट आने वाली यह सड़क कागजों पर नहीं लेकिन नेताओं की जुबान पर कभी-कभी सुनाई दे जाती है। पिछले दिनों भाजपा के एक कद्दावर नेता ने इस सड़क का निर्माण जल्द कराने की बात कही थी।
 17 साल बीते पर नहीं बनी 150 किमी सड़क 
प्रतापगढ़ के मोहनगंज से शुरू होकर जेठवारा, कन्हैयापुर, त्रिलोकपुर, श्रंगवेरपुर, कोखराज, कौशाम्बी होते हुए चित्रकूट लाने वाली इस सड़क का निर्माण कब होगा, यह तो भविष्य के गर्त में हैं। लगता है कि इस विशेष सर्किंट का हाल कहीं बौद्व सर्किट और सिख सर्किट जैसा न हो जाए। योजना बनाते समय कहा गया था कि इस रूट पर चित्रकूट से अयोध्या तक सस्ती सरकारी बसें भी चला करेंगी, जिससे लोगों को आवागमन में परेशानी न हो।
चार जिलों को जोड़ने की थी मंशा 
रामवन पथ गमन मार्ग प्रतापगढ़, इलाहाबाद, कौशाम्बी व चित्रकूट को जोड़ने वाला था।
क्या मोदी जी प्रतापगढ से चित्रकूट सड़क बनाने के लिए देंगे हरी झंडी 
 पिछले दिनों प्रधानमंत्री के आगमन की तैयारियों के लिए निर्देश देने आए मुख्यमंत्री योगीजी ने कहा कि राम की शरणस्थली चित्रकूट है। इसे सजाने और संवारने में हम कोई कोर कसर नहीं उठा रखेंगे। अब देखना यह होगा कि जब राम वन पथ गमन मार्ग का नाम लेने वाला कोई नेता नहीं है तो  क्या इसका नाम प्रधानमंत्री के मुंह से निकलेगा। क्या वह अटल जी की इस विशेष योजना पर मुहर लगाकर चित्रकूट से सीधे अयोध्या पहुंचने के मार्ग को जल्द बनवाने का लोगों को भरोसा देगें। क्योंकि अब समय ऐसा आ रहा है कि अयोध्या को संवारने के साथ ही चित्रकूट को भी सुंदर बनाने की जरूरत है। क्योंकि कई सदियों बाद जब अयोध्या के दिन बहुरे हैं तो लोगों का रूख चित्रकूट की ओर भी होगा।

मोदी के आगमन की तैयारियों में ‘झोल‘ कर रहे अधिकारी


 उच्चाधिकारियों को दिक्कत में डालने की मंशा से काम कर रहे विभाग
प्रधानमंत्री की विशेष टीम ने रामघाट से बूढे हनुमान जी घाट तक श्री कामदगिरि परिक्रमा की रेकी की 


मोदी के आगमन का 29 फरवरी को सुयोग होने के बाद जहां एक ओर स्थानीय लोगों में प्रसन्नता है। वहीं दूसरी ओर अधिकारियों में बेचैनी दिखाई दे रही है। यूपीडा के सीईओ अवनीश अवस्थी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आगमन के बाद तो  उनकी अगुवानी करने के लिए तेजी लाई जा रही है। प्रशासनिक सूत्रों की मानें तो अभी तक की तैयारी केवल बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के षिलान्यास स्थल गोंडा गांव के पास ही सीमित दिखाई दे रही है। सूत्रों की मानें तो शुक्रवार को दिन भर चित्रकूट में रहकर मोदेी की स्पेशल इंटेलीजेंस की टीम ने गोंडा के अलावा मंदाकिनी के रामघाट से लेकर बूढे हनुमान जी घाट, कामदगिरि परिक्रमा, आरोग्य धाम व रामदर्शन, सूरजकुंड, रामशैया की रेकी की। इस दौरान उन्होंने यह बिना बताए कि वह लोग कौन है, स्थानीय लोगों से बातचीत भी की। अधिकारियों ने परिक्रमा पथ पर पयस्वनी उद्गम स्थल पर भी देखा। स्थानीय लोगों ने जब उन्हें परिक्रमा पथ पर मौजूद पुराने राजाओं द्वारा बनवाए गए बीहरों की जानकरी दी तो उन्होंने देखा उन्होंने बिरजाकुंड वाले बीहर पर अवैध कब्जे को लेकर चिंता भी व्यक्त की। प्र्यटन विभाग द्वारा सालों से शेडों को लेकर कराए जाने वाले काम को लेकर भी उन्होंने तमाम चिंताएं व्यक्त की। कहा कि एक बार लगे हुए शेड को उखाडकर दोबारा लगाना कहा ंसे उचित है। इसके अलावा बिजली की भी सही फिटिंग न होने के कारण रात में अंधेरा होने की बात भी लोगों ने बताई। अतिक्रमण के नाम पर अधिकारियों के द्वारा दी जाने वाली धमकियों से भी लोगों ने उन्हें परिचित कराया।
इस तरह से हो रहा है काम
प्रधानमंत्री के आगमन को लेकर हल्का सा जागे प्रशासन ने मंदाकिनी के बूढे हनुमान जी घाट की तरफ दो नावों को लगाकर नदी से जलीय वनस्पति निकलवाने का काम दो दिन से शुरू करवाया है। नाव से हल्के हाथों से उपर की जलीय वनस्पति निकाली जा रही है। जलीय वनस्पति नीचे से जुडी होने क ेकारण रोज बढ भी रही है। जिससे नदी की सफाई नही हो पा रही है। रामघात की तरपफ तो अचानक कउनोमिक्स के कारण नदी साफ दिखाई दे रही है। वैसे सीतापुर से लेकर रामघाट,  शिवरामपुर से लेकर सीतापुर व खोही मार्गों के पूरा न बन पाने के कारण लोक निर्माण विभाग भी प्रशासन के सामने दिक्कत पैदा कर सकता है।





  

Thursday, February 20, 2020

चित्रकूट भाग्य विधाता साबित हो सकते हैं मोदी

मोदी का चित्रकूट आगमन दे रहा भविष्य का बड़ा संकेत
29 फरवरी को मोदीजी और चित्रकूट की प्रश्न कुंडली में लग्न एक समान होने से बदल सकता है चित्रकूट का भाग्य 
श्री जयेन्द्र सरस्वती वेद विद्यालय के ज्योतिष आचार्य डाॅ गोपाल दास तिवारी ने किया दावा
संदीप रिछारिया 


योग लगन गृह वार तिथि सकल भए अनुकूल। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित श्रीरामचरित मानस बालकांड का 140 वां दोहा भले ही हमें मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम जी के धरती पर अवतरण होने का सुमंगल गान करता है, वहीं अब 29 फरवरी को चित्रकूट में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आगमन भी चित्रकूट के दीर्घकालिक संपूर्ण विकास का परिचायक सिद्व होने वाला है। चित्रकूट की प्रश्न कुंडली व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन्मकुंडली की लग्न एक समान होने से न चित्रकूट का भाग्य बदलने के आसार साफ नजर आ रहे हैं। यह दावा है चित्रकूट में गुरूकुल परंपरा का निर्वहन करने वाली संस्था सीतापुर के सेठ जी की बगिया में स्थित श्री जयेंद्र सरस्वती वेद विद्यालय में छा़त्रों को ज्योतिष की शिक्षा देने वाले डाॅ गोपाल दास तिवारी का है।

 उनका कहना है कि ज्योतिष एक प्राच्य ऋषि विद्या है। जो अंधकार में छलांग लगाकर अभीष्ट या भावी संभावनाओं का फलादेश करती है। उन्होंने चित्रकूट की 29 फरवरी की प्रश्न कुंडली व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन्म कुंडली का तात्विक विवेचन कर बताया कि प्रधानमंत्री मोदी का चित्रकूट आगमन शुभाशुभ है। डाॅ तिवारी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री केवल गोंडा की जनसभा तक ही अपनी चित्रकूट यात्रा को सीमित नही रखेगें बलिक वह चित्रकूट में एक से अधिक स्थानों पर जाएंगे। वह यहां पर कुछ घंटे बिता सकते हैं।


