एक ऐसा स्थान जो विश्व भर के लोगो के लिये किंवदंतियों कथाओं कथानकों के साथ ही यथार्थ चेतना का पुंज बना हुआ है। प्रजापति ब्रह़मा के तपोबल से उत्पन्न पयस्वनी व मां अनुसुइया के दस हजार सालों के तप का परिणाम मां मंदाकिनी के साथ ही प्रभु श्री राम के ग्यारह वर्ष छह माह और अठारह दिनों के लिये चित्रकूट प्रवास के दौरान उनकी सेवा के लिये अयोध्या से आई मां सरयू की त्रिवेणी आज भी यहां पर लोगों को आनंद देने के साथ ही पापों के भक्षण करने का काम कर रही है।
Friday, August 23, 2024
मोदी विचार मंच के मंडलीय अध्यक्ष बने संदीप तिवारी
. संगठन को मजबूत बनाने का दिलाया भरोसा
Sunday, March 10, 2024
डीएम जगन्नाथ सिंह ने देखा था चित्रकूट में जहाज उतारने का सपना
साकार हो रहा है पूर्व डीएम का स्वप्न
-24 साल लगे देवांगना पहाड़ के उपर हवाई जहाज उतरने में
- बसपा ने कैंसिल किया था तो अखिलेश यादव ने लगाये थे पंख
- पूर्व डीएम जगन्नाथ सिंह के साथ भरत पाठक, बसंत पंडित ने की थी मशक्कत
संदीप रिछारिया
चित्रकूट। साल 2010 की सर्दियों का समय था, भारत रत्न नानाजी देशमुख के पास चित्रकूट डीएम जगन्नाथ सिंह पहुचते है। नानाजी बहुत मधुर स्वर में कहते हैं कलेक्टर साहब,,,,,,क्या हाल है, क्या समस्या है, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं। डीएम कहते हैं कि मेरा स्वप्न चित्रकूट की ख्याति को विश्व व्यापी स्वरूप में देखने का है। आप इस आईडिये को सुनिये और निर्णय लीजिये। चित्रकूट में शिक्षा,स्वास्थ्य सेवाओं व स्वावलंबन का काम करने के लिए आप आयेें हैं, यह आपकी पूर्ण कर्म भूमि है। पीड़ित मानवता की सेवा के लिए धन की बड़ी जरूरत है, इसलिए देश के बड़े उद्योगपतियों को उनके मिलाना बहुत जरूरी होता है। जब वह वनवासियों को देखेंगे तो निश्चित तौर पर मदद करेंगे। अब चित्रकूट में रतन टाटा, महेंद्र महेंन्द्रा, नुरूली वाडिया, वेणु श्री निवासन, विवेक गोयनका, डालमियां परिवार, बजाज परिवार सहित अन्य लोग आने लगे हैं। इनको प्रयागराज या खजुराहो से हेलीकाप्टर के जरिए चित्रकूट लाया जा रहा है, इसमें धन, श्रम और समय लगाता है। अगर चित्रकूट में हवाई पट्टी का निर्माण हो जाए तो यहां पर सीधे विमान उतरेगा और धन, श्रम और समय बचेगा। यह भारत रत्न नाना जी देशमुख के साथ पूर्व जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह द्वारा चित्रकूट में हवाई अड्डा बनाने के लिए किया गया पहला संवाद था।जिसको पंख लगाने का काम डीएम जगन्नाथ सिंह ने चार पांच जमीन दिखाने के बाद देवांगना के उपर की जमीन को मूर्त रूप देने के लिए प्रस्तावित किया। इस जमीन में वन विभाग की जमीन का कुछ हिस्सा आने के कारण उसे भौरी गांव के पास जंगल की ड्योढी राजस्व की जमीन देकर मामले को निपटाया गया और शासन पक्ष से बात कर सरकार ने पहली बार प्रयास पूरे रूप में शुरू किया। इसमें सबसे बड़ी बात यह थी कि नाना जी इस काम में डीआरआई को किसी भी तरह का फायदा नही