Showing posts with label विशेष स्थापत्य कला. Show all posts
Showing posts with label विशेष स्थापत्य कला. Show all posts

Tuesday, March 30, 2010

अपनों के लिये भी है बेगाना अद्वितीय शिल्प का नमूना गणेश बाग

चित्रकूट। इस परिक्षेत्र का आध्यात्मिक, धार्मिक के साथ ही सांस्कृतिक वैभव अपने आपमें अनूठा है। धर्म नगरी का दर्शन जहां शांति और वैराग्य का संदेश देता है वहीं कर्वी नगर में स्थापत्य कला पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के स्वरुप दिखाई देते हैं। ऐसा ही एक स्थान जिला मुख्यालय से लगे सोनेपुर गांव के समीप 'गणेश बाग' है। भले ही अभी भी इस विशिष्ट स्थान पर देशी और विदेशी पर्यटकों की आवक उतनी न बन पाई हो जितनी की उम्मीद की जाती है पर इतना तो साफ है कि सांस्कृतिक विरासत का धनी स्थान अपने आपमें काफी विशिष्टतायें समेटे हुये है। भले ही इस स्थान का नाम गणेश बाग हो पर यहां पर श्री गणेश की स्थापित एक भी मूर्ति नही है। मूर्ति चोरों की बुरी नजर का परिणाम श्री गणेश की प्रतिमा ही नही बल्कि अन्य विशेष स्थापत्य कला की मूर्तियां बाहर जा चुकी है।

जिला चिकित्सालय के ठीक पीछे को कोटि तीर्थ जाने के मार्ग पर स्थित गणेश बाग के बनने की कहानी भी कम रोचक नही है। मराठा राजवंश की बहू जय श्री जोग बताती हैं कि उनका खानदान प्लासी के युद्ध के बाद बेसिन की संधि में यह क्षेत्र में मिलने के बाद यहां पर आया था। उनके पुरखे पेशवा अमृत राव को कुआं तालाब बाबड़ी आदि बनवाने का काफी शौक था। वैसे उस समय इस शहर का नाम अमृत नगर हुआ करता था। पानी की विशेष दिक्कत होने के कारण भी पानी की व्यवस्था सुचारु रूप से किये जाने के प्रबंध किये गये थे।
महाराष्ट्र से लाल्लुक रखने के कारण श्री गणेश की आराधना उनके खानदान में होती थी। यहां पर इस मंदिर के साथ ही तालाब व बावड़ी का निर्माण कराने के साथ ही विशाल अस्तबल का भी निर्माण कराया गया था।
महात्मा गांधी चित्रकूट गांधी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा. कमलेश थापक कहते हैं कि बेसिन की संधि के बाद मराठों ने बांदा और चित्रकूट में आकर अपना साम्राज्य स्थापित किया। उनके आने से जहां कुछ नई परंपरायें समाप्त हुयी वहीं मंदिरों, कुओं, तालाबों व बाबडियों का भी निर्माण हुआ।
गणेश बाग भी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। यहां पर स्थापित मूर्तियां खजुराहो शिल्प की तरह ही हैं। पांच मंदिरों के समूह के साथ ही तालाब व अन्य भवन कभी अपने वैभव रहने की की कहानी कहते हैं, पर समय बदलने और आधुनिकता का रंग चढ़ने पर आज यह विशेष स्थान दुर्दशा को प्राप्त हो रहा है। सरकारी स्तर पर किये गये प्रयास नाकाफी है और किसी भी जन प्रतिनिधि को यहां के सांस्कृतिक गौरवों के उत्थान की याद ही नही आती।
सामाजिक चिंतक आलोक द्विवेदी कहते हैं कि सरकार के पास पैसा बेकार के कामों के लिये बहाने को तो है पर गणेश बाग के विकास के लिये शायद नही है।
भारतीय पुरातत्व विभाग का एक बोर्ड और चंद चौकीदार ही इसके संरक्षण और संर्वधन के जिम्मेदार बने हुये हैं। सरकारी योजनायें इसके उत्थान के लिये तो बनी पर उनसे गणेश बाग की दशा और दिशा के साथ ही पर्यटकों की आवक नही बढ़ सकी। अगर वास्तव में सही मंशा से गणेश बाग का विकास किया जाये तो पर्यटक यहां पर भी आकर आनंदित महसूस करेंगे। खजुराहो शिल्प की तरह ही इस मंदिर का इतिहास अपने आपमें स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी चंद्र शेखर आजाद के यहां पर कई बार रहने का भी गवाह है, पर दुर्भाग्य इस बात का है कि कभी भी किसी ने इस तरह का जिक्र गणेश बाग की इमारत के अंदर बोर्ड लगाकर किया ही नही। पेशवाओं के बनवाये तमाम मकान खंडहर होते रहे और पर्यटक विभाग भी मूक दर्शक की भांति अपनी कार्य कुशलता सिद्ध करता रहा।
वैसे फरवरी के महीने में महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के प्रांगण मे आयोजित विश्व यू 3 ए कांफ्रेंस का समापन गणेश बाग में आयोजित कर आयुष्मान ग्रुप ने यहां पर देशी और विदेशी पर्यटकों को लाकर पर्यटकों की आमद बढ़ाने का प्रयास किया था।