चित्रकूट की प्रश्नकुंडली की विवेचना कर बताया कि चित्रकूट विश्व की धार्मिक व आध्यात्मिक राजधानी है। यहां पर स्वयं प्रकट शिव विराजते हैं। ब्रहृमा जी ने यहां राम और शिव की पूजा की थी। जो कि स्वयं महादेव महाराजा मत्स्यगयेंद्र नाथ जी के नाम से विद्यमान है। विश्व की पहली नदी पयस्वनी, मां अनुसुइया के तपबल से निकली मंदाकिनी का यशोगान वेद पुराण कर रहे हैं। ऐसे स्थान की प्रश्न कुडली सदा सर्वदा शुभ है। तात्विक विवेचन के उपरांत बताया कि मीन लग्न का उदय होने व मीन के स्वामी शुक्र के कर्मक्षेत्र में उपस्थित हो जाने व साथ ही कर्मक्षेत्र में धनु राशिस्थ गुरू अपनी ही राशि में विद्यमान होने के कारण मोदीजी चित्रकूट के उन्नयन के लिए विशेष और अप्रत्याशित घोषणाएं कर सकते हैं। दशम स्थान का मंगल इस क्षेत्र के विकास हेतु अपार धन के निवेश के संकेत दे रहा है। कर्म क्षेत्रगत चंद्र के कारण इस क्षेत्र के प्रति मोदीजी का बड़ा ही सौम्य भाव रहेगा। जिसके चलते सहृदय और सरस भावना से कुछ ऐसी उद्घोषणाएं होंगी जो चित्रकूट के सम्यक उन्नयन में प्रबलता के साथ सहायक सिद्व होंगी। लगनस्थ भ्रगु के समभाव से भी तटस्थता की स्थिति वर्तमान में होना भी उपरोक्त फलादेश की संपुष्टि करता है। आय स्थान गत शनि स्वराशि में स्थित होकर भी लाभकारी उद्वम की संस्थापना का प्रबल संकेत करता हुआ दृष्टिगोचर हो रहा है।
इस प्रकार राहू और केतु से संपुटित समस्त गृह अति दु्रत गति से पूर्वोक्त समस्त कार्यों की परिणित करने में सहयोग करेंगे।

उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुंडली की विवेचना करने के बाद डाॅ श्री तिवारी ने बताया कि वृश्चिक लग्न में राशीश मंगल इन्हें अपनी अलग शैली का बनाकर अप्रत्याशित कार्य करने वाला बनाता है। संयोग से इनकी राशि भी वृश्चिक है। चंद्र भौम की युति पारिवारिक रूप से एकाकी तथा लोकमंगल की सक्रिय भावना से ओतप्रोत करती है। केंद्रस्थ सुखभावगत गुरू इन्हें विषम भटकाव की दशा में दिग्भ्रमित राष्ट्र को एक चिरंतर दिशा प्रदान करनेे वाला बनाते है।  चित्रकूट की प्रश्न कुंडली व मोदी जी की कुंडली का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि प्रश्नकुंडली में दशम भाव मंगल चंद्र, मोदी जी की कुंडली में लग्नगत हैं। अस्तु इन्हें विशेष कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करेंगे। यह भी कह सकते हैं कि सभी उभय गृह इन्हें इस स्थली की ओर आक्रष्ट कर रहे हैं। गृहों की स्थिति ही इन्हें चित्रकूट के विकास के लिए स्वस्थ क्रियान्वयन की भावधारा से परिपूर्ण करेगी।

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Wednesday, February 19, 2020

इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनने से नहीं चित्रकूट में त्रिवेणी को सदानीरा बनाने से आएगा राम राज्य: साध्वी कात्यायिनी गिरि

  कामदगिरि परिक्रमा मार्ग पर ब्रहमकुंड के शनि मंदिर में चल रही रामकथा का चौथा दिन 


संदीप रिछारिया 
चित्रकूट। मुम्बई से आईं राम कथा की मर्मग्य साधिका साध्वी कात्यायिनी गिरि ने श्री कामदगिरि परिक्रमा मार्ग के ब्रहमकुंड पर स्थित प्राचीन शनि मंदिर में चल रही कथा के चैथे दिन नदियों को बचाने के लिए सरकार व समाज को झकझोरने का काम किया। उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि यहां पर इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाए, इससे राम राज्य नहीं आएगा। यहां का राम राज्य तो तब चरितार्थ होगा जब मंदाकिनी, पयस्वनी व सरयू का संगम स्थल शानदार होगा। अंतिम सांसे ले रही पयस्वनी व सरयू को पुनर्जीवन देने का काम समाज व सरकार एक साथ करेंगे।
उन्होंने कहा कि भगवान शंकर मृत्यु के साथ मोक्ष के देवता है। यही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने सिर पर गंगा की धारा के साथ चंद्रमा को धारण करते हैं। शिव ही राम कथा को मंदाकिनी कहते हैं। यह मंदाकिनी चित्रकूट के कण-कण को जीवन देने का काम कर रही है। हमारा दायित्व है कि भगवान शंकर जी राम कथा यानि चित्रकूट की मंदाकिनी, पयस्वनी व सरयू को सदानीरा बनाए रखने के लिए सभी प्रयास करें।
उन्होंने कहा कि ऐसा कोई ऐप नही बना जो पानी दे सके।
ऐप पर आर्डर देने पर वह बाजार से बोतल बंद पानी लाकर आपको दे देगा। वह पानी का निर्माण नही कर सकता। पानी का निर्माण करने वाला ऐप केवल प्रकृति के पास है, जो नदियों व अन्य जलश्रोतों के रूप में सबको उपलब्ध कराती हैं। मानव का शरीर पंच तत्वों द्वारा बना है। पंचतत्वों में सबसे पहले जल का नाम आता है। भगवान स्वयं सभी के संरक्षण के लिए चित्रकूट में प्रकट हुए। उन्होंने मंदाकिनी, प्यस्वी, सरयू व अन्य जल धाराओं का संरक्षण करने का काम किया।
श्री राम जन्म की लीला का वर्णन करते हुए कहा कि यह तो आनंद की प्राप्ति का साधन है। जीवन का प्रमुख लक्ष्य आनंद की प्राप्ति है और यह केवल श्रीराम के स्मरण में मिलता है। श्री राम तक पहुंचने का मार्ग बाबा तुलसीदास ने शिव चरित्र से बताया। शिव पुरूष व माता पार्वती प्रकृति है। शिव यानि शंकर के पास हमेशा प्रकृति यानि स्त्री को संरक्षण करने का काम है। प्रकृति और मनुष्य जब साथ आते हैं तब आनंद आ जाता है।
 इस आयोजन की व्यवस्था देखने का काम अखिलेश अवस्थी, सत्ता बाबा, राम रूप पटेल, गंगा सागर महराज, स्वामी धर्मदास महराज कर रहे हैं। कथा सुनने के लिए हजारों की भीड़ जुट रही है। 

पावन मंदाकिनी की तरफ बढ़ रहे कदम

काउनोमिक्स से बदल रही मंदाकिनी की सूरत व सीरत . जबलपुर से आई लैब रिपोर्ट ने किया पानी की गुणवत्ता सुधरने का सत्यापन . घुलनशील आक्सीजन के साथ ही नाइट्रोजन की क्वालिटी सुधरी 

 संदीप रिछारिया 

 धरती, आकाश, जल, वायु और अग्नि के संबधों को एकाकार कर  जल की सेहत को सुधारने के लिए बनाई गई काउनोमिक्‍स का असर मंदाकिनी के जल पर साफ तौर पर दिखाई देने लगा है। पिछले 24 दिनों में जहां प्रत्यक्ष तौर पर तट पर सीढ़ियों के नीचे साफ पानी दिखाई देने लगाए वहीं पानी की क्वालिटी का सुधार आम लोग महसूस कर रहे हैं। पिछले दिनों आरके लैब, जबलपुर से आई टेस्टिंग रिपोर्ट ने इस बात के पूरे साक्ष्य दिए कि 24 दिनों में मंदाकिनी के जल की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार हुआ है। वैदिक काउनोमिक्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रतिनिधि प्रदीप द्विवेदी इस बात को लेकर पूरी तरह आशान्वित हैं कि आने वाले समय में 500 मीटर उपचारित किए गए मंदाकिनीके जल की मात्रा में जहां पूर्ण सुधार मिलेगा, वहीं इससे ज्यादा बड़े दायरे को भी फायदा होगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से यहां के पुराने लोग पहले मंदाकिनी के जल में मछलियां व कछुओं के साथ अन्य जलीय जंतु विद्यमान रहने की बात करते हैं । आने वाले समय में ऐसे ही दृश्य फिर से देखने को मिलेंगे।