चाहते थे। नानाजी की मित्र मंडली के कई उद्योगपतियों ने मिट्टी, गिट्टी और सीमेंट लेबर जैसी अन्य व्यवस्थाओं के लिए धन दिया तो इस काम को देखने की पूरी जिम्मेदारी डीआरआई के पूर्व प्रधान महासचिव डा0भरत पाठक व बसंत पंडित को मिली। राइट्स कपंनी को सरकार ने काम पर लगाया तो धन जुटाने की व्यवस्था डीआरआई के पास रही। काम शुरू हुआ और कुछ दिनों बाद डकैत छोटा पटेल द्वारा अडंगा डालने के बाद उसे बंद करना पड़ा। सीआरपीएफ लगाई गई, फिर काम शुरू हुआ, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर काम बंद हुआ, यह सिलसिला कई बार चला। एक बार प्रोजेक्ट मैनेजर बिटृटू का अपहरण होने के बाद ज बवह छूटा तो समान छोड़कर भाग गया। इसके बाद हवाई पटृटी सपना बनकर रह गई। वक्त गुजरता रहा, मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी। सितम्बर 2005 में चित्रकूट में उन्होंने पांच दिवसीय राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक की। नानाजी से मिलने के बाद उन्होंने मंच से चित्रकूट में हवाई अड्डा को सरकार द्वारा बनाने की घोषणा की। कुछ काम आगे बढा। लेकिन मामला पूरी तरह से बन नही पाया। इसके बाद बहन मायावती की सरकार आई। बांदा चित्रकूट से तीन कैबिनेट मंत्री बने। नसीमुद्दीन सिद्वीकी व बाबू सिंह कुशवाहा ने चित्रकूट में हवाई अड्डा कैंसिल कराने का पूरा प्रयास कर अतर्रा के पास हवाई अड्डा ले जाने का प्रयास किया। लेकिन मामला जम नही पाया। इसके बाद प्रदेश में सपा की सरकार फिर से आई और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बने, उन्होंन चित्रकूट के विकास के लिए काफी काम किया। उन्होंने सीधे सैधांतिक तौर पर चित्रकूट में बनने वाले यात्री हवाई अड्डे के निर्माण की स्वीकृति के लिए दिल्ली से पूरा प्रस्ताव तैयार कर पास कराया। बस स्टाप की स्थापना, चारो ओर सीमेंटेड फोन लेन रोड़, परिक्रमा पथ निर्माण व टीन शेड, रामघाट का सौंदर्यीकरण के साथ अन्य बड़े काम रहे। लेकिन देखा जाए तो उन्होंने घोषणाएं और प्रस्ताव तो बहुत किये, पर धन आंवटन की स्थिति बहुत कम रही। लिहाजा काम कुछ हुआ ही नहीं। योगी सरकार के आने के बाद चित्रकूट में विकास के पंख लगे और धीरे धीरे लगभग सभी बड़े काम पूरे हो गये। आज जब चित्रकूट में हवाई अड्े पर पहला विमान उतरेगा तो नाना जीे देशमुख की आत्मा को काफी प्रसन्नता का अनुभव होगा।
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नाना जी अपना सबकुछ दोड़कर चित्रकूट आये, लेकिन उनकी तपस्या का माध्यम पीड़ित वंचितों की सेवा था, वह श्री राम को पहला समाजसेवी कहा करते थे। नानाजी के साथ हम इस काम में सहभागी बने यह हमारा सौभाग्य है। हवाई पटृटी के लिए पहली बार जब जमीन देखने गये थे और आज 24 साल बाद इस स्थिति में इसे देख रहे हैं कि जमीन पर यात्री जहाज उतर रहा है तो असीम खुशी का अनुभव हो रहा है।
डा0 भरत पाठक, राष्ट्रीय संयोजक, गंगा विचार मंच
