Thursday, July 8, 2010

राजमाता को पूर्व जन्म का भावात्मक लगाव ले आया चित्रकूट

चित्रकूट। श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के अन्तर्गत श्री राम वन पथ गमन पथ संग्रहालय का लोकार्पण करने आयी कर्नाटक प्रांत के किष्िकधा की राजमाता महारानी चंद्रकांता ने मीडिया से बात करते हुये चित्रकूट को भगवान राम की मुख्य कर्मस्थली करार देते हुये कहा कि भले ही वे यहां पहली बार आयीं हों पर हर नवरात्रि पर श्री राम चरित मानस के पाठ करने के कारण वे इस तपोभूमि से प्रत्यक्ष रुप से बचपन से जुड़ी हैं।

उन्होंने कहा कि वैसे तो श्री हनुमान का जन्म सुमेरु पर्वत पर हुआ था पर उनका यौवन और बचपन ऋषमूक पर्वत किष्किंधा पर ही बीता। यहीं पर भगवान राम और हनुमान का मिलन हुआ था। उसी स्थान पर संत व्यास राम को भगवान हनुमान ने स्वप्न देकर अपनी मूर्ति की स्थापना करवाई थी। पम्पा सरोवर पहले विषैला था पर वह श्री राम के आर्शीवाद के कारण माता शबरी के चरणों से ही स्वच्छ और निर्मल हो गया।
उन्होंने कहा कि बचपन से ही वे भगवान राम मां सीता के प्रति अगाध प्रेम व आस्था रखती आई हैं पर चित्रकूट को देखने का पहली बार सौभाग्य मिला है। यहां की सीमा में प्रवेश करते ही ऐसा लगा कि मेरा पूर्व जन्म में यहां से भावात्मक लगाव रहा है जिसके कारण वे काफी रोमांचित हैं। बताया कि वे मप्र के नरसिंहगढ़ जिले के राजा विक्रमादित्य के पवार वंश की बेटी हैं।
श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान के निदेशक डा. राम अवतार शर्मा ने चित्रकूट के अपने प्रवास को अलौकिक करार देते हुये कहा कि यहां तो प्रभु राम कण-कण में विराजते हैं। इसलिये ही यहां पर संग्रहालय का संकल्प लिया। चित्रकूट से पिछले 25 सालों से किसी न किसी रुप में संबंध रहा और अब ज्यादा प्रगाढ़ हो जायेगा। उन्होंने राजमाता के बारे में बताते हुये कहा कि भले ही वे राजवंश की बहू हैं पर वे किष्किंधा में होने वाले छोटे-छोटे से छोटे भगवत आयोजन में पहुंचने के साथ ही बिना किसी संस्था के माध्यम से हर वर्ष गरीब बालिकाओं की शादी कराती हैं। कार्यक्रम संयोजक गायत्री शक्ति पीठ के व्यवस्थापक डा. राम नारायण त्रिपाठी ने जब बाहर से आये सभी अतिथियों को विराध कुंड, अमरावती, वाल्मीकी आश्रम, भरतकूप के साथ ही अन्य विलक्षण स्थानों के दर्शन करवाये तो सभी काफी भावविभोर हो गये।

No comments:

Post a Comment