Thursday, February 20, 2020

चित्रकूट भाग्य विधाता साबित हो सकते हैं मोदी

मोदी का चित्रकूट आगमन दे रहा भविष्य का बड़ा संकेत
29 फरवरी को मोदीजी और चित्रकूट की प्रश्न कुंडली में लग्न एक समान होने से बदल सकता है चित्रकूट का भाग्य 
श्री जयेन्द्र सरस्वती वेद विद्यालय के ज्योतिष आचार्य डाॅ गोपाल दास तिवारी ने किया दावा
संदीप रिछारिया 


योग लगन गृह वार तिथि सकल भए अनुकूल। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित श्रीरामचरित मानस बालकांड का 140 वां दोहा भले ही हमें मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम जी के धरती पर अवतरण होने का सुमंगल गान करता है, वहीं अब 29 फरवरी को चित्रकूट में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आगमन भी चित्रकूट के दीर्घकालिक संपूर्ण विकास का परिचायक सिद्व होने वाला है। चित्रकूट की प्रश्न कुंडली व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन्मकुंडली की लग्न एक समान होने से न चित्रकूट का भाग्य बदलने के आसार साफ नजर आ रहे हैं। यह दावा है चित्रकूट में गुरूकुल परंपरा का निर्वहन करने वाली संस्था सीतापुर के सेठ जी की बगिया में स्थित श्री जयेंद्र सरस्वती वेद विद्यालय में छा़त्रों को ज्योतिष की शिक्षा देने वाले डाॅ गोपाल दास तिवारी का है।

 उनका कहना है कि ज्योतिष एक प्राच्य ऋषि विद्या है। जो अंधकार में छलांग लगाकर अभीष्ट या भावी संभावनाओं का फलादेश करती है। उन्होंने चित्रकूट की 29 फरवरी की प्रश्न कुंडली व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन्म कुंडली का तात्विक विवेचन कर बताया कि प्रधानमंत्री मोदी का चित्रकूट आगमन शुभाशुभ है। डाॅ तिवारी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री केवल गोंडा की जनसभा तक ही अपनी चित्रकूट यात्रा को सीमित नही रखेगें बलिक वह चित्रकूट में एक से अधिक स्थानों पर जाएंगे। वह यहां पर कुछ घंटे बिता सकते हैं।


चित्रकूट की प्रश्नकुंडली की विवेचना कर बताया कि चित्रकूट विश्व की धार्मिक व आध्यात्मिक राजधानी है। यहां पर स्वयं प्रकट शिव विराजते हैं। ब्रहृमा जी ने यहां राम और शिव की पूजा की थी। जो कि स्वयं महादेव महाराजा मत्स्यगयेंद्र नाथ जी के नाम से विद्यमान है। विश्व की पहली नदी पयस्वनी, मां अनुसुइया के तपबल से निकली मंदाकिनी का यशोगान वेद पुराण कर रहे हैं। ऐसे स्थान की प्रश्न कुडली सदा सर्वदा शुभ है। तात्विक विवेचन के उपरांत बताया कि मीन लग्न का उदय होने व मीन के स्वामी शुक्र के कर्मक्षेत्र में उपस्थित हो जाने व साथ ही कर्मक्षेत्र में धनु राशिस्थ गुरू अपनी ही राशि में विद्यमान होने के कारण मोदीजी चित्रकूट के उन्नयन के लिए विशेष और अप्रत्याशित घोषणाएं कर सकते हैं। दशम स्थान का मंगल इस क्षेत्र के विकास हेतु अपार धन के निवेश के संकेत दे रहा है। कर्म क्षेत्रगत चंद्र के कारण इस क्षेत्र के प्रति मोदीजी का बड़ा ही सौम्य भाव रहेगा। जिसके चलते सहृदय और सरस भावना से कुछ ऐसी उद्घोषणाएं होंगी जो चित्रकूट के सम्यक उन्नयन में प्रबलता के साथ सहायक सिद्व होंगी। लगनस्थ भ्रगु के समभाव से भी तटस्थता की स्थिति वर्तमान में होना भी उपरोक्त फलादेश की संपुष्टि करता है। आय स्थान गत शनि स्वराशि में स्थित होकर भी लाभकारी उद्वम की संस्थापना का प्रबल संकेत करता हुआ दृष्टिगोचर हो रहा है।
इस प्रकार राहू और केतु से संपुटित समस्त गृह अति दु्रत गति से पूर्वोक्त समस्त कार्यों की परिणित करने में सहयोग करेंगे।

उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुंडली की विवेचना करने के बाद डाॅ श्री तिवारी ने बताया कि वृश्चिक लग्न में राशीश मंगल इन्हें अपनी अलग शैली का बनाकर अप्रत्याशित कार्य करने वाला बनाता है। संयोग से इनकी राशि भी वृश्चिक है। चंद्र भौम की युति पारिवारिक रूप से एकाकी तथा लोकमंगल की सक्रिय भावना से ओतप्रोत करती है। केंद्रस्थ सुखभावगत गुरू इन्हें विषम भटकाव की दशा में दिग्भ्रमित राष्ट्र को एक चिरंतर दिशा प्रदान करनेे वाला बनाते है।  चित्रकूट की प्रश्न कुंडली व मोदी जी की कुंडली का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि प्रश्नकुंडली में दशम भाव मंगल चंद्र, मोदी जी की कुंडली में लग्नगत हैं। अस्तु इन्हें विशेष कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करेंगे। यह भी कह सकते हैं कि सभी उभय गृह इन्हें इस स्थली की ओर आक्रष्ट कर रहे हैं। गृहों की स्थिति ही इन्हें चित्रकूट के विकास के लिए स्वस्थ क्रियान्वयन की भावधारा से परिपूर्ण करेगी।

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Wednesday, February 19, 2020

इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनने से नहीं चित्रकूट में त्रिवेणी को सदानीरा बनाने से आएगा राम राज्य: साध्वी कात्यायिनी गिरि

  कामदगिरि परिक्रमा मार्ग पर ब्रहमकुंड के शनि मंदिर में चल रही रामकथा का चौथा दिन 


संदीप रिछारिया 
चित्रकूट। मुम्बई से आईं राम कथा की मर्मग्य साधिका साध्वी कात्यायिनी गिरि ने श्री कामदगिरि परिक्रमा मार्ग के ब्रहमकुंड पर स्थित प्राचीन शनि मंदिर में चल रही कथा के चैथे दिन नदियों को बचाने के लिए सरकार व समाज को झकझोरने का काम किया। उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि यहां पर इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाए, इससे राम राज्य नहीं आएगा। यहां का राम राज्य तो तब चरितार्थ होगा जब मंदाकिनी, पयस्वनी व सरयू का संगम स्थल शानदार होगा। अंतिम सांसे ले रही पयस्वनी व सरयू को पुनर्जीवन देने का काम समाज व सरकार एक साथ करेंगे।
उन्होंने कहा कि भगवान शंकर मृत्यु के साथ मोक्ष के देवता है। यही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने सिर पर गंगा की धारा के साथ चंद्रमा को धारण करते हैं। शिव ही राम कथा को मंदाकिनी कहते हैं। यह मंदाकिनी चित्रकूट के कण-कण को जीवन देने का काम कर रही है। हमारा दायित्व है कि भगवान शंकर जी राम कथा यानि चित्रकूट की मंदाकिनी, पयस्वनी व सरयू को सदानीरा बनाए रखने के लिए सभी प्रयास करें।
उन्होंने कहा कि ऐसा कोई ऐप नही बना जो पानी दे सके।
ऐप पर आर्डर देने पर वह बाजार से बोतल बंद पानी लाकर आपको दे देगा। वह पानी का निर्माण नही कर सकता। पानी का निर्माण करने वाला ऐप केवल प्रकृति के पास है, जो नदियों व अन्य जलश्रोतों के रूप में सबको उपलब्ध कराती हैं। मानव का शरीर पंच तत्वों द्वारा बना है। पंचतत्वों में सबसे पहले जल का नाम आता है। भगवान स्वयं सभी के संरक्षण के लिए चित्रकूट में प्रकट हुए। उन्होंने मंदाकिनी, प्यस्वी, सरयू व अन्य जल धाराओं का संरक्षण करने का काम किया।
श्री राम जन्म की लीला का वर्णन करते हुए कहा कि यह तो आनंद की प्राप्ति का साधन है। जीवन का प्रमुख लक्ष्य आनंद की प्राप्ति है और यह केवल श्रीराम के स्मरण में मिलता है। श्री राम तक पहुंचने का मार्ग बाबा तुलसीदास ने शिव चरित्र से बताया। शिव पुरूष व माता पार्वती प्रकृति है। शिव यानि शंकर के पास हमेशा प्रकृति यानि स्त्री को संरक्षण करने का काम है। प्रकृति और मनुष्य जब साथ आते हैं तब आनंद आ जाता है।
 इस आयोजन की व्यवस्था देखने का काम अखिलेश अवस्थी, सत्ता बाबा, राम रूप पटेल, गंगा सागर महराज, स्वामी धर्मदास महराज कर रहे हैं। कथा सुनने के लिए हजारों की भीड़ जुट रही है। 