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जब चित्रकूट गया तो वह नया जिला था। चित्रकूट के दर्शन दो स्वरूपों में हुये। पहला स्वरूप पूर्ण रूप से धार्मिक था, तो दूसरा स्वरूप पूर्ण रूप से वनवासियों की करूण स्थिति वाला था। गावों व जंगलों में प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर प्रपात, पहाड़ जगल और अन्य स्थान थे, पूरा प्लान बनाकर काम किया गया। इस दौरान नाना जी का सहयोग लगभग हर काम में मिला। वह युगदृष्टा थे। हर अच्छे काम में पूरा समर्थन देते थे। हवाई पटटी का आइडिया सुनते ही उत्साहित होकर खुद जिम्मेदारी ले ली थी। आज वास्तव में चित्रकूट का नाम जब विश्व के इवाई मानचित्र में देखकर मन को सुकून मिल रहा है।
जगन्नाथ सिंह
रिटायर्ड आईएएस
Saturday, March 9, 2024
वेद पाठियों ने की राम कथा रसिक बजरंगी की दिव्य स्तुति
राष्ट्रीय रामायण मेला दूसरा दिन
-विविध आयोजनों के जरिए बह रही है रामभक्ति की बयार
- सांस्कृतिक कार्यक्रम देखनेे को उमड़ रही है भीड़
संदीप रिछारिया
Friday, March 8, 2024
राष्ट्रीय रामायण मेला के शुभारंभ में गूंजी मंत्रों की ध्वनियां
धर्मो रक्षति रक्षतः,,,,,,,,
Sunday, February 25, 2024
त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय थाई महोत्सव हुआ समापन
Saturday, January 13, 2024
रामनगरी के राजा से मिलने आए राम के दूत
- यूनाइडेड नेशनं के वर्ड पीस एबेंसडर डा0 परविंदर सिंह की अगुवाई में आया थाईदल
- थाईलैंड की सरकार ने सांस्कृतिक केंद्र के लिए राजा से मांगी जमीन
संदीप रिछारिया
Saturday, November 18, 2023
चित्रकूट अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को लेकर उत्साह चरम पर,,बहने बाट रही पीले चावल
Thursday, March 9, 2023
चित्रकूट महिमा अमित,,,, चित्रकूट की श्री के प्रथम घोषक महर्षि वाल्मीकि
Tuesday, March 7, 2023
एक समग्र दृष्टिः क्या है चित्रकूट का अर्थ
अस्य चित्रकूटस्य्
इंतजार कीजिए कल तक,,,,,,,
Friday, March 3, 2023
हमारे महान ऋषि! त्रिकालदशी महर्षि देवल
घर वापसी के नियम बनाने वाले महर्षि देवल
एक ऐसा ऋषि जिसे यह पता था कि आने वाला कलियुग बहुत भयंकर होगा। ईसाई व मुस्लिम आक्रमणकारी तलवार के जोर पर या फिर लालच देकर सनातन धर्म के लोगों का धर्म परिवर्तन करवाएंगे। इसी दौरान सनातन में भी कुछ तेजस्वी निकलेंगे जो भटके हुए लोगों को फिर से घर वापसी कराकर उन्हें सनातन धर्मी बनाएंगे। सतयुग में ही महर्षि देवल ने देवल स्मृति नामक ग्रंथ लिख सनातन लोगों की घर वापसी के लिए नियम बनाकर यह बता दिया था कि चारों वर्णों के लोग कैसे तप करके अपने धर्म में प्रत्यावर्तित हो सकते हैं।
मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति में धर्म-भ्रष्ट मनुष्य को पुनः लेने के कोई प्रवंध नही है। ऐसे में जब भविष्य में मुस्लिम आक्रमणकारी तलवार के जोर पर सनातनियों का धर्म परिवर्तन करेंगे तो उनकी पुनः हिंदू धर्म में वापसी कैसे होगी, यह विचार तपस्यारत देवर्षि देवल को आया। उन्होंने भविष्य को देखकर तत्परता के साथ कुल 96 श्लोकों में देवल स्मृति की रचना कर यह सुनिश्चित किया कि अगर कोई सनातनी अपने घर वापसी करता है तो उसके लिए नियम क्या होंगे।