12 जनवरी से मंदाकिनी के जल में हर्बल उपचार की प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी। उपचार के पूर्व आरके लैब जबलपुर से आए तकनीशियनों ने जल को संग्रहित किया। प्रयोगशाला में जल की 9 अलग.अलग तरह से क्वालिटी जांचने का काम किया गया। जल में आक्सीजन व नाइट्रोजन की मात्रा के साथ उसकी गुणवत्ता की जांच की गई। 24 दिन की लैब टेस्टिंग रिपोर्ट के अनुसार जल का रंग गंदे की जगह साफ हुआ। जबकि गंदगी की मात्रा 41 पीपीएम से गिरकर 25 पर आ गई। सामान्य स्थिति में यह 30 पीपीएम होनी चाहिए । डिसाल्ट आक्सीजन ;डीओ की मात्रा 5,3 से बढ़कर 6,21 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई। आक्सीजन की मात्रा लगभग 20 प्रतिशत बढ़ती दिखाई दी। इसी प्र्रकार बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड ; बीओडी भी 17 फीसद घटकर 8,91 से 7,39 हो गई। टीकेएन यानि जल में अवशोषित नाइट्रोजन खत्म हो चुकी थी जो कि बढ़कर 0,62 तक पहुॅच गई।

स्थानीय राम प्रकाशए दिनेश, राहुल सहित अन्य लोगों ने कहा कि वास्तव में नदी का जल पहले से बेहतर दिखाई दे रहा है।
 नगर पंचायत चित्रकूट के मुख्य कार्यपालन अधिकारी रमाकांत शुक्ला ने कहा कि प्राथमिक रिपोर्ट में जल की गुणवत्ता अच्छी होने के संकेत मिल रहे हैं। इसको अब ज्यादा अच्छी तरह से उपचारित करने के लिए आदेश दिए जांगे।
पथरा के तालाब पर भी होगा प्रयोग
कंपनी के प्रतिनिधि प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि काउनोमिक्स वास्तव में गोमूत्र, गोबर के साथ जड़ी बूटियों के मिश्रण से तैयार मिक्चर है। इसे जल में मिलाकर जलाशय या नदी में डाल दिया जाता है। प्रक्रिया को निश्चित समय में कई बार किया जाता है। इसके परिणाम एक सप्ताह में ही दिखाई देने लगते हैं। अभी पथरा गांव के गंदे तालाब को भी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया जा रहा है। जल्द ही उसे भी उपचारित करने का काम किया जाएगा। इसके बाद सतना जिला प्रशासन से आगे के काम की बात की जाएगी। 


Tuesday, February 18, 2020

आश्चर्यों की पहाड़ी का दर्शन कर आश्चर्य में डाल सकते हैं मोदी

 श्रीराम की आश्रय स्थली पर मोदी कर सकते हैं मंदाकिनी की सैर

संदीप रिछारिया

 भले ही अभी प्रधानमंत्री मोदी केम छो ट्रम्प के बाद अब नमस्ते ट्रम्प के जरिए विश्व के सबसे ताकतवर राजनेता की अगवानी करने की मंशा में व्यस्त हों। लेकिन उन्होंने हाउडी मोदी के जरिए दिखा दिया है कि विश्व के सबसे ताकतवर व्यक्ति को भी उनकी जरूरत है। शायद विश्व में मोदी ही इकलौते ऐसे राजनेता हैं जिन्हें जितना आधुनिकीकरण के लिए जाना जाता है उतना ही उन्हें प्रकृति से भी प्रेम है। जल, जंगल और जमीन के साथ आध्यात्म और तपस्या को लेकर संजीदा मोदी जी अपने प्रधानमंत्रित्व काल की पहली चित्रकूट यात्रा में संभव है कि कामतानाथ के दर्शन करने के साथ ही लक्ष्मण पहाड़ी पर बनाए गए रोप वे का भी आनंद उठाये। दिल्ली के विशेष सूत्रों की मानें तो वह मंदाकिनी नदी पर जाकर उनका दर्शन व आराधना भी कर सकते हैं। 

गौरतलब है कि चित्रकूट में उनके आगमन का सही प्रोट्रोकाल तो 27 फरवरी को ही आएगा। लेकिन इतना साफ है कि वह यहां पर आने के बाद केवल गोंडा ( बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के उद्घाटन स्थल ) तक ही अपने आपको सीमित नही रखेंगे। वैसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की दो दिनों तक अगवानी कर अपने प्रकल्पों के दर्शन कराने वाला दीन दयाल शोध संस्थान भी इस बात को लेकर आशान्वित है कि शायद उन्हें अपने परिसर मे ंप्रधानमंत्री को लाने का कार्यक्रम मिल जाए। इस बावत संस्थान के पदाधिकारी काफी पहले से ही दिल्ली की दौड़ लगातार लगा रहे हैं। आरएसएस व संघ की नजदीकियों के कारण शायद उन्हें यह सौभाग्य प्राप्त भी हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो मोदी जी चित्रकूट की प्राकृतिक सुषमा को शायद हेलीकाॅप्टर से ही निहार लें।


 वैसे परिक्षेत्र में निवास करने वाले जगदगुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ता भी प्रधानमंत्री का कार्यक्रम अपने विश्वविद्यालय में लगवाने के लिए जोर लगाए हुए हैं। वैसे पूर्व में दो बार उनके कार्यक्रमों में विशेष राजनेताओं के न आने के कारण उनके कार्यक्रम उपेक्षित रह गए थे। युवराज के पट्टाभिषेक में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के निधन के कारण तमाम राजनेता नही आ सके थे। वह तो केवल बाबा रामदेव के आने से थोडा बहुत आकर्षण आ सका था। इसी प्रकार पिछले दिनों दीक्षांत समारोह में ठंड व कोहरे के कारण गृहमंत्री का आगमन नही हो सका, खैर मुख्यमंत्री के आगमन से कुछ साख बच गई थी। इसके अलावा सद्गुरू सेवा संघ ट्रस्ट, प्रमुख द्वार व अन्य संस्थाएं भी अपने यहां प्रधानमंत्री को लाने के लिए पैरवी कर रही हैं। 
सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में मंदाकिनी गंगा का भ्रमण जुड़ सकता है। क्योंकि प्रधानमंत्री को नदियों के किनारे जाना पसंद है। वह काशी के साथ अहमदाबाद आदि स्थानों में ऐसा करते रहे हैं। फिलहाल उनका प्रोटोकाल आने के बाद सही पता पड़ पाएगा कि उनका चित्रकूट में कार्यक्रम कहां- कहां पर जाने का है। लेकिन चित्रकूट के वासी चाहते हैं कि उनका आगमन चित्रकूट में हो और वह मंदाकिनी गंगा में आचमन करने के साथ श्री कामदगिरि की परिक्रमा करें और लक्ष्मण पहाड़ी पर रोप वे का आनंद भी उठाएं। 


चित्रकूट के सभी जल स्रोत हो पावन: साध्वी कात्यायनी गिरी

पयस्वनी उदगम ब्रह्मकुंड के शनिमंदिर में राम कथा का तीसरा दिन

चित्रकूट। पावन धाम के पावनस्थल ब्रह्मकुंड के शनि मंदिर पर चल रही श्री रामकथा के दौरान उपस्थित भक्तो को महादेव के विवाह का दर्शन कराया। उन्होंने बताया कि बाबा की बरात के बराती विचित्र वेशभूषा के साथ विचित्र वाद्ययन्त्रो पर अलौकिक नृत्य कर रहे थे।