पावन मंदाकिनी की तरफ बढ़ रहे कदम

काउनोमिक्स से बदल रही मंदाकिनी की सूरत व सीरत . जबलपुर से आई लैब रिपोर्ट ने किया पानी की गुणवत्ता सुधरने का सत्यापन . घुलनशील आक्सीजन के साथ ही नाइट्रोजन की क्वालिटी सुधरी 

 संदीप रिछारिया 

 धरती, आकाश, जल, वायु और अग्नि के संबधों को एकाकार कर  जल की सेहत को सुधारने के लिए बनाई गई काउनोमिक्‍स का असर मंदाकिनी के जल पर साफ तौर पर दिखाई देने लगा है। पिछले 24 दिनों में जहां प्रत्यक्ष तौर पर तट पर सीढ़ियों के नीचे साफ पानी दिखाई देने लगाए वहीं पानी की क्वालिटी का सुधार आम लोग महसूस कर रहे हैं। पिछले दिनों आरके लैब, जबलपुर से आई टेस्टिंग रिपोर्ट ने इस बात के पूरे साक्ष्य दिए कि 24 दिनों में मंदाकिनी के जल की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार हुआ है। वैदिक काउनोमिक्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रतिनिधि प्रदीप द्विवेदी इस बात को लेकर पूरी तरह आशान्वित हैं कि आने वाले समय में 500 मीटर उपचारित किए गए मंदाकिनीके जल की मात्रा में जहां पूर्ण सुधार मिलेगा, वहीं इससे ज्यादा बड़े दायरे को भी फायदा होगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से यहां के पुराने लोग पहले मंदाकिनी के जल में मछलियां व कछुओं के साथ अन्य जलीय जंतु विद्यमान रहने की बात करते हैं । आने वाले समय में ऐसे ही दृश्य फिर से देखने को मिलेंगे।


12 जनवरी से मंदाकिनी के जल में हर्बल उपचार की प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी। उपचार के पूर्व आरके लैब जबलपुर से आए तकनीशियनों ने जल को संग्रहित किया। प्रयोगशाला में जल की 9 अलग.अलग तरह से क्वालिटी जांचने का काम किया गया। जल में आक्सीजन व नाइट्रोजन की मात्रा के साथ उसकी गुणवत्ता की जांच की गई। 24 दिन की लैब टेस्टिंग रिपोर्ट के अनुसार जल का रंग गंदे की जगह साफ हुआ। जबकि गंदगी की मात्रा 41 पीपीएम से गिरकर 25 पर आ गई। सामान्य स्थिति में यह 30 पीपीएम होनी चाहिए । डिसाल्ट आक्सीजन ;डीओ की मात्रा 5,3 से बढ़कर 6,21 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई। आक्सीजन की मात्रा लगभग 20 प्रतिशत बढ़ती दिखाई दी। इसी प्र्रकार बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड ; बीओडी भी 17 फीसद घटकर 8,91 से 7,39 हो गई। टीकेएन यानि जल में अवशोषित नाइट्रोजन खत्म हो चुकी थी जो कि बढ़कर 0,62 तक पहुॅच गई।

