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Wednesday, February 3, 2010

सूखे से जंग जीत मुनव्वर बने धरती के लाल

चित्रकूट। मौसम की मार से परेशान बुंदेलखंड के न जाने कितने किसान पिछले सात सालों में सल्फास खाकर या फांसी लगाकर जान दे चुके हैं। पर इस तस्वीर से उलट एक ऐसा वीर किसान भी है जो भले ही कभी स्कूल न गया हो मगर उसके खेत कभी खाली नहीं रहे। फसलों में वो हमेशा अव्वल रहा।

कभी दूसरों के खेत को किराये पर लेकर खेती करने वाले जनपद के रामपुर तरौंहा गांव के 70 वर्षीय मुनव्वर अली कहते हैं कि उन्होंने जमीन में मेहनत करने को ही अल्लाह की इबारत माना और आज पचास बीघा खेती उसकी ही नियामत है। एक साल में तीन से चार फसलें पैदा करने और खेतों को कभी खाली न रखने वाले मुनव्वर अली उन किसानों के लिए मिसाल बन चुके हैं जो सूखे से परेशान हैं। वे जिले के एक मात्र ऐसे किसान भी हैं जिनके खेतों में पैदा होने वाले आलू इस जिले में बिकते ही नही बल्कि बाहर जाते हैं। इलाहाबाद में कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने के बाद अच्छी कीमत में बेंचने की बात करने वाले श्री अली कहते हैं कि भइया तीस साल हो गये एक भी खेत कभी खाली नही रहा और ऐसी कोई फसल नही जो उन्होंने पैदा ही की। बताते हैं कि वे ही अपने ब्लाक के पहले किसान हैं जिसके खेत में पहली बार रिंग बोर से पानी निकला था। चार-चार ट्यूब बेलों के साथ ही खेती की सभी उन्नतशील तरीके ग्रहण किये। इस दौरान उनका साथ सभी अधिकारियों ने भी खूब दिया।
लगभग बीस बीघा खेत पर आलू की फसल दिखाते हुए उन्होंने कहाकि लगभग 800 क्विंटल आलू हो ही जायेगा। इस समय उनके खेतों में जहां गेंहू, चना, अरहर, सरसों की फसलें लहलहा रही हैं वहीं धनिया, मिर्च, प्याज, आलू, जीरा, बैगन, टमाटर व पालक भी अच्छी मात्रा में लगे दिखे। लगभग पचास लोगों के कुनबे के मुखिया श्री अली ने बताया कि रवी, खरीफ और जायद में तो फसलें वे सभी ले ही लेते हैं। इसके साथ ही जानवरों के लिये बरसीम को भी उगा लेते हैं।
उनकी खेती के तौर तरीके देखने पहुंचे उप निदेशक कृषि मो. आरिफ सिद्दीकी व जिला कृषि अधिकारी एच एन सिंह ने जब सवाल किया कि दवा और खाद का प्रयोग किस तरह और कौन सी कर रहे हैं तो उनका जवाब था कि वो जैविक खेती के हिमायती हैं पर समय की मांग के अनुसार थोड़ा बहुत रासायनिक खाद इस्तेमाल करते हैं। नये-नये प्रयोगों के शौकीन मुनव्वर अली कहते हैं कि एक बार नारियल, छुहारा व बादाम के पेड़ भी लगाये थे पर कामयाबी नहीं मिली। उन्होंने कहा कि अगर बुंदेली किसान अपनी मेहनत की ताकत को पहचान लें और अपनी मिट्टी में मेहनत करें तो उन्हें कमाने के लिए बाहर जाने की जरुरत नहीं है।