यह स्मृति सिन्ध पर मुसलमानी आक्रमण के कारण उत्पन्न धर्म परिवर्तन की समस्या के निवार्णार्थ लिखी गई थी। इसका रचनाकाल 7वीं शताब्दी से लेकर 10वीं शताब्दी के बीच होने का अनुमान है। कुछ इतिहासकारों द्वारा इसे प्रतिहार शासक मिहिर भोज के कालखंड का बताया है। इसमें केवल 96 श्लोक हैं। अनुमान है की सिंध प्रदेश के मुसलमानों के हाथ में चले जाने के बाद जब पश्चिमोतर भारत की जनता धड़ल्ले से मुसलमान बनायीं जाने लगी, तब उसे हिन्दू समाज में वापस आने की सुविधा देने के लिए इस स्मृति की रचना की गई।
याज्ञवल्क्य पर लिखी गई ‘मिताक्षरा’, अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका आदि ग्रंथों में देवल का उल्लेख किया गया है। उसी प्रकार देवल स्मृति के काफी उद्धरण ‘मिताक्षरा’ में लिये गये हैं। ‘स्मृतिचन्द्रिका’ में देवल स्मृति से ब्रह्मचारी के कर्तव्य, 48 वर्षो तक पाला जानेवाला ब्रह्मचर्य, पत्नी के कर्तव्य आदि के संबंध मे उद्धरण लिये गये हैं।
देवल स्मृति नामक 90 श्लोकों का ग्रंथ आनंदाश्रम में छपा है। उस ग्रंथ में केवल प्रायश्चित्तविधि बताया गया है। किंतु वह ग्रंथ मूल स्वरुप में अन्य स्मृतियों से लिये गये श्लोकों का संग्रह माना जाता है। इसका रचनाकाल भी काफी अर्वाचीन होगा क्योंकि इस स्मृति के 17-22 श्लोक तथा 30-31 श्लोक विष्णु के हैं, ऐसा अपरार्क में बताया गया है। अपरार्क तथा स्मृतिचन्द्रिका में ‘देव स्मृति’ से दायविभाग, स्त्रीधन पर रहनेवाली स्त्री की सत्ता आदि के बारे में उद्धरण लिये गये हैं। इससे प्रतीत होता है कि, स्मृतिकार देवल, बृहस्पति, कात्यायन आदि स्मृतिकारों का समकालीन रहे होंगे।
महर्षि देवल के बारे में प्रामाणिकता के साथ तो ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है (कल्प व मन्वन्तर के अनुसार 3 देवल ऋषियों का वर्णन मिलता है परन्तु यह अभी शोध का विषय है कि किस देवल ने किस धाम पर तपस्या की थी ), परन्तु इस धाम के नाम और मान्यताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि कौन से देवल नामक ऋषि ने चित्रकूट श्री कामदगिरि पर तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् सूर्य ने कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को अपने बाल रूप में उन्हें दर्शन दिए थे, तभी से इस धाम का नाम देवल ऋषि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यह भी मान्यता है कि देवलास का प्राचीन नाम देवलार्क देवल ़अर्क था अर्थात देवल और अर्क (सूर्य) दोनों से मिलकर इस स्थान का नाम पड़ा।
देवल (प्रथम) -
हरिवंश पुराण के हरिवंश पर्व में अध्याय 3 श्लोक 44 व गरुण पुराण के आचार काण्ड में अध्याय 6 के अनुसार -