स्थानीय राम प्रकाशए दिनेश, राहुल सहित अन्य लोगों ने कहा कि वास्तव में नदी का जल पहले से बेहतर दिखाई दे रहा है।
 नगर पंचायत चित्रकूट के मुख्य कार्यपालन अधिकारी रमाकांत शुक्ला ने कहा कि प्राथमिक रिपोर्ट में जल की गुणवत्ता अच्छी होने के संकेत मिल रहे हैं। इसको अब ज्यादा अच्छी तरह से उपचारित करने के लिए आदेश दिए जांगे।
पथरा के तालाब पर भी होगा प्रयोग
कंपनी के प्रतिनिधि प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि काउनोमिक्स वास्तव में गोमूत्र, गोबर के साथ जड़ी बूटियों के मिश्रण से तैयार मिक्चर है। इसे जल में मिलाकर जलाशय या नदी में डाल दिया जाता है। प्रक्रिया को निश्चित समय में कई बार किया जाता है। इसके परिणाम एक सप्ताह में ही दिखाई देने लगते हैं। अभी पथरा गांव के गंदे तालाब को भी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया जा रहा है। जल्द ही उसे भी उपचारित करने का काम किया जाएगा। इसके बाद सतना जिला प्रशासन से आगे के काम की बात की जाएगी। 


Tuesday, February 18, 2020

आश्चर्यों की पहाड़ी का दर्शन कर आश्चर्य में डाल सकते हैं मोदी

 श्रीराम की आश्रय स्थली पर मोदी कर सकते हैं मंदाकिनी की सैर

संदीप रिछारिया

 भले ही अभी प्रधानमंत्री मोदी केम छो ट्रम्प के बाद अब नमस्ते ट्रम्प के जरिए विश्व के सबसे ताकतवर राजनेता की अगवानी करने की मंशा में व्यस्त हों। लेकिन उन्होंने हाउडी मोदी के जरिए दिखा दिया है कि विश्व के सबसे ताकतवर व्यक्ति को भी उनकी जरूरत है। शायद विश्व में मोदी ही इकलौते ऐसे राजनेता हैं जिन्हें जितना आधुनिकीकरण के लिए जाना जाता है उतना ही उन्हें प्रकृति से भी प्रेम है। जल, जंगल और जमीन के साथ आध्यात्म और तपस्या को लेकर संजीदा मोदी जी अपने प्रधानमंत्रित्व काल की पहली चित्रकूट यात्रा में संभव है कि कामतानाथ के दर्शन करने के साथ ही लक्ष्मण पहाड़ी पर बनाए गए रोप वे का भी आनंद उठाये। दिल्ली के विशेष सूत्रों की मानें तो वह मंदाकिनी नदी पर जाकर उनका दर्शन व आराधना भी कर सकते हैं। 

गौरतलब है कि चित्रकूट में उनके आगमन का सही प्रोट्रोकाल तो 27 फरवरी को ही आएगा। लेकिन इतना साफ है कि वह यहां पर आने के बाद केवल गोंडा ( बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के उद्घाटन स्थल ) तक ही अपने आपको सीमित नही रखेंगे। वैसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की दो दिनों तक अगवानी कर अपने प्रकल्पों के दर्शन कराने वाला दीन दयाल शोध संस्थान भी इस बात को लेकर आशान्वित है कि शायद उन्हें अपने परिसर मे ंप्रधानमंत्री को लाने का कार्यक्रम मिल जाए। इस बावत संस्थान के पदाधिकारी काफी पहले से ही दिल्ली की दौड़ लगातार लगा रहे हैं। आरएसएस व संघ की नजदीकियों के कारण शायद उन्हें यह सौभाग्य प्राप्त भी हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो मोदी जी चित्रकूट की प्राकृतिक सुषमा को शायद हेलीकाॅप्टर से ही निहार लें।


