'हिम्मते मर्दा तो मदद-ए-खुदा' अगर धर्मस्थली से सटे हुए खुटहा गांव में नजर डाले तो आजादी के बाद काफी सालों तक यह गांव भी बुंदेलखंड के अन्य गांवों की तरह ही बदहाल था पर समय के बदलाव को अंगीकार करने के साथ ही जब खेती के विविधीकरण के प्रयोगों को धरातल पर काम जब स्व. देवी प्रसाद शुक्ला ने किया तो न केवल अपनी किस्मत के दरवाजे खोले बल्कि अपने गांव के साथ ही आसपास के गांवों की किस्मत को भी बदल दिया। आज इस गांव की कुल 200 हेक्टेयर की जमीन में से आधी जमीन सब्जी उत्पादन कर सोना उगलने का काम कर रही है। लगभग तीस साल पहले हुये हुये सब्जी उत्पादन के प्रयोग ने न केवल इस गांव मे क्रांति ला दी बल्कि आसपास के गांवों को भी मेहनत करने की एक नई राह दिखा दी।
समाजसेवी व उन्नतशील किसान शिव कुमार शुक्ला कहते हैं कि इस गांव में पहले भी खेती होती थी जो वर्षा के जल पर आधारित थी। सबसे पहले पिता जी ने कुएं पर रहट लगवाया, तो आधे गांव के खेत रहट से सींचे जाते थे उसके पास डीजल पम्प आया और बाद में जिले का पहला टयूब बेल भी उनके यहां पर ही लगा। इसके साथ ही उन्होंने हर खेत की मेड पर पक्की नालियों का निर्माण कराया। खेती के लिये बीजों को बाहर से लाकर जब अपने खेतों के साथ दूसरे किसानों को दिया तो फिर बदलाव की बयार बह चली। धीरे-धीरे एक बीघा से दस बीघा और फिर कहानी सौ हेक्टेयर तक आ पहुंची। आज गांव में हर किस्म की सब्जी, मसाले व रवी, खरीफ व जायद की सभी फसलों के साथ ही फलों का उत्पादन किया जा रहा है।
कहते हैं किसान
उन्नतशील किसान राकेश नायक कहते हैं कि सब्जी उत्पादन के साथ अन्य फसलों के उत्पादन करने का मूलमंत्र जब इस गांव के लोगों को मिला तो सबने मिलकर मेहनत की और अब इस गांव में हर कामगार के पास साल भर का काम है। एक एकड़ वाला किसान भी सब्जी उत्पादन कर अपने परिवार को अच्छी तरह से पाल रहा है। उन्नतशील किसान राम राज यादव, राम लाल, मइयादीन यादव और अशोक कुमारी कहती है कि खेती का सबसे बड़ा मूलमंत्र मेहनत है। रासायनिक खादों के भरोसे न रहकर शून्य बजट के साथ जैविक करने वाले ये किसान साफ तौर पर कृषि विविधीकरण के हर प्रयोगों को बड़ी ही बारीकी से देखकर उसे अंगीकार करने का प्रयास भी करते हैं।
कहते हैं अधिकारी
जिला कृषि अधिकारी हर नाथ सिंह कहते हैं कि खेती के प्रयोग करने का काम जिले के कई किसान कर रहे हैं। पाठा के क्षेत्र में जहां अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान ने एक नई क्रांति लाने का काम किया है वहीं धर्मस्थली के सटे खुटहा गांव में शिव कुमार शुक्ला का नि:संदेह ही स्वागत योग्य है। उनके ज्ञान का फायदा न केवल उनके गांव के लोगों को हो रहा है बल्कि आसपास के गांव वाले भी इसका फायदा उठा रहे हैं।
समाजसेवी व उन्नतशील किसान शिव कुमार शुक्ला कहते हैं कि इस गांव में पहले भी खेती होती थी जो वर्षा के जल पर आधारित थी। सबसे पहले पिता जी ने कुएं पर रहट लगवाया, तो आधे गांव के खेत रहट से सींचे जाते थे उसके पास डीजल पम्प आया और बाद में जिले का पहला टयूब बेल भी उनके यहां पर ही लगा। इसके साथ ही उन्होंने हर खेत की मेड पर पक्की नालियों का निर्माण कराया। खेती के लिये बीजों को बाहर से लाकर जब अपने खेतों के साथ दूसरे किसानों को दिया तो फिर बदलाव की बयार बह चली। धीरे-धीरे एक बीघा से दस बीघा और फिर कहानी सौ हेक्टेयर तक आ पहुंची। आज गांव में हर किस्म की सब्जी, मसाले व रवी, खरीफ व जायद की सभी फसलों के साथ ही फलों का उत्पादन किया जा रहा है।
कहते हैं किसान
उन्नतशील किसान राकेश नायक कहते हैं कि सब्जी उत्पादन के साथ अन्य फसलों के उत्पादन करने का मूलमंत्र जब इस गांव के लोगों को मिला तो सबने मिलकर मेहनत की और अब इस गांव में हर कामगार के पास साल भर का काम है। एक एकड़ वाला किसान भी सब्जी उत्पादन कर अपने परिवार को अच्छी तरह से पाल रहा है। उन्नतशील किसान राम राज यादव, राम लाल, मइयादीन यादव और अशोक कुमारी कहती है कि खेती का सबसे बड़ा मूलमंत्र मेहनत है। रासायनिक खादों के भरोसे न रहकर शून्य बजट के साथ जैविक करने वाले ये किसान साफ तौर पर कृषि विविधीकरण के हर प्रयोगों को बड़ी ही बारीकी से देखकर उसे अंगीकार करने का प्रयास भी करते हैं।
कहते हैं अधिकारी
जिला कृषि अधिकारी हर नाथ सिंह कहते हैं कि खेती के प्रयोग करने का काम जिले के कई किसान कर रहे हैं। पाठा के क्षेत्र में जहां अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान ने एक नई क्रांति लाने का काम किया है वहीं धर्मस्थली के सटे खुटहा गांव में शिव कुमार शुक्ला का नि:संदेह ही स्वागत योग्य है। उनके ज्ञान का फायदा न केवल उनके गांव के लोगों को हो रहा है बल्कि आसपास के गांव वाले भी इसका फायदा उठा रहे हैं।
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