उन्होंने कहा श्रद्धा का विश्वास से अटूट सम्बन्ध हैं ।संदेह में विश्वास नही हो सकता यह केवल श्रद्धा में ही संभव हैं । माँ पार्वती व  महादेव का विवाह हमें बतलाता है कि इनको अलग करना संभव नहीं है।ये दो दिखते हुए भी दो नहीं  है। बल्कि  श्रद्धा और विश्वास का ऐसा मिश्रण है कि ये एकाकार हो जाते है। ये तो एक दूसरे के पूरक हैंं
उन्होंने कहा कि हम नदी को बचाने में विश्वास रखते हैं तो वह विश्वास तब तक रहेगा जब  अपार श्रद्धा प्रकृति के प्रति हमारे मन में होगी ।बाबा कि बरात अलौकिक है
शिव का दरबार सबके लिए खुला है।भोले नंदी कि सवारी करते हैं अर्थात धर्मारुढ़ होकर विवाह करते हैं । व्यक्ति कोई भी कार्य करे धर्म से विमुख न हो.. रास्ते से ज़्यादा महत्त्व सवारी का है ।
दक्ष ने यज्ञ किया ,धर्म किया, रास्ता धर्म का था पर सर पर अधर्म सवार था।बाबा कहते हैं रास्ता तो निश्चित महत्त्वपूर्ण है परन्तु सवारी भी धर्म की  हो। अधर्म पर सवार होगे तो धर्म का मार्ग भी अधर्म हो जायेगा।
शैलजा का पाणिग्रहण शिव ने किया ।प्रकृति का साथ पुरुष के हाथ में है । यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि जिसका हाथ हमने थामा है उसका संरक्षण हम करे
प्रत्येक स्त्री व पुरुष के हाथ में प्रकृति का हाथ है ।उसको संभालना सजाना सवारना हम सबकी ज़िम्मेदारी हैं ।
उन्होंने कहा कि भोले बाबा स्वयं सजते नहीं ,परन्तु माता को  विवाह के बाद भी आभूषणों से सुसज्जित रखते हैं ।
खुद से ज़्यादा प्रकृति का ख्याल रखते हैं ।
आभूषण प्रतीक हैं साज सेवा के
प्रकृति को सजाना प्रत्येक मानव का धर्म है ।प्रकृति को चोट नही पहुँचाना है ।उसको बचाना है उसको सजाना है उसे सवारना है।  कथा को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था अखिलेश अवस्थी, सत्यनारायण मौर्य सत्ता बाबा, धर्मदास, विधासागर महराज, शिवगोबिंद पाल सहित अन्य लोग कर रहे है।

इस तरह के विकास से चित्रकूट को बचाइये मोदी जी

इक्वाक्षु वंशियों की पुरातन शरणस्थली है चित्रकूट 

संदीप रिछारिया 


 दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार चित्रकूट आ रहे नरेंद्र दामोदर दास मोदी के पिटारे से चित्रकूट के विकास को लेकर क्या निकलेगा, यह तो अभी भविष्य के गर्त छिपा है। लेकिन रविवार को योगीजी ने दावा किया कि हम राम के आश्रय स्थल को विकास की परिधि से कैसे बाहर रख सकते हैं। इक्वाक्षु वंश के राम और उनसे पहले महराज अंबरीश की शरणस्थली पर भाजपा सरकार की कृपा करने का आशय अब छह वर्षों में समझ आया, पर वास्तविकता में विकास की कहानी कोसों दूर ही दिखाई देती है।
वन प्रस्तरों के साथ ऐतिहासिक काल की गुफाओं, हजारों वर्ष पुराने भित्ति चित्रों के साथ चौरासी कोस में फैले सतयुग, त्रेता, द्वापर के साथ कलियुग के तमाम ऐतिहासिक
पाषण दस्तावेज इस बात की गवाही देते हैं कि अगर इन सब स्थानों पर वास्तविकता में सरकार अपनी नेमत बरसाए तो चित्रकूट में सही मायने में विकास हो सकता है। यह बात दीगर है कि विकास के नाम पर सरकारों ने सीमेंट और कंक्रीट की इमारतें खड़ी कर यहां की बहुमूल्य वन संपदा को नष्ट करने का काम ज्यादा तेजी से किया। जनता के रहनुमा बनने वाले नदियों से निकलने वाली बालू, पहाड़ों के पत्थर, जंगलों से मिलने वाली लकड़ियों व औषधियों के साथ ही भूमि के गर्भ में छिपे तमाम रत्नों के दम पर धनकुबेर बन यहां पर प्रदूषण फैलाने का काम किया। धन बल, जन बल के साथ ही विचार बल का प्रदूषण यहां पर मुख्य समस्या है।
वाल्मीकि रामायण कहती है कि राम के जमाने में चित्रकूट का वैभव क्यों था। क्यों यहां पर उन्हें भारद्वाज जी ने भेजा, क्यों वे यहां पर साढे ग्यारह साल रहे। तमाम ़़ऋषि मुनियों के पास याचक बनकर जाने के पीछे अभिप्राय क्या था। इसका जवाब एक छोटी सी कथा में भले ही कथाकार दे दें पर इतना तो साफ था कि वैदिक युग में चित्रकूट ज्ञान का वह केंद्र था जिसका मुकाबला मगध, अवंतिका, पाटिलपुत्र या अन्य बड़े साम्राज्य नही कर पाए। राम को चित्रकूट में ऐसा क्या मिला तो विश्वामित्र और भारद्वाज की योजना के अनुसार उन्हें चित्रकूट में आना पड़ा। अगर हम श्रीरामचरित मानस के अंदर घुसकर कथा के वास्तविक चरित्र को समझने का प्रयास करें तो पता चलता है, त्रेता युग में चित्रकूट अग्नेयास्त्र, आयुधों के उत्पादन का एक बड़ा केंद्र था। राम को मिथिला ले जाने के दौरान महिर्षि विश्वामित्र ने ताडका खरदूषण के वध के द्वारा जांच कर ली थी कि यही राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने इस पुनीत कार्य के लिए माता कैेकेई को तैयार किया। माता कैकेई ने आगे की रचना कर उन्हें पत्नी समेेत वन में भेजने का निर्णय लिया। चित्रकूट आकर राम ने विभिन्न ऋषियों से मिलकर तमाम आयुध प्राप्त किए। राम को ब्रहस्पतिकुंड के पास से जो धनुष व अग्निबाण मिले, उन्हीं से रावण की मृत्यु की बात सामने आती है। साढे ग्यारह वर्ष के बाद दंडकारण्य में प्रवेश करना भी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार था। बालीयुद्व,सुग्रीव से मिलना भी उसी कड़ी का अंश था। राम ने दिखाया कि अगर अपने शत्रु से विजय करनी है तो अपनी धरती से दूर रहकर बिना अपने घर का एक भी पैसा या व्यक्ति खर्च किये हुए कैसे लड़ाई को जीता जा सकता है। कैसे संगठन में एकता पैदा कर लड़ाई को हर एक के घर की लड़ाई में तब्दील किया जा सकता है।

 आज फिर एक नए धर्मयु़द्ध की जरूरत है। यह युद्ध विकास के आडंबर को लेकर है। जहां विकास के नाम पर लगातार विनास कर चित्रकूट को घायल किया जा रहा है। पर्यावरण का दोहन कर लगातार विकास की गाथा सुनाई जा रही है। वन प्रस्तरों को काटा जा रहा है, नदियों से बालू निकालकर उन्हें खोखला किया जा रहा है। पहाड़ों को खत्म किया जा रहा है। जमीन के अंदर से तमाम अयस्क निकालकर दोहन किया जा रहा है। इसको रोकना होगा।
 विशेष निवेदन यह है कि चित्रकूट या बुंदेलखंड का विकास केवल पर्यटन को आधार मानकर किया जा सकता है। अगर सभी इलाकों में हर एक स्थान की पहचान कर देशी व विदेशी प्रचार माध्यमों से उन्हें पूरे विश्व के सामने लाने का काम किया जाए और हर स्थान के बारे में सही जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए तो चित्रकूट या बुंदेलखंड देश में पर्यटन विकास को लेकर एक बड़ा स्थान साबित हो सकते हैं। और बिना बालू निकाले, बिना पत्थर तोड़े, बिना जमीन को खोखला किए राजस्व प्राप्ति का भी बड़ा साधन बन सकते हैं।

 

चित्रकूट: जहां परमात्मा बन जाते हैं याचक

चित्रकूट में विकास के मायने: (भाग एक)