 वैसे परिक्षेत्र में निवास करने वाले जगदगुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ता भी प्रधानमंत्री का कार्यक्रम अपने विश्वविद्यालय में लगवाने के लिए जोर लगाए हुए हैं। वैसे पूर्व में दो बार उनके कार्यक्रमों में विशेष राजनेताओं के न आने के कारण उनके कार्यक्रम उपेक्षित रह गए थे। युवराज के पट्टाभिषेक में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के निधन के कारण तमाम राजनेता नही आ सके थे। वह तो केवल बाबा रामदेव के आने से थोडा बहुत आकर्षण आ सका था। इसी प्रकार पिछले दिनों दीक्षांत समारोह में ठंड व कोहरे के कारण गृहमंत्री का आगमन नही हो सका, खैर मुख्यमंत्री के आगमन से कुछ साख बच गई थी। इसके अलावा सद्गुरू सेवा संघ ट्रस्ट, प्रमुख द्वार व अन्य संस्थाएं भी अपने यहां प्रधानमंत्री को लाने के लिए पैरवी कर रही हैं। 
सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में मंदाकिनी गंगा का भ्रमण जुड़ सकता है। क्योंकि प्रधानमंत्री को नदियों के किनारे जाना पसंद है। वह काशी के साथ अहमदाबाद आदि स्थानों में ऐसा करते रहे हैं। फिलहाल उनका प्रोटोकाल आने के बाद सही पता पड़ पाएगा कि उनका चित्रकूट में कार्यक्रम कहां- कहां पर जाने का है। लेकिन चित्रकूट के वासी चाहते हैं कि उनका आगमन चित्रकूट में हो और वह मंदाकिनी गंगा में आचमन करने के साथ श्री कामदगिरि की परिक्रमा करें और लक्ष्मण पहाड़ी पर रोप वे का आनंद भी उठाएं। 


चित्रकूट के सभी जल स्रोत हो पावन: साध्वी कात्यायनी गिरी

पयस्वनी उदगम ब्रह्मकुंड के शनिमंदिर में राम कथा का तीसरा दिन

चित्रकूट। पावन धाम के पावनस्थल ब्रह्मकुंड के शनि मंदिर पर चल रही श्री रामकथा के दौरान उपस्थित भक्तो को महादेव के विवाह का दर्शन कराया। उन्होंने बताया कि बाबा की बरात के बराती विचित्र वेशभूषा के साथ विचित्र वाद्ययन्त्रो पर अलौकिक नृत्य कर रहे थे।

उन्होंने कहा श्रद्धा का विश्वास से अटूट सम्बन्ध हैं ।संदेह में विश्वास नही हो सकता यह केवल श्रद्धा में ही संभव हैं । माँ पार्वती व  महादेव का विवाह हमें बतलाता है कि इनको अलग करना संभव नहीं है।ये दो दिखते हुए भी दो नहीं  है। बल्कि  श्रद्धा और विश्वास का ऐसा मिश्रण है कि ये एकाकार हो जाते है। ये तो एक दूसरे के पूरक हैंं
उन्होंने कहा कि हम नदी को बचाने में विश्वास रखते हैं तो वह विश्वास तब तक रहेगा जब  अपार श्रद्धा प्रकृति के प्रति हमारे मन में होगी ।बाबा कि बरात अलौकिक है
शिव का दरबार सबके लिए खुला है।भोले नंदी कि सवारी करते हैं अर्थात धर्मारुढ़ होकर विवाह करते हैं । व्यक्ति कोई भी कार्य करे धर्म से विमुख न हो.. रास्ते से ज़्यादा महत्त्व सवारी का है ।
दक्ष ने यज्ञ किया ,धर्म किया, रास्ता धर्म का था पर सर पर अधर्म सवार था।बाबा कहते हैं रास्ता तो निश्चित महत्त्वपूर्ण है परन्तु सवारी भी धर्म की  हो। अधर्म पर सवार होगे तो धर्म का मार्ग भी अधर्म हो जायेगा।
शैलजा का पाणिग्रहण शिव ने किया ।प्रकृति का साथ पुरुष के हाथ में है । यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि जिसका हाथ हमने थामा है उसका संरक्षण हम करे
प्रत्येक स्त्री व पुरुष के हाथ में प्रकृति का हाथ है ।उसको संभालना सजाना सवारना हम सबकी ज़िम्मेदारी हैं ।
उन्होंने कहा कि भोले बाबा स्वयं सजते नहीं ,परन्तु माता को  विवाह के बाद भी आभूषणों से सुसज्जित रखते हैं ।
खुद से ज़्यादा प्रकृति का ख्याल रखते हैं ।
आभूषण प्रतीक हैं साज सेवा के
प्रकृति को सजाना प्रत्येक मानव का धर्म है ।प्रकृति को चोट नही पहुँचाना है ।उसको बचाना है उसको सजाना है उसे सवारना है।  कथा को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था अखिलेश अवस्थी, सत्यनारायण मौर्य सत्ता बाबा, धर्मदास, विधासागर महराज, शिवगोबिंद पाल सहित अन्य लोग कर रहे है।

