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Wednesday, January 13, 2010

अभी बांकी है और भी मानवता के क्रंदक

चित्रकूट। जहां एक तरफ यहां आध्यात्म और धर्म की गंगा इस जिले में बहती हैं वही दूसरी ओर असलहा की संस्कृति भी अपने चरम पर भी यहां पर ही दिखाई देती है। डाकुओं का इतिहास यहां काफी पुराना है। कभी डाकू आत्मसमर्पण करते गये तो कभी भगवे के रंग में अपने आपको रंगते गये। आज के हालातों में भले ही डाकू ददुवा और ठोकिया भगवान को प्यारे हो चुके हो और डाकू खड्गसिंह उर्फ मुन्नी लाल यादव जेल की हवा खा रहे हो पर अभी भी इस जिले स अपराध की इबारत को आगे बढ़ाने में लगे डाकू अपना खूनी खेल खेल रहे हैं।

डाकू संजय यादव, डाकू रागिया उर्फ सुन्दर पटेल, डाकू बलखडिया उर्फ स्वदेश, डाकू राजू कोल जैसे कुछ नाम हैं जो पुलिस के लिये लगातार चुनौतियां पेश कर रहे हैं। डाकू राजा खान भी ऐसा नाम है जो लगातार ठेकेदारों के साथ वन कर्मियों के लिये परेशानियां उत्पन्न रहा है।
बसपा का शासन आने पर जस अंदाज में भयमुक्त समाज की परिकल्पना को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एसटीएफ ने डाकू ददुवा को गिरोह समेत व डाकू ठोकिया को मारा व उसके बाद डाकू खड्ग सिंह व गौरी यादव को जेल के सीखचों के पीछे डाला, पर अभी भी लगभ आधा दर्जन से ज्यादा डाकुओं के गिरोह मानवता को क्रंदित करने का काम कर रहे हैं।
पिछले महीने डाकू संजय यादव ने तो एक दम से पत्थर की खदानों पर हमला कर अपने मंसूबे स्पष्ट कर पुलिस को खुली चुनौती दी थी। गौर करने लायक बात तो इसमें यह थी कि पुलिस की कांबिंग वहीं पर प्रारंभ थी और एक किलोमीटर के अंतर में गिरोह ने दूसरी वारदात कर दी थी। फिलहाल अभी पुलिस के पास डाकुओं को समाप्त करने की कोई फूल फ्रूफ व्यवस्था नही समझ में आती।
रिटायर्ड पुलिस इंसपेक्टर रंग नाथ शुक्ला कहते हैं कि यहां की गरीबी ही डकैती की जनक है। गरीब को बंदूक के माध्यम से पैसा कमाना ज्यादा आसान लगता है। अगर वास्तव में यहां से डकैती की समस्या का अंत करना है तो उसके लिये सरकारी योजनाओं को क्रियान्वयन गांवों में गरीबों के बीच होना चाहिये।