Monday, November 8, 2010

बुद्धिप्रदाता और धन-धान्यदायिनी को गढ़ने वाले बदहाल

चित्रकूट, संवाददाता : बेसिन की संधि के बाद तीर्थ नगरी में आये मराठा पेशवाओं ने जहां इस धरती को सजाने और संवारने के लिये अठारह बागों के साथ गणेश बाग और तमाम कुओं और बावड़ियों का निर्माण कराया वहीं कुछ हुनरमंद जातियों को लाकर यहां पर बसाया और उन जातियों के लोगों ने अपने हुनर का ऐसा जलवा दिखाया कि चित्रकूट की बनी हुई वस्तुयें इस समय तीन प्रदेशों में बिक रही हैं। इनमें से एक है दीपावली के मौके पर बिकने वाली श्री गणेश लक्ष्मी और खिलौने वाली मूर्तियां। राजप्रश्रय में जहां इन कारीगरों को भरपूर सम्मान मिला वहीं आज यह मेहनतकश कौम सरकारी उपेक्षा के कारण बदहाल जिंदगी जीती नशे की गिरफ्त में है। इनका कुछ हाल इस तरह है साल के महीने का काम और फिर छह महीने तक उस कमाई को खाना, बाद के दिनों में फांकाकशी के साथ मौसमी मजदूरी से अपनी जिंदगी काटना है। भले ही यह शहर के निवासी हो पर शिक्षा के नाम पर अधिकतर बच्चे कक्षा पांच और आठ के बाद शायद ही स्कूल का मुंह देख पाते हों और जुआं, स्मैक व शराब की लत इन्हें जवान होने से पहले ही बूढ़ा बना रही है।

जहां एक ओर कुम्हार जाति के यह लोग देश के चार त्योहारों में सबसे बड़े माने जाने वाले त्योहार दीपावली पर दूसरों के घरों में उजाला करने के लिये दियों के साथ धन और धान्य के साथ बुद्धि के प्रदाता श्री लक्ष्मी व श्री गणेश की बेहतरीन मूर्तियों को अपने हाथों से बनाने का काम करके लोगों से तारीफ पाते हैं, वहीें दूसरी ओर शिक्षा, स्वास्थ्य की दिक्कतों के साथ ही स्थानीय प्रशासन से भी इन्हें उपेक्षा ही मिलती है। लाल फीताशाही और कमीशनखोरी के कारण न तो इन्हें अनुदान या त्रृण मिलता है और न ही कभी इनको किसी महोत्सव या मेले में अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने की अनुमति अधिकारी देते हैं।
गौर करने लायक बात यह है कि जहां महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के ललित कला संकाय से कई लोग कर्वी के मिट्टी की मूर्तियों के उद्योग को लेकर पीएचडी कर चुके हैं वहीं आज तक किसी भी समाजसेवा की संस्था के द्वारा न तो इनके मुहल्ले में कोई जागरुकता का कार्यक्रम चलाया गया और न ही किसी मंच के माध्यम से इनके हुनर की तारीफ कर इनको आगे बढ़ाने का काम किया गया। मूर्तियों को बनाने में सिद्ध हस्त सुखलाल प्रजापति कहते हैं कि साल में तीन महीने मूर्तियां बनाने के साथ ही वे बाकी दिनों में पौधों को ढेले पर ले जाकर बेंचने का व्यवसाय करते हैं तभी गृहस्थी की गाड़ी चल पाती है। नशे की लत के कारण बदहाल होती जिंदगियों के बारे में कहते हैं कि जब ज्ञान नही है तो आसान है नशे की गिरफ्त में आना। अगर हाथों को लगातार काम मिले तो कौन नशा करेगा और कौन अपने बच्चों को सही ढंग से न पढ़ायेगा।
ताराचंद्र प्रजापति साल में एक महीने मूर्तियां बनाने के अलावा मौसमी मजदूरी करते हैं वे कहते हैं कि नेता तो यहां पर हमें अपना वोट बैंक मानकर अधिकार पूर्वक वोट मांगने आ जाते हैं पर आज तक हमारी भलाई की सोचने का किसी के पास समय नही है।

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