Wednesday, August 12, 2009

सूर्य का उपहार

चित्रकूट के पास एक जगह है सूरज कुंड, जहां लोग साधना करने जाते हैं।
एक समय की बात है। महर्षि भगुनंदनजमदग्निधनुष-बाण से खेल रहे थे। वे किसी खाली स्थान पर बार-बार बाण चला रहे थे। उनकी पत्नी रेणुका बार-बार बाण लाकर दे रही थीं, लेकिन जेठ माह के तपते सूर्य ने उन्हें परेशान कर दिया। इस वजह से उन्हें बाण लाने में देरी भी हो जाती। महर्षि ने उनसे इसकी वजह पूछी। उन्होंने जवाब दिया कि सूर्य की तेज रोशनी न केवल हमारे सिर को तपा रही है, बल्कि पैर भी जला रही है। इतना सुनते ही महर्षि क्रोधित हो गए और कहा-देवी जिस सूर्य ने तुम्हें कष्ट पहुंचाया, उसे मैं अपने अग्निअस्त्र से गिरा दूंगा। जैसे ही उन्होंने धनुष पर बाण चढाया, भयभीत होकर भगवान सूर्य ने ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया और उनके सामने प्रकट हो गए। उन्होंने उनसे विनती की कि मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है।
साथ ही, उन्होंने एक जोडी पादुका और एक छत्र महर्षि को उपहार स्वरूप प्रदान कर दिए। उन्होंने कहा कि यह छत्र सिर पर पडने वाली किरणों से आपका बचाव करेगा और पादुकाएं तपती जमीन पर पैर रखने में सहायता करेंगे। मान्यता है कि यह घटना चित्रकूट से दस किलोमीटर की दूरी पर सूरजकुंड में हुई थी। महाभारत में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है। भक्त मानते हैं कि यह स्थान प्रकृति का अनमोल वरदान है। इसलिए यह कई ऋषि-मुनियों की तपस्थलीभी है। आज भी लोग साधना और ध्यान के लिए सूरजकुंड जाते हैं।
मान्यता है कि वहां जाने के बाद न केवल हमारे सभी बुरे संस्कार समाप्त हो जाते हैं, बल्कि हमारा अंतस भी पवित्र हो जाता है। संभवत:यही संस्कार परमात्मा के नजदीक जाने के लिए आवश्यक कारक बनते हैं।
-[संदीप रिछारिया]

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1 Comments:

Blogger VARUN ROY said...

संदीप जी ,
आज अचानक आपके ब्लॉग पर जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ . बड़ा अच्छा लगा . गोस्वामी तुलसीदास जी के बारे में कई दुर्लभ बातों का भी पता चला . इस पथिक को उसकी मंजिल मिले , यही भगवान से प्रार्थना करता हूँ.
वरुण राय

October 19, 2009 at 11:10 PM  

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