क्यों श्री राम ने चित्रकूट में पूरा नही किया अपना वनवास 

संदीप रिछारिया 

चित्रकूट में आकर मुख्यमंत्री ने यहां पर विकास की गंगा बहाने का दावा किया। कहा कि जब राम की जन्मभूमि पर हमारी नेमतें बरस रही हैं तो हम उनकी आश्रय स्थली चित्रकूट को कैसे छोड़ देंगे। एक्सप्रेस वे, डिफेंस काॅरीडोर के सहारे बुंदेलखंड में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री को शायद यह भान नहीं कि चित्रकूट का उल्लेख वैदिक धर्म के सर्वाधिक पुरातन ग्रंथ ऋग्वेद की पिप्पलादि शाखा में साफ तौर पर किया गया है। उसमें कहा गया है कि आदि काल में राजा कसु यहां के प्रतापी शासक थे। बाबरनामा में तो स्वयं बाबर ने इस बात को स्वीकार किया है कि वह आर्यावर्त के तीन शासकों से भय खाता है। जिसमें एक चित्रकूट के प्रतापी महराज रामचंद्र देव हैं। 
चित्रकूट में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाली सरकार के मुखिया योगी जी को शायद ज्ञात ही होगा कि यह धरती त्रिवेद ( परमपिता ब्रहमा, श्री हरि विष्णु व महादेव ) की जननी स्थली है। यहां पर त्रिदेवों को एक बार नही अनेक बार अवतरित होना पड़ा। श्री हरि विष्णु के अवतारों की तो यह लीला स्थली है। राम, परशुराम, हंस, दत्तात्रेय, सहित अन्य अवतारों को यहां पर आना पड़ा। श्रीकृष्ण अवतार के अवतरण की शुरूआत इसी भूूमि से हुई। 
विकास की बात करें तो तमाम साहित्य यह धारणा प्रस्तुत करते हैं कि आखिर त्रेतायुग में श्री राम को महिर्षि भारद्वाज ने चित्रकूट में ही क्यों भेजा। कौन से कारण थे कि राजकुमार श्रीराम यहां पर कंदराओं और वन प्रस्तरों में निवास करने वाले ऋषियों के आश्रमों में याचक की भांति गए। वे कौन से कारण थे कि उन्होंने अपने वनवास का में 11 वर्ष 6 महीने और 18 दिन बिताने के बाद दंडकारण्य में प्रवेश किया। आखिर उन्हें चित्रकूट के बाद अपनी यात्रा की आवश्यकता क्या थी। अगर वह चाहते तो वह चित्रकूट में 14 वर्ष व्यतीत कर वापस अयोध्या लौटकर अपना राजपाट संभाल सकते थे। यह कुछ सवाल हैं जो आपके चिंतन के लिए छोड़कर जा रहा हूं। आशा है कि आप इन सवालों के जवाब जरूर ढ़ंूढेंगे। नही तो कल मैं स्वयं अपने बुद्वि विवेक से इन सवालों के जवाब व आगे की कहानी बता
ने का प्रयास करूंगा।

Monday, February 17, 2020

कर्मघाट की कथा को नहीं मिलता कभी विश्रामः साध्वी कात्यायनी गिरि

 कथा बन रही है पयस्वनी नदी को जिंदा करने का आंदोलन 

चित्रकूट। अयोध्या आंदोलन के दो बड़े चेहरे महंत नृत्य गोपाल दास जी महराज व युगपुरूष संत परमानंद जी की शिष्या साध्वी कात्यायनी गिरि ने पयस्वनी नदी उद्गम स्थल ब्रहृमकुंड स्थित प्राचीन शनि मंदिर में श्रीराम कथा के दूसरे दिन राम के नाम को कर्तव्य का पूरक बताया। कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी महराज जी ने कलियुग में भव सागर पार करने का मंत्र राम के रूप में दिया है। वास्तव में इस मंत्र को जपने का आशय यह है कि अपनी बुद्वि को निर्मल रखकर परमात्मा की प्राप्ति करें।
किसी भी ध्येय की प्राप्ति के लिए ज्ञान, भक्ति व कर्म के साथ शरणागति होना पड़ेगा। यदि हमें नदी बचानी है, हमें पर्यावरण बचाना है, हमें अपना शहर सुंदर बनाना है, तो हमें ज्ञान के साथ कर्म की शरण लेनी पड़ेगी। कर्मघाट में कभी विश्राम नही होता।
उन्होंने कहा कि संशय भरी बुद्वि से विवेक का जन्म नही हो सकता। माता पार्वती की बुद्वि निर्मल है, जबकि मां सती की बुद्वि में संशय है। इसलिए माता पार्वती की पूजा की जाती है। नदियों को बचाने के लिए हम सबको अपने मन के साथ कर्म के लिए भी तैयार करना होगा।
उन्होंने कहा कि बुद्वि ही मनुष्य को भगवान की पहचान कराने वाली है। बुद्वि श्रद्वा युक्त हो जाए तो वह भगवान को प्राप्त करा देती है। तर्क से भगवान को नही पाया जा सकता। केवल कान से कथा नही सुन सकते। मन, बुद्वि के साथ जब कान एकाकार होते हैं तभी कथा मन के अंदर प्रवेश कर आनंद देती है। जब यह संदेह से युक्त होती हे तो यह परमात्मा से दूर कर देती है। विज्ञान के कारण प्रदूषण बढ रहा है, विज्ञान जीवनदायी व विनाशक दोनों है। हमें निर्णय करना होगा कि वास्तव में सही क्या है।
इस दौरान कथा की व्यवस्था का कार्य अखिलेश अवस्थी, सत्ता बाबा, स्वामी गंगासागर जी व संत धर्मदास देख रहे हैं। परिक्षेत्र के सैकड़ों संत व स्थानीय लोग कथा के श्रवण का कार्य करते रहे।

लुप्त पयस्वनी को जीवांत बनाने को सब जुटें- साध्वी कात्यायिनी

संदीप रिछारिया

- रामकथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु,तुलसी सुभग स्नेह वन श्री रघुवीर विहारु।

चित्रकूट। श्री

रामजन्म भूमि के लिए लंबे समय तक संघर्ष करने वाले मणिराम छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास से सन्यास की दीक्षा व वर्तमान श्री राम जन्मभूमि मन्दिर न्यास के प्रमुख सदस्य युगपुरुष स्वामी परमानंद जी की शिष्या साध्वी कात्यासनी गिरि ने विश्व की पहली नदी पयस्वनी के पावन स्रोत ब्रह्मकुंड के ऊपर स्थापित प्राचीन शनि मंदिर प्रांगण में श्री रामकथा का शुभारंभ किया।
उन्होंने कथा की शुरुवात करते हुए रामकथा का चित्रकूट से सम्बंध परिभाषित करते हुए कहा कि चित्रकूट के कण कण में राम जी कथा विधमान है। उन्होंने ब्रह्मकुंड के बारे में बताते हुये कहा कि यह कथा अभी केवल पयस्वनी में मौजूद दिव्य आत्माओ को सुना रहे है। पयस्वनी की धारा सूख गई है,इसे जीवनदान देने के लिए हमे सबको स्वार्थ से ऊपर आना होगा, सभी को जुटना होगा। उन्होंने कहा कि स्वार्थ में  व्यक्ति अपने आपने रमने लगता है,वह किसका क्या  नुकसान कर रहा है,उसे पता नही चलता। रोज पूजा करने वाला भी मन्दाकिनी पयस्वनी का नुकसान कर रहा है।सभी लोग एक साथ आये तो पयस्वनी जीवित होगी। रामकथा ऐसा माध्यम है,जिससे सभी जुड़ेंगे और सभी जीवनदायिनी नदियों व जलस्रोतों को जीवन देने का काम करेंगे। रामकथा की शुरुवात 7 श्लोको से होने को परिभाषित किया। इस दौरान भारी मात्रा में साधू संत व स्थानीय लोग मौजूद रहे।कथा के आयोजक शनि मंदिर के सत्ता महराज व अखिलेश अवस्थी है। कथा में विशेष सहयोग स्वामी धर्मदास जी व महराज गंगासागर जी का है।

Saturday, February 15, 2020

चित्रकूट के विकास के जिम्मेदार ‘राहू-केतू‘


- परिक्रमा पथ से पुराने टीन व खंभे निकालकर नए लगाने की तैयारी
- रामघाट पर वाटर लेजर शो बन गया मजाक
- रामघाट के प्रमुख मंदिरों में करोड़ों रूपये से लगवाई गई लाइटें बेकार
- पांच साल में नही बना सकी पांच किलोमीटर सड़क पीडब्लूडी 