देवर्षि देवल, जिन्हें असित और असित देवल के नाम से भी जाना जाता है वह देवल ऋषि प्रत्यूष नाम के वसु के पुत्र थे। कुल आठ वसु (आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष, प्रभास) का उल्लेख मिलता है ।
देवल (द्वितीय) -
श्रीमद भागवद के छठवें स्कंध के छठें अध्याय के श्लोक 20 से -
कृशाश्वों दार्चिषि भार्यायं धूमकेशं जीजनत।
धीश गाया वेदशिरों देवल वमुन मनुम।।
दक्ष प्रजापति की धृश्णा नामक पुत्री थी जिसका विवाह कृशाश्व ऋषि से हुआ था जिनसे एक पुत्र हुआ उसका नाम देवल हुआ।
ऋषि देवल के बारे में अन्य कहानियां
(1) कुछ समय बाद जयगीशव्य नाम के एक ऋषि ने ऋषि देवल से संपर्क किया और अपनी दीक्षा को पूरा करने के लिए आश्रय का अनुरोध किया। देवल अपनी शक्तियों को जयगीशव्य को दिखाना चाहते थे और इसलिए उन्होंने असामान्य स्थानों का दौरा करना शुरू कर दिया, जहां उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से पाया कि ऋषि जयगीशव्य उनसे बहुत पहले उन स्थानों का दौरा कर चुके थे। तभी उन्हें पता चल सका कि जयगीशव्य की शक्तियाँ क्या हैं। तब ऋषि जयगीशव्य ने ऋषि देवल को सादगी और उसकी संपूर्णता का अर्थ सिखाया।
(3) कुछ समय बाद ऋषि देवल ने हूहू नाम के एक गंधर्व को मगरमच्छ बनने का श्राप दिया, जब गंधर्व ने उसे एक तालाब में स्नान करते समय परेशान किया। इस प्रकार हूहू मगरमच्छ बन गया और विष्णु ने उसे मार डाला जब उसने गजेंद्र के पैर पकड़ लि।
(4) देवांग पुराण में, निर्माता भगवान ब्रह्मा ने दैवीय शक्तियों और मनुष्यों के लिए भी कपड़े बुनने के लिए ऋषि देवल की मदद ली। यद्यपि देवांग पुराण की हिंदू जीवन प्रणाली के पौराणिक क्रम में कोई प्रामाणिकता नहीं है, फिर भी, इस प्रकरण को हिंदू धर्म शास्त्र के कुछ ग्रंथों में प्रासंगिक माना गया था।
(4) एक बार रंभा - देवता की दिव्य नर्तकी ने अपने सुख के लिए ऋषि देवल को चाहा, जिसे ऋषि ने मना कर दिया। इस प्रकार, रंभा उससे क्रोधित हो गईं और उन्होंने ऋषि को निम्न जाति में जन्म लेने का श्राप दिया। इसीलिए, देवांग जाति में ऋषि देवल का जन्म हुआ और वे उस जाति के प्रधान व्यक्ति बने। उन्हें दिव्यांग, विमलंग और धवलंग नाम के तीन पुत्रों का आशीर्वाद मिला, जिन्होंने ऋषि को समाज के लाभ के लिए और दिव्य भगवानों के लाभ के लिए अद्भुत कपड़े बनाने और बनाने में मदद की।
(५) एक बार दिव्य ऋषि नारद जी ने ऋषि देवल से उन्हें स्पष्ट करने के लिए कहा कि ब्रह्मांड का जन्म कैसे होता है और जन्म और मृत्यु कैसे होती है और अंततः ब्रह्मांड का अंत कहां होता है। ऋषि देवल ने नारद जी को उत्तर दिया कि ब्रह्मांड का जन्म मूल पांच तत्वों - भूमि, वायु, अग्नि, जल और ब्रह्मांडीय प्रणाली से हुआ है। उन्होंने कहा कि सृष्टि और विनाश के लिए पांचों जिम्मेदार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि शरीर भूमि से उत्पन्न होता है। ब्रह्मांडीय प्रणाली से कानय आग से आँखें हवा से जीवन और पानी से खून। दो आंख, नाक, दो कान, त्वचा, जीभ शरीर के पांच संवेदी अंग हैं। जबकि हाथ, पैर आदि पांच कर्मेंद्रियां हैं जो किसी को भी कर्म करने के लिए मजबूर करते हैं। इसलिए इस ऋषि द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से शरीर और मन के सिद्धांत प्रकाश में आए हैं।
