- स्वामी कामतानाथ बने साक्षी
चित्रकूट, संवाददाता : आसमान के तारों को देखें या फिर मां मंदाकिनी के जल में दोनों में तैरते झिलमिल दीपकों को, लगता है कि मानों काली अमावस्या की रात को खुद ही तारे जमीन पर उतर कर झिलमिलाने लगे हों। यह नजारा है तीर्थ स्थल चित्रकूट में दीपावली के मौके पर दीपदान का। इस नजारे को देखकर यहां पर इस मौके पर आने वाले लाखों श्रद्धालु इन क्षणों को अपने जीवन की अनमोल यादगार बनाते नजर आये। दीपदान करने के लिये इस पवित्र नगरी में आये श्रद्धालुओं के लिये दीपक ही कम पड़ गये। श्रद्धालुओं ने मां मंदाकिनी और स्वामी कामतानाथ में दीपदान करने का तरीका भी खोज लिया। मिट्टी की दिउलिया की जगह आटे की लोई पर देउलिया बना कर उस पर देशी घी की बाती लगाकर उसे मंदाकिनी के पवित्र जल में प्रवाहित किया। यही काम श्रद्धालुओं ने स्वामी कामतानाथ के पर्वत पर भी किया। मां मंदाकिनी का रामघाट हो या फिर राघव प्रयाग, भरतघाट या फिर आमोदवन, प्रमोदवन या फिर जानकीकुंड सती अनुसुइया के घाट सभी जगह जलराशि में तैरते दीपक अपनी मद्धिम रोशनी से लड़ते दिखाई दे रहे थे। इसी बीच दुल्हन की तरह सजे मठ मंदिरों और राजप्रसादों व नैसर्गिक सुषमा से सजे स्वामी कामतानाथ के पर्वत पर जलते दिये मानों अंधकार से प्रकाश की ओर मानव को ले जाने की अगुवाई कर रहे थे। दीवारी नर्तकों की टेर हो या फिर परिक्रमा करते श्रद्धालुओं के मुंह से निकलने वाला भज ले पार करइया का.., भज ले पर्वत वाले का उस आस्था की पराकाष्ठा की कहानी कह रहे हैं। दीपावली से ठीक एक दिन पहले यह मेला सदियों से होता आ रहा है। दीपावली की काली अंधेरी रात में मंदाकिनी के जल के साथ ही भगवान कामतानाथ में उतराते दीपक मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की प्रेरणा से भर देते हैं।
No comments:
Post a Comment