संदीप रिछारिया

रामलला का नाम लेकर विकास का दावा करने वाली योगी सरकार का विकास उनके अधिकारी नही होने दे रहे हैं। चित्रकूट को विश्व के मानचित्र में लाने के लिए भरपूर प्रयास करने वाली सरकार के नुमाइंदे ही विकास का काम यथार्थ रूप् में करने की जगह अपनी जेबें भरने का काम कर रहे हैं। आका के द्वारा विकास के लिए जय विजय घोषित किए गए अधिकारी वास्तव में राहू केतू का रूप धरते दिखाई दे रहे हैं।
विकास की बानगी की शुरूआत करते हैं कामदगिरि परिक्रमा पथ से, यहां पर डीएम का आदेश है कि कम से कम तीन बार सूखा पोछा लगना चाहिए। स्थानीय लोगों की मानें तो कई महीने पहले मुख्यमंत्री के आने के बाद से आज तक पोंछा नही लगा है। कहने को तो यहां पर कई गांवों के सफाईकर्मियों की बड़ी फौज लगा दी गई है, पर वे जिला पंचायत राज्य अधिकारी की कृपा से वैसे ही काम कर रहे हैं जैसे वह अधिकारियों के घरों में रोटी बनाने से लेकर झाडू, पोंछा व बर्तन इत्यादि का करते हैं। वैसे भी परिक्रमा पथ की सफाई की जिम्मेदारी उठाने वाले सफाईकर्मियों का सबेरा सुबह दस बजे के बाद होता है, एक बार हल्की झाडू मारकर उनके काम की इति श्री हो जाती है।
वर्ष 2005 में समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद परिक्रमा पथ पर नए पत्थर व शेड आदि लगाने का काम प्रारंभ हुआ। अगर देखा जाए तो पिछले 15 साल बीत जाने के बाद आज तक पत्थर लगने का काम पूरा नही हो सका। अभी तक खाने कमाने की नियत के चलते चार बार पत्थर बदले जा चुके हैं। पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने खाने कमाने के और रास्ते परिक्रमा पथ पर लगी टीन शेड से निकालने का चुना है। एक सप्ताह में बरहा के हनुमान जी के पास, साक्षी गोपाल मंदिर के पास व बिरजा कुंड के पास व लाल बाबा आश्रम के सामने शेड को पूरी तरह से निकाल दिया है। पूर्व प्रधान अशोक त्रिपाठी कहते हैं कि टीन अगर बंदरों ने तोड़ी थी तो नई टीन लगा दी जाती। पूरा स्ट्रक्चर व खंभों समेत उखाड़ना समझ में नही आ रही है। अभी तक पुराने शेंडों में बिजली न शुरू करा पाए विभाग के द्वारा यह खाने कमाने का नया तरीका है।
रामघाट में विकास की बानगी देखें तो पर्यटन विभाग द्वारा एक जनवरी से शुरू किया जाने वाला लाइट लेजर शो अभी भी टेस्टिंग के दौर में चल रहा है। कभी साउंड बजता है तो कभी केवल फौव्वारा चलता है। तूुलसीदास जी द्वारा सुनाई जाने वाली रामकथा का अता पता नही है। चरखारी मंदिर के नीचे से लेकर छवि किशोर मंदिर की तरफ बनने वाला लोहे का पुल दिसंबर में पूरा होना था, पर वह भी अभी केवल बन ही रह रहा है। जिसकी वजह से लगातार लोगों को दिक्कत हो रही है। इसी प्रकार रामधाट के विभिन्न मंदिर यज्ञवेदी, बड़ा अखाड़ा, स्वामी मत्तगयेन्दनाथ जी महराज में लगी लाइटें भी ज्यादा पावर फुल नही दिखाई देतीं। बूढ़े हनुमान जी से लकर चरखारी मंदिर तक रामघाट में लगाई गईं करोड़ों रूपयों की लाइटें बेकार पड़ी हैं। खंभों में लगाई गई एलईडी लाइटें भी महीनों से लोगों ने जलती नही देखी। भाजपा के वरिष्ठ नेता के प्रभाव के बाद प्रशासन द्वारा संतो के सहयोग से प्रारंभ की गई मंदाकिनी गंगा आरती शुरूआत से विवादित रही। कभी एमपी के संतों को ज्यादा तरहीज देने के कारण तो कभी भरत मंदिर के महंत द्वारा कोषाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के कारण लगातार बातें सूनाई देती रहीं। पिछले दिनों वृन्दावन के संत रामदास द्वारा मंदाकिनी के घाट पर इसके विरोध स्वरूप अन्न जल का त्याग करने की बात भी खूब दिनों तक सुर्खियां बनीं। वैसे अभी भी मंदाकिनी आरती का स्वरूप् बदला नही है। आयोजक जल्द ही इसके फार्मेट में बदलाव की बात करते हैं।
 अब अगर बेडी पुलिया से लेकर रामघाट तक के मार्ग की बात करें तो पांच साल बीत जाने के बाद यह मार्ग अभी तक नही बन सका है। अबबत्ता पिछले पांच सालों में लोक निर्माण विभाग ने मार्ग को बनाने के नाम पर जहां बार-बार अपना इस्टीमेट रिवाइज कर जेबें भरने का काम किया, वहीं स्थानीय लोगों को परेशान करने का कोई भी तरीका छोड़ा नही है। हाल का मामला पर्यटक बंगले से सटे मलकाना रोड का है। दोनों तरफ से लेाकर सड़क किनारे बनने वाले नाले को अधूरा छोड़कर उसे छोटे लाने में मिलने का प्लान किया गया है। हाल यह है कि मोहल्ले के लोगों ने इसकी शिकायत जिलाधिकारी से की। जिलाधिकारी ने समस्या के समाधान का आश्वासन दिया, पर अवर अभियंता कमल किशोर लगातार स्थानीय लोगों से अपनी गुंडई कर रहे हैं।





Monday, February 10, 2020

वेलेंटाइन विशेष- चित्रकूट: काम नहीं राम की भूमि

श्रीराम ने चित्रकूट में की थी मां जानकी की पूजा
अपने हाथों से पुष्पों के आभूषण बनाकर किया था श्रंगार व पूजन  

रां ब्रहमनाद का वह स्वर जो सृष्टि के आरंभ से भूमंडल में गुंजायमान है। इस शब्द से निकलकर जब वह म से जुड़ा तो राम हो गया। अवध के राजकुमार राम के रूप में जब वह चित्रकूट आए तो वनवासी की तरह। मां केकैई से मिली सीख की वनवास में वनवासी के साथ रहना। प्रियतमा के साथ रहकर भी प्रेम रस में न डूबना, राम ने साकार कर दिखाया। दाम्पत्य जीवन का सर्वाधिक समय चित्रकूट में बिताने के दौरान राम ने यह दिखाया कि कैसे वह अपनी पत्नी के साथ सुमधुर क्षणों का स्वर्गीय आनंद ले सकते हैं।

विदेशी संस्कृति से ओतप्रोत युवा पीढ़ी के दिमाग में गंदगी भरने के लिए कुत्सित प्रयास लगातार जारी हैं। वेलेंटाइन डे वास्तव में हमारी संस्कृति को बर्बाद करने का मैकाले जैसा प्रयास है। वेलेंटाइन को संत बताकर प्रपोज डे, हग डे, रोज डे जैसे दिन बनाकर युवाओं के दिमाग में महिला व पुरूष शरीर के प्रति गंदगी भरने की गंदी मानसिकता है। जिन देशों में पिता, पुत्र, पत्नी, पुत्री व रिश्तेदारों के पास अपनों से मिलने का समय नहीं है। एक ही घर में अजनबियों की तरह रहते हैं। एक जीवन काल में दर्जनों विवाह करते हैं। यह उन्हीं के लिए उचित है। हम अपने आराध्य को जानें समझें और उसी हिसाब से आचरण करें। हमारे आराध्य श्रीराम व मां जानकी हैं। आइये जानते हैं कि उनके प्रेम का स्वरूप क्या था। 



आदि कवि महिर्षि वाल्मीकि, संत शिरोमणि तुलसीदासजी महराज या फिर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ सभी की लेखनी इस विशेष तथ्य और घटनाक्रम पर खूब चली, इतनी चली कि सभी ने भाव विहवल होकर उन विशेष क्षणों को न केवल जीवांत किया बल्कि यह भी सिद्व कर दिया कि प्रेम एक प्रक्रिया है, जो शास्वत है और उसमें काम को कोई स्थान नहीं। यह तो हर जीवधारी के अंदर बहती है। इस प्रक्रिया को अगर कायदे से रूपांतरित कर दिया जाए तो वह रावण जैसे राक्षसराज को मारने के लिए बड़े शस्त्र के रूप में भी काम आ सकती है।
महिर्षि वाल्मीकि ने अपने भाव व्यक्त किए ,,,
 मनः शिलाया स्तिलको गण्ड पाश्र्वे निवेशितः।
त्वया प्रणष्टे तिलके तं किलस्मर्तुं मर्हसि। (वा0रा0 5/40)


कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ के शब्दों में कहें तो

‘‘ मातः दशभुजा विश्व ज्योति हूं मैं, आश्रित

हो विद्व शक्ति से है खल महिषासुर मर्दित

जन रंजन चरण तल, धन्य सिंह गर्जित

यह, यह मेरा प्रतीक मातः समझा इंगित

मैं, सिंह इसी भाव से करूंगा अभिनंदित‘‘

(अनामिका)

इस दृश्य को जब महाकवि तुलसीदास जी महराज ने अपने भावों से उकेरा तो पूरी भावनाएं साफ हो गईं,,
फटिक शिला मृदु विशाल, संकुल सुरतरू तमाल
 ललित लता जाल, हरित छवि वितान की
मंदाकिनी तटिनि तीर मंजुल मृग विहंग भीर
धीर मुनि गिरा गंभीर सामगान की। 
मधुकर पिक वरहिं मुखर सुन्दर गिरि निरझर झर
जल कन धन छाॅह छन प्रभा न भान की 
 सबरितु रितुपति प्रभाउ संतत बहै त्रिविध बाउ
 जनु बिहार वाटिका नृप पंचवान की।
विरचित तहं परनशाल, अति विचित्र लखनलाल
 निवसत जॅह नित कृपाल राम जानकी
निजकर राजीव नयन पल्लव दल रचित शयन
प्यास परस्पर पीयूष प्रेम पान की।
सिय अंगलिखै धातु राग सुमननि भूषण विभाग
तिलक करनि क्यों कहउं कला निधान की 
माधुरी विलास हास गावत जस तुलसिदास
बसति हृदय जोरी प्रिय परन प्रान की। 
( गीतावलि) 
महाकवि ने इस अतभुद प्रेमरस का वर्णन मानस में किया तो आनंद की रसवर्षा का कोई ओर- छोर न रहा
‘ एक बार चुनि कुसुम सुहाए, मधुकर भूषण राम बनाए।
सीतहिं पहिराए प्रभु सादर,बैठे फटकि शिला पर संुदर।।

लगभग तीनों महान कवियों ने अपनी भावना को व्यक्त करने के लिए एक ही स्थान व कथानक चुना। यह बात और है कि तीनों के कहने का ढंग अलग-अलग है। लेकिन इसका यर्थाथ तो यही निकलता है कि शेषावतार लक्ष्मण जी की अनुपस्थिति में प्रभु श्रीराम ने श्रंगारवन से अपने हाथों से फूल चुनकर उनके आभूषण बनाएं और फिर का माताजी का श्रंगार कर पूजन किया। पैरों में महावर, अक्षत व कुंकुम से तिलक लगाने के साथ ही सिंदूर भी मांग में भरा। तुलसीदास जी ने अपने दोहों में सादर शब्द का उपयोग बहुत ही सोच समझकर किया है। वह यह बताना चाहते हैं कि चित्रकूट विश्व की आध्यात्मिक राजधानी क्यों है! इसलिए कि यहां पर श्रीराम ने मां जानकी का श्रंगार व पूजन किया तो दूसरी ओर श्रुति कहती है कि यत्रु नारयंते पूजिते, रमंते तत्र देवता और चित्रकूट की भूमि पर बाकी देवताओं की बात छोड़िए स्वयं त्रिदेवों को भी एक नहीं कई बार अवतरित होना पड़ा। अगर हम श्री हरि विष्णु के अवतारों की बात करें तो न केवल श्री राम, परशुराम, हंस भगवान ने इस धरती पर विचरण किया बल्कि श्रीकृष्ण की उत्पत्ति का सीधा कारण भी इसी भूमि पर मौजूद है। 

वैसे चित्रकूट आदि शक्ति मां जगद्जननी का भी प्राचीन स्थल है। तांत्रिक लक्ष्मी कचव में तो साफ तौर पर लिखा है ‘ सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूट निवासिनी। भयं हरते सदा पाषाद् भवबंधाद् विमोचयेत्। 

मोक्षदा स्त्रोत पढ़ने पर ज्ञात होता है कि चित्रकूट प्रेम की भूमि है। शांति की भूमि है, यहां की भूमि काम से राम की ओर ले जाती है। मोक्षदा देवी की आराधना का पहला मंत्र प्राणी मात्र से प्रेम करना है। 


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Saturday, February 8, 2020

काउनोमिक्सः मंदाकिनी को जीवन देने की कोशिश

गोमूत्र, गोबर व जड़़ी बूटियों से बदल रही है त्रिवेणी की सूरत
एक महीने में फर्क दिखाने का कंपनी का है दावा,
 20 दिन में ही दिख रहा है काफी फर्क 
गोयनका घाट से भरत घाट तक 500 मीटर नदी का चल रहा है उपचार 

संदीप रिछारिया 

 मृत्युशैया पर मंदाकिनी, जैसे ही लोगों को लगा कि वास्तव में मां मंदाकिनी कोमा में पहुंच चुकी है। नदी का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ चुका है। नदी में पानी की मात्रा कम और गंदगी की मात्रा ज्यादा है। लाखों मछलियां व अन्य जीव लगातार मरते जा रहे हैं। लोग जागे काफी हो हल्ला हुआ। कुछ लोगों ने फावड़े चलाए, पोक लैंड से सफाई हुई, पर नजीता वही ढाक के तीन पात। मंदाकिनी की गंदगी लगातार बढ़ती रही। डा0 जीडी अग्रवाल, डा0 घनश्याम गुप्ता जैसे लोग रोते कलपते रहे, गाय़़त्री परिवार के स्थानीय प्रमुख डा0 रामनारायण त्रिपाठी लगातार अपनी टोली के साथ सफाई के काम में लगे रहे, पर निष्कर्ष कुछ भी न निकला।
लगातार 20 सालों के संघर्ष को अब रास्ता मिलता दिखाई दे रहा है। यमुना की सहायक नदी के तहत चयनित मंदाकिनी को वास्तविकता में बचाने का काम विधायक नीलांशु चतुर्वेदी ने किया है। नगर पंचायत अध्यक्ष व विधायक बनने के पहले नीलांशु ने डिजायर ग्रुप की स्थापना कर मंदाकिनी को पुर्नजीवन देने के लिए काफी संघर्ष किया। इस वर्ष के प्रारंभ में जैसे ही उन्हें मालूम चला कि दिल्ली की एक कंपनी वैदिक तरीके से जलाशयों व नदियों का आयुर्वेदिक दवाओं के सहारे उपचार कर साफ करने का काम करती है तो उन्होंने कंपनी के प्रतिनिधि प्रदीप द्विवेदी को बुलवाया। तय किया गया कि नदी का 500 मीटर का क्षेत्र कंपनी को दिया जाएगा। वह उस एरिया में अपना उपचार करेंगे, अगर उनका उपचार कारगर रहा तो आगे फिर उनसे बाकी की नदी साफ कराई जाएगी। कंपनी के प्रतिनिधि ने अपने उच्चाधिकारियों के साथ मिलकर नदी को साफ करने का काम 16 जनवरी से गोयनका घाट से लेकर भरतघाट के बीच शुरू किया। गोबर, गो मूत्र व अन्य आयुर्वेदिक दवाओं को पानी में मिलाकर कई स्थानों पर इसे डाला गया। धीरे-धीरे नदी की सूरत बदल रही है। जहां पहले पहली सीढ़ी के नीचे ही गंदगी का अंबार दिखाई देता था। अब रामघाट में नदी की 7 सीढ़ियों के नीचे साफ पानी दिखाई देता है।
प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि यह पूरी तरह आयुर्वेदिक है। वास्तव में यह छिति, जल पावक व गगन, समीरा यानि पांच तत्वों पर आधारित जल उपचार प्रक्रिया है। इससे जल का पारिस्थिति तंत्र सही हो जाता है। नदी के नीचे मिटृटी से गाद साफ होती है। जिससे अपने आप मछलियां व अन्य जीव जंतु पैदा हो जाते हैं। अगर इस उपचार को पूरी नदी पर किया जाए तो लगभग एक साल में पूरी नदी को बिलकुल साफ यानि जैसा इस नदी का नाम है पयस्वनी तो दूध के समान धारा बनाया जा सकता है।उन्होंने कहा कि दूसरे पुल के बाद यह नदी उप्र के क्षेत्र में आती है। फिलहाल अभी पुल तक इस उपचार का असर दिखाई देगा। भविष्य में अगर उपचार के लिए आगे आदेश मिलेगा तो किया जाएगा।