एक गंधर्व को देवल का अभिशाप
एक बार देवल ऋषि ने हूहू नाम के एक गंधर्व को ग्रह (मगरमच्छ) बनने का श्राप दिया। इसलिए वह ग्राह बन गया और एक तालाब में रहने लगा। एक बार एक गजेंद्र वहां पानी पीने आया तो उसने अपना पैर खींच लिया और उसे गहरे पानी में ले गया। गजेंद्र ने श्री हरि की प्रार्थना की, हरि ने आकर गजेंद्र को बचाया और ग्राह को मार डाला। जैसे ही हरि ने ग्राह को मारा, वह सबसे सुंदर गंधर्व बन गया। उन्होंने श्री हरि की पूजा की और अपने लोक में चले गए।
गजेन्द्र भी भगवान के समान चार भुजाओं वाला हो गया। वह अपने पिछले जन्म में एक पांड्य वंशी राजा थे। उसका नाम इंद्रद्युम्न था। वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था इसलिए एक बार उसने अपना राज्य त्याग दिया और संन्यासी बन गया। एक दिन वे श्री हरि की पूजा कर रहे थे कि अगस्त्य मुनि अपने शिष्यों के साथ आए। उसने देखा कि एक व्यक्ति जिसे गृहस्थ होना चाहिए, उसने अपने कर्तव्यों को त्याग दिया है और वहाँ बैठकर पूजा कर रहा है। वह क्रोधित हो गया और उसने उसे शाप दिया, कि उसने हाथी के समान मन से ब्राह्मण का अपमान किया है इसलिए उसे हाथी बनना चाहिए।
यह कहकर अगस्त्य मुनि चले गए और राजा ने इसे अपना भाग्य मान लिया। अगले जन्म में उनका जन्म गजेन्द्र के रूप में हुआ। यह गजेंद्र एक बार एक तालाब से पानी पीने गया था जहाँ ग्राह ने उसका पैर पकड़ लिया और उसे तालाब में खींच लिया। उन्होंने 1,000 साल तक लड़ाई लड़ी। जब हाथी मुक्त नहीं हो सका, तो उसने हरि की प्रार्थना की और हरि ने ग्राह को मारकर उसे मुक्त कर दिया। इस प्रकार हरि ने उसे अपने हाथी योनी से मुक्त किया और उसे अपना पार्षद नियुक्त किया, साथ ही ग्राह भी अपनी ग्रह योनि से मुक्त हो गया।
बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दी में सर्वाधिक चर्चित स्मृति रही है देवल स्मृति। इसमें हिन्दू से मुसलमान या ईसाई बने व्यक्ति या समूह को पुनः कैसे स्व धर्म में लाया जाए इसकी व्यवस्था दी गयी है।
देवलस्मृति का विरोध क्यों?
महर्षि देवल ने पतित या बलपूर्वक धर्मान्तरित व्यक्ति या समूह को कैसे पुनः सनातन पूजा पद्धत्ति (धर्म) में लाया जाए, इसकी व्यवस्था दी। इस व्यवस्था से सर्वाधिक परेशानी उन मजहबों को थी जो धर्मांतरण कराने में लगे थे और लगे हैं। अतः वे इसका सभी प्रकार से विरोध कर रहे थे।
दूसरा वर्ग वह था जो कट्टर धार्मिक था। जिसको नष्ट होते हिन्दू से लगाव नहीं था। घटती धार्मिक आबादी की जिनको चिंता नहीं थी।यह वर्ग बहुत प्रभावशाली और पूज्य होने के साथ साथ धार्मिक जगत में शीर्ष पर बैठा था। इसी वर्ग ने हिन्दू जनसंख्या को सर्वाधिक पीडि़त किया। यह वर्ग मालवीयजी और तिलकजी को भी सुनने को तैयार नहीं था।महर्षि देवल की चरणधूलि प्राप्त करने की योग्यता भी जिनमें नहीं थी वे उनकी स्मृति के विरुद्ध भाषण दे रहे थे।
