Tuesday, February 18, 2020

चित्रकूट: जहां परमात्मा बन जाते हैं याचक

चित्रकूट में विकास के मायने: (भाग एक)

क्यों श्री राम ने चित्रकूट में पूरा नही किया अपना वनवास 

संदीप रिछारिया 

चित्रकूट में आकर मुख्यमंत्री ने यहां पर विकास की गंगा बहाने का दावा किया। कहा कि जब राम की जन्मभूमि पर हमारी नेमतें बरस रही हैं तो हम उनकी आश्रय स्थली चित्रकूट को कैसे छोड़ देंगे। एक्सप्रेस वे, डिफेंस काॅरीडोर के सहारे बुंदेलखंड में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री को शायद यह भान नहीं कि चित्रकूट का उल्लेख वैदिक धर्म के सर्वाधिक पुरातन ग्रंथ ऋग्वेद की पिप्पलादि शाखा में साफ तौर पर किया गया है। उसमें कहा गया है कि आदि काल में राजा कसु यहां के प्रतापी शासक थे। बाबरनामा में तो स्वयं बाबर ने इस बात को स्वीकार किया है कि वह आर्यावर्त के तीन शासकों से भय खाता है। जिसमें एक चित्रकूट के प्रतापी महराज रामचंद्र देव हैं। 
चित्रकूट में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाली सरकार के मुखिया योगी जी को शायद ज्ञात ही होगा कि यह धरती त्रिवेद ( परमपिता ब्रहमा, श्री हरि विष्णु व महादेव ) की जननी स्थली है। यहां पर त्रिदेवों को एक बार नही अनेक बार अवतरित होना पड़ा। श्री हरि विष्णु के अवतारों की तो यह लीला स्थली है। राम, परशुराम, हंस, दत्तात्रेय, सहित अन्य अवतारों को यहां पर आना पड़ा। श्रीकृष्ण अवतार के अवतरण की शुरूआत इसी भूूमि से हुई। 
विकास की बात करें तो तमाम साहित्य यह धारणा प्रस्तुत करते हैं कि आखिर त्रेतायुग में श्री राम को महिर्षि भारद्वाज ने चित्रकूट में ही क्यों भेजा। कौन से कारण थे कि राजकुमार श्रीराम यहां पर कंदराओं और वन प्रस्तरों में निवास करने वाले ऋषियों के आश्रमों में याचक की भांति गए। वे कौन से कारण थे कि उन्होंने अपने वनवास का में 11 वर्ष 6 महीने और 18 दिन बिताने के बाद दंडकारण्य में प्रवेश किया। आखिर उन्हें चित्रकूट के बाद अपनी यात्रा की आवश्यकता क्या थी। अगर वह चाहते तो वह चित्रकूट में 14 वर्ष व्यतीत कर वापस अयोध्या लौटकर अपना राजपाट संभाल सकते थे। यह कुछ सवाल हैं जो आपके चिंतन के लिए छोड़कर जा रहा हूं। आशा है कि आप इन सवालों के जवाब जरूर ढ़ंूढेंगे। नही तो कल मैं स्वयं अपने बुद्वि विवेक से इन सवालों के जवाब व आगे की कहानी बता
ने का प्रयास करूंगा।

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