इस तरह के विकास से चित्रकूट को बचाइये मोदी जी

इक्वाक्षु वंशियों की पुरातन शरणस्थली है चित्रकूट 

संदीप रिछारिया 


 दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार चित्रकूट आ रहे नरेंद्र दामोदर दास मोदी के पिटारे से चित्रकूट के विकास को लेकर क्या निकलेगा, यह तो अभी भविष्य के गर्त छिपा है। लेकिन रविवार को योगीजी ने दावा किया कि हम राम के आश्रय स्थल को विकास की परिधि से कैसे बाहर रख सकते हैं। इक्वाक्षु वंश के राम और उनसे पहले महराज अंबरीश की शरणस्थली पर भाजपा सरकार की कृपा करने का आशय अब छह वर्षों में समझ आया, पर वास्तविकता में विकास की कहानी कोसों दूर ही दिखाई देती है।
वन प्रस्तरों के साथ ऐतिहासिक काल की गुफाओं, हजारों वर्ष पुराने भित्ति चित्रों के साथ चौरासी कोस में फैले सतयुग, त्रेता, द्वापर के साथ कलियुग के तमाम ऐतिहासिक
पाषण दस्तावेज इस बात की गवाही देते हैं कि अगर इन सब स्थानों पर वास्तविकता में सरकार अपनी नेमत बरसाए तो चित्रकूट में सही मायने में विकास हो सकता है। यह बात दीगर है कि विकास के नाम पर सरकारों ने सीमेंट और कंक्रीट की इमारतें खड़ी कर यहां की बहुमूल्य वन संपदा को नष्ट करने का काम ज्यादा तेजी से किया। जनता के रहनुमा बनने वाले नदियों से निकलने वाली बालू, पहाड़ों के पत्थर, जंगलों से मिलने वाली लकड़ियों व औषधियों के साथ ही भूमि के गर्भ में छिपे तमाम रत्नों के दम पर धनकुबेर बन यहां पर प्रदूषण फैलाने का काम किया। धन बल, जन बल के साथ ही विचार बल का प्रदूषण यहां पर मुख्य समस्या है।
वाल्मीकि रामायण कहती है कि राम के जमाने में चित्रकूट का वैभव क्यों था। क्यों यहां पर उन्हें भारद्वाज जी ने भेजा, क्यों वे यहां पर साढे ग्यारह साल रहे। तमाम ़़ऋषि मुनियों के पास याचक बनकर जाने के पीछे अभिप्राय क्या था। इसका जवाब एक छोटी सी कथा में भले ही कथाकार दे दें पर इतना तो साफ था कि वैदिक युग में चित्रकूट ज्ञान का वह केंद्र था जिसका मुकाबला मगध, अवंतिका, पाटिलपुत्र या अन्य बड़े साम्राज्य नही कर पाए। राम को चित्रकूट में ऐसा क्या मिला तो विश्वामित्र और भारद्वाज की योजना के अनुसार उन्हें चित्रकूट में आना पड़ा। अगर हम श्रीरामचरित मानस के अंदर घुसकर कथा के वास्तविक चरित्र को समझने का प्रयास करें तो पता चलता है, त्रेता युग में चित्रकूट अग्नेयास्त्र, आयुधों के उत्पादन का एक बड़ा केंद्र था। राम को मिथिला ले जाने के दौरान महिर्षि विश्वामित्र ने ताडका खरदूषण के वध के द्वारा जांच कर ली थी कि यही राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने इस पुनीत कार्य के लिए माता कैेकेई को तैयार किया। माता कैकेई ने आगे की रचना कर उन्हें पत्नी समेेत वन में भेजने का निर्णय लिया। चित्रकूट आकर राम ने विभिन्न ऋषियों से मिलकर तमाम आयुध प्राप्त किए। राम को ब्रहस्पतिकुंड के पास से जो धनुष व अग्निबाण मिले, उन्हीं से रावण की मृत्यु की बात सामने आती है। साढे ग्यारह वर्ष के बाद दंडकारण्य में प्रवेश करना भी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार था। बालीयुद्व,सुग्रीव से मिलना भी उसी कड़ी का अंश था। राम ने दिखाया कि अगर अपने शत्रु से विजय करनी है तो अपनी धरती से दूर रहकर बिना अपने घर का एक भी पैसा या व्यक्ति खर्च किये हुए कैसे लड़ाई को जीता जा सकता है। कैसे संगठन में एकता पैदा कर लड़ाई को हर एक के घर की लड़ाई में तब्दील किया जा सकता है।