यह काम धर्मशास्त्र से जुड़ा है पर विरोध करने वाले व्याकरण, साहित्य, दर्शन और अन्य विषय के थे। उनका आरोप था जो मुसलमान बन गया वह गोमांस खा लेता है। ऐसे व्यक्ति को हिन्दू नहीं बनाया जा सकता है। जबकि अगस्त्य ऋषि तो आतापी-वातापी राक्षस को भी खा कर पचा गए। उन्हें किसी ने धर्मबहिष्कृत नहीं किया। अंग्रेजों का काम धार्मिक विद्वान ही कर रहा था।
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देवल स्मृति के अनुसार घर वापसी के नियम
धर्म भ्रष्टता के चार प्रकार 1-सुरा पान 2-गोमांस भक्षण 3-म्लेक्ष से दूषित 4-विधर्मी स्त्री-पुरुष से सम्बन्ध।
शुद्धि का वार्षिक उपाय - एक वर्ष तक चांद्रायण कर पराक व्रत करने वाला ब्राह्मण पुनःहिन्दू विप्र हो जाएगा। अन्य जाति का व्यक्ति इससे कम प्रायश्चित करेगा। यदि क्षत्रिय है तो वह एक पराक और एक कृच्छ्र व्रत करके ही शुद्ध हो जाएगा। वैश्य व्यक्ति आधा पराक व्रत से पुनः हिन्दू हो जाएगा। शूद्र व्यक्ति पांच दिन के उपवास से शुद्ध हो जाएगा। शुद्धि के अंतिम दिन बाल और नाखून अवश्य कटवाना चाहिए।(देवलस्मृति,7-10)
ब्राह्मण प्रायश्चित्त करके गो दान, स्वर्ण दान भी करे।(श्लोक13) इतना कर लेने के बाद उसे सपरिवार भोजन में पंक्ति देनी चाहिए कृ पंक्तिम् प्राप्नोति नान्यथा।(श्लोक14)
कोई समूह यदि एक वर्ष या इससे ज्यादा दिनों तक धर्मान्तरित रह गया हो तो उसे शुद्धि, वपन, दानके अलावा गंगा स्नान भी करना चाहिए-गंगास्नानेन शुध्यति।(15)।
विप्रों को सिंधु,सौबीर, बंग, कलिंग, महाराष्ट्र, कोंकण तथा सीमा पर जा कर शुद्धि करनी चाहिए।(श्लोक16)।
बेजोड़ चिंतन- बलपूर्वक दासी बनाने पर, गो हत्या कराने पर, जबरदस्ती कामवासना पूरा कराने पर, उनका जूठा सेवन कराने पर प्रजापत्य, चांद्रायण, आहिताग्नि तथा पराक व्रत से शुद्धि होगी। पन्द्रह दिन यव पीने से पुनः हिन्दू होगा।
कम पढ़ा लिखा व्यक्ति एक मास तक हाथ में कुशा लेकर चले और सत्य बोले तो वह शुद्ध हो अपने धर्म में प्रतिष्ठित हो जाएगा।।
आज से 52 सौ वर्ष पहले देवल ऋषि ने दी थी। इस व्यवस्था का पालन कर सनातन धर्मियों की फिर से हिंदू धर्म में वापसी कराई जा सकती है।
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श्री महंत वरूण प्रपन्नाचार्य जी महराज, बड़ा मठ, रामघाट चित्रकूट |
हिंदू वास्तव में एक संस्कृति का नाम है, जिसे आसानी से दबाया नही जा सकता। हम लोग सदियों से हैं और रहेंगे, यह बात और है कि लगातार बाहर से आने वालों ने हमें दबाने और धर्म परिवर्तित करने के लिए मजबूर किया। तलवार के जोर पर कुछ लोग परिवर्तित भी हुए। लेकिन धन्य हैं ऐसे ऋषि देवल जिन्होंने सतयुग में ही इस समस्या को देखकर वापस सनातनी बनने के लिए नियम कायदे बनाए। हम उनको बारंबार नमन करते हैं।
संदीप रिछारिया