Thursday, February 6, 2020

डाक्टर मोदी ने बताया डंडे से पिटने का इलाज है सूर्य नमस्कार

संसद लाइव,,, 


संदीप रिछारिया

 तमाम यूनीवर्सिटीज से डीलिट की उपाधि प्राप्त कर चुके प्रधानमंत्री डाक्टर नरेंद्र मोदी ने गुरूवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए डंडे से पीटे जाने का इलाज सूर्य नमस्कार को नई दवाई के रूप में देश के सामने प्रस्तुत कर दिया। उनके इस कथन पर कुछ देर तक तो राजग के सांसद भी सन्न रह गए, पर मोदी तो मोदी हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 20 साल से जैसे वह गाली सुनते सुनते गाली पू्रफ हो गए हैं, वैसे ही अब वह अपने आपको डंडा प्रूफ बना लेंगे।


मामला कुछ इस प्रकार है, सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को एक जनसभा में कहा था कि बेरोजगारी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ नही बोलते हैंै। उनका न बोलना युवाओं को अखर रहा है, यही हालत रही तो 6 महीने में युवा उन्हें डंडों से पीटने लगेंगे। उनके इस विवादास्पद बयान के बाद किसी अन्य भाजपा नेता का बयान तो सामने नहीं आया। आज संसद में मोदीजी ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि उन्होेंने 6 महीने की समय सीमा बताकर तैयारी का वक्त दे दिया है।

 6 महीने में वह अपने सूर्य नमस्कार की संख्या को बढ़ाकर पीठ को और मजबूत कर लेंगे। उनकी पीठ भी मजबूत हो सके। हालांकि उन्होंने इस दौरान भूकंप आने का भी जिक्र किया कि देश ने भूकंप को भी लाने वालों को देखा और उसकी सच्चाई देखी। उनके इस बयान के बाद ससंद से निकलने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने राहुल गांधी पर हमलावर होते हुए कहा कि देश उनके बाप का नही है, यह आम लोगों का है। उनको जनता से अभी कम सबक सिखाया है, जो और कुछ देखना बाकी है।




 वैसे इसके पूर्व संसद में प्रधानमंत्री ने नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस के अधीर रंजन चैधरी के बार -बार खड़े होकर बोलने पर कहा कि अब उनका सीआर सही हो गया है। जिस पर बहुत देर तक ठहाके लगते रहे।

चकनाचूर हो रहे हैं सेक्यूलरों के बनाए फाल्स नैरेटिव

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श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि व बाबा विश्‍वनाथ जी के साथ 5000 मंदिरों को खाली कराने की तैयारी
- 2020 की चैत्र नवमी होगी खास, श्री रामजन्‍म भूमि मंदिर रामलला के भव्‍यतम मंदिर की तैयारी 

संदीप रिछारिया 

नौमी  तिथि मधुमास पुनीता, चैत्र रामनवमी यानि प्रभु श्री राम के अवतरण का दिन। अब 2020 की नवमी तिथि वास्तव में खास बनाने की तैयारी भाजपा सरकार कर रही है। दूरदृष्टि, पक्का इरादा और कर्मठता के साथ मेहनत भाजपा की यही पुरानी पूंजी रही है। राम मंदिर आंदोलन के समय नारा दिया गया था, रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे तो विरोधियों यानि सेक्यूलर जमात के चिंटुओं ने इसमें जोड़ा कि तारीख नहीं बताएंगे। अटलजी की सरकार के साथ मोदीजी पार्ट वन में भी इस नारे को लेकर सेक्यूलर खूब हल्ला मचाते रहे। भाजपा के शीर्षस्थ नेता कहते रहे अदालत का फैसला सर्वोपरि है। यूपी में बसपा शासन काल में हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि जमीन के तीन बराबर हिस्से कर दिए जाएं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले को आइनेे की तरह साफ कर दिया। विद्वान अधिवक्ता के पराशरन के तर्कों के सामने जहरयाव जिलानी सहित अन्य सेक्यूलर वकील पानी मांग गए। उनके तथ्य, साक्ष्य और तर्कों के सामने किसी की नहीं चली। अंततः फैसला सबके आया। हां, इस दौरान कोर्ट ने सुलह समझौता का भी रास्ता निकाला। कभी बाबा रामदेव, तो कभी श्रीश्री रविशंकर जैसे तमाम नाम अपने आपको हिंदू समाज में स्थापित करने का प्रयास करते रहे। इस दौरान तमाम जगद्गुरू भी अपने आपको संघ व विहिप का खास बताकर रेवडियां लूटने में आगे लगे रहे। लेकिन जब रेवडियां बटने की बारी आई तो वह मुंह टापते दिखाई दिए। अयोध्या में चल रहा संतों का विरोध जायज है। इसमें कुछ संतों को शामिल रकने व अयोध्या के प्रमुख संतों की भागीदारी की जगह विहिप के लोगों को अधिक मात्रा में लेने से नाराजगी है।
अब वैसे यह न्यू इंडिया, विजनरी इंडिया है। ये मोदी का बनाया नया इंडिया है। जिस इंडिया में वर्ष 2014 के पहले राम का नाम लेना पाप समझा जाता था, भाजपा का समर्थक पापी माना जाता था। हिंदू आतंकवाद की नई परिभाषाएं गढ़ी जाती रहीं, और तो और औरंगजेब इनके लिए देवता और राम काल्पनिक चरित्र होते थे। मंदिरों से टैक्स व मस्जिदों के इमा के पेंशन दी जाती रही। केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी, बसपा और अन्य गिरोहबंद राजनैतिक पार्टियों व उनके पालित मीडिया के चिंटुओं ने राष्ट्रवाद के जनक के तौर पर गांधी व नेहरू परिवार को पोषित करने के लिए तमाम कहानियां बनाई। वो तो भला हो शिवसेना के सुप्रीम बाल ठाकरे व हिंदूवादी नेता सुब्रमणियम स्वामी का, जिन्होंने हिंदुत्व, हिंदू व हिंदुस्तान की सही अवधारणा सामने लाए। वैसे बाल ठाकरे ने भय बिनु होय न प्रीत वाली कहावत को सिद्व किया। एनआरसी को लेकर मुसलमानों की चिंता को नजर अंदाज किया जाना उचित नही है, अच्छा होगा इसका निर्णय लेने का अधिकार सुब्रमणियम स्वामी व के पाराशरन को सौंप दे। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के बाद श्री कृष्ण जन्म भूमि, बाबा विश्वनाथ के साथ पांच हजार मंदिरों को मुसलमानों के कब्जे से मुक्त कराने की लड़ाई वह कर रहे हैं।
फिलहाल अब इस बात को लेकर हिंदू जनमानस में इस बात की खुशी दिखाई देती है कि जो नैरेटिव गलत तथ्यों के सहारे आम लोगों के अंदर सेट करने का काम कांग्रेस व उसके पालित तथाकथित साहित्यकारों, इतिहासकारों,कवियों व पत्रकारों ने किया, अ बवह टूटता नजर आ रहा है। जल्द ही
आने वाले समय में आगे के और भी नैरेटिव टूटते रहेंगे।