 आज फिर एक नए धर्मयु़द्ध की जरूरत है। यह युद्ध विकास के आडंबर को लेकर है। जहां विकास के नाम पर लगातार विनास कर चित्रकूट को घायल किया जा रहा है। पर्यावरण का दोहन कर लगातार विकास की गाथा सुनाई जा रही है। वन प्रस्तरों को काटा जा रहा है, नदियों से बालू निकालकर उन्हें खोखला किया जा रहा है। पहाड़ों को खत्म किया जा रहा है। जमीन के अंदर से तमाम अयस्क निकालकर दोहन किया जा रहा है। इसको रोकना होगा।
 विशेष निवेदन यह है कि चित्रकूट या बुंदेलखंड का विकास केवल पर्यटन को आधार मानकर किया जा सकता है। अगर सभी इलाकों में हर एक स्थान की पहचान कर देशी व विदेशी प्रचार माध्यमों से उन्हें पूरे विश्व के सामने लाने का काम किया जाए और हर स्थान के बारे में सही जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए तो चित्रकूट या बुंदेलखंड देश में पर्यटन विकास को लेकर एक बड़ा स्थान साबित हो सकते हैं। और बिना बालू निकाले, बिना पत्थर तोड़े, बिना जमीन को खोखला किए राजस्व प्राप्ति का भी बड़ा साधन बन सकते हैं।

 

चित्रकूट: जहां परमात्मा बन जाते हैं याचक

चित्रकूट में विकास के मायने: (भाग एक)

