Wednesday, April 3, 2013

दिन ललित बसंती आनै लगे.

संदीप रिछारिया,महोबा: अज्ञानता से हमें तार दे मां . से बढ़ती हुई बात जब देश के हृदय स्थल बुंदेलखंड में आती है तो फिर कवि का हृदय यहां की भाषा को भी सर्वोपरि कुछ इस प्रकार बना देता है 'हिंदी के माथे की बिंदी बुंदेली की धर गए.ईसुरी जग में जो जस कर गए, फागुन में जस भर गए'। ज्ञान की देवी की आराधना करने के लिए तो सभी आतुर रहते हैं, पर झांसी जिले के मऊरानीपुर कस्बे के समीप मेंढ़की गांव में जन्में पं. ईसुरी प्रसाद की आराधना अलग ही तरह की थी। ज्ञान की देवी की आराधना का मुख्य आधार प्रेम की उपासना करने को मानने वाले इस सुकवि ने बुंदेली धरा पर स्थानीय भाषा में जिन चौकड़ियों को इजाद किया वह आज आम जन मानस के लिए उपासना का माध्यम बनी हुई हैं। फागुन मास का आरंभ बसंत पंचमी से होने के कारण इस जनकवि आशुकवि की अभिव्यक्ति मां सरस्वती के प्रति कुछ इस तरह से सामने आती है 'मईया लाज राख ले मेरी, सुमिरत होय न देरी, बल बुद्धि विद्या मोहै दीजे, शरण पड़ा मैं तेरी, भूले बरन मिला दे दुर्गा, सुनो दीन की टेरी, ईसुर पड़ो चरनन में तेरे, जिन पे हाथ धरैं री '। आशुकवि के उल्लास भरे गीतों की उपासना करने वाले स्थानीय गायक छेदा लाल यादव बताते हैं कि उनकी रचित लगभग पचास हजार चौकड़ियों का संग्रह उनके पास है। यह सभी रचनाएं जीवन की हर विधा को समर्पित हैं। वैसे ईसुरी फागों (होली गीत) के सर्वमान्य कवि हैं। बुंदेलखंड के उप्र व मध्य प्रदेश के इलाके में बसंत हो या फिर होली बिना ईसुरी की फाग के त्यौहार पूरा ही नही होता। बताया कि उनका जन्म मेंढ़की, जिला झांसी में दुर्गा प्रसाद अड़जरिया के घर हुआ था। उनका विवाह सीगोंन जिला महोबा में हुआ था, पर उनकी मुख्य कर्मभूमि रही इसी जिले का गांव बधौरा। यहां पर वह जमींदार के पास कारिंदा के रूप में रहे। उन्होंने अधिकतर रचनाएं यहीं पर की थीं।

वह बताते हैं कि 'अब रिपु आई बसंत बहारन, पान फूल फल डारन, हारन हद्द पहारन पारन,धावल धाम जल ढारन'। वह नई पीढ़ी द्वारा अब अपने ईसुरी को बिसरा देने के कारण वह चिंतित हैं। कहते हैं कि जहां लाखों रूपए प्रतिवर्ष विकास के तमाम कामों के लिए सरकार खर्च कर रही है। वहीं बुंदेली फागों के इस अमिट हस्ताक्षर का नाम कोई नही लेता। कहा कि उन्हें इस बात का सुकूं हमेशा रहेगा कि उन्होंने राष्ट्रपति भवन में केवल ईसुरी की फाग गाने के कारण जाने का मौका मिला और वह नए बच्चों को इससे परिचित कराने का काम भी कर रहे हैं। लेकिन अब नई पीढ़ी को हमारे पुराने इस कवि के जानने और समझने के लिए जिला प्रशासन के साथ ही अन्य समाजसेवियों को पहल करनी चाहिए।

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