क्यों श्री राम ने चित्रकूट में पूरा नही किया अपना वनवास 

संदीप रिछारिया 

चित्रकूट में आकर मुख्यमंत्री ने यहां पर विकास की गंगा बहाने का दावा किया। कहा कि जब राम की जन्मभूमि पर हमारी नेमतें बरस रही हैं तो हम उनकी आश्रय स्थली चित्रकूट को कैसे छोड़ देंगे। एक्सप्रेस वे, डिफेंस काॅरीडोर के सहारे बुंदेलखंड में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री को शायद यह भान नहीं कि चित्रकूट का उल्लेख वैदिक धर्म के सर्वाधिक पुरातन ग्रंथ ऋग्वेद की पिप्पलादि शाखा में साफ तौर पर किया गया है। उसमें कहा गया है कि आदि काल में राजा कसु यहां के प्रतापी शासक थे। बाबरनामा में तो स्वयं बाबर ने इस बात को स्वीकार किया है कि वह आर्यावर्त के तीन शासकों से भय खाता है। जिसमें एक चित्रकूट के प्रतापी महराज रामचंद्र देव हैं। 
चित्रकूट में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाली सरकार के मुखिया योगी जी को शायद ज्ञात ही होगा कि यह धरती त्रिवेद ( परमपिता ब्रहमा, श्री हरि विष्णु व महादेव ) की जननी स्थली है। यहां पर त्रिदेवों को एक बार नही अनेक बार अवतरित होना पड़ा। श्री हरि विष्णु के अवतारों की तो यह लीला स्थली है। राम, परशुराम, हंस, दत्तात्रेय, सहित अन्य अवतारों को यहां पर आना पड़ा। श्रीकृष्ण अवतार के अवतरण की शुरूआत इसी भूूमि से हुई। 
विकास की बात करें तो तमाम साहित्य यह धारणा प्रस्तुत करते हैं कि आखिर त्रेतायुग में श्री राम को महिर्षि भारद्वाज ने चित्रकूट में ही क्यों भेजा। कौन से कारण थे कि राजकुमार श्रीराम यहां पर कंदराओं और वन प्रस्तरों में निवास करने वाले ऋषियों के आश्रमों में याचक की भांति गए। वे कौन से कारण थे कि उन्होंने अपने वनवास का में 11 वर्ष 6 महीने और 18 दिन बिताने के बाद दंडकारण्य में प्रवेश किया। आखिर उन्हें चित्रकूट के बाद अपनी यात्रा की आवश्यकता क्या थी। अगर वह चाहते तो वह चित्रकूट में 14 वर्ष व्यतीत कर वापस अयोध्या लौटकर अपना राजपाट संभाल सकते थे। यह कुछ सवाल हैं जो आपके चिंतन के लिए छोड़कर जा रहा हूं। आशा है कि आप इन सवालों के जवाब जरूर ढ़ंूढेंगे। नही तो कल मैं स्वयं अपने बुद्वि विवेक से इन सवालों के जवाब व आगे की कहानी बता
ने का प्रयास करूंगा।

Monday, February 17, 2020

कर्मघाट की कथा को नहीं मिलता कभी विश्रामः साध्वी कात्यायनी गिरि

 कथा बन रही है पयस्वनी नदी को जिंदा करने का आंदोलन 

चित्रकूट। अयोध्या आंदोलन के दो बड़े चेहरे महंत नृत्य गोपाल दास जी महराज व युगपुरूष संत परमानंद जी की शिष्या साध्वी कात्यायनी गिरि ने पयस्वनी नदी उद्गम स्थल ब्रहृमकुंड स्थित प्राचीन शनि मंदिर में श्रीराम कथा के दूसरे दिन राम के नाम को कर्तव्य का पूरक बताया। कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी महराज जी ने कलियुग में भव सागर पार करने का मंत्र राम के रूप में दिया है। वास्तव में इस मंत्र को जपने का आशय यह है कि अपनी बुद्वि को निर्मल रखकर परमात्मा की प्राप्ति करें।
किसी भी ध्येय की प्राप्ति के लिए ज्ञान, भक्ति व कर्म के साथ शरणागति होना पड़ेगा। यदि हमें नदी बचानी है, हमें पर्यावरण बचाना है, हमें अपना शहर सुंदर बनाना है, तो हमें ज्ञान के साथ कर्म की शरण लेनी पड़ेगी। कर्मघाट में कभी विश्राम नही होता।
उन्होंने कहा कि संशय भरी बुद्वि से विवेक का जन्म नही हो सकता। माता पार्वती की बुद्वि निर्मल है, जबकि मां सती की बुद्वि में संशय है। इसलिए माता पार्वती की पूजा की जाती है। नदियों को बचाने के लिए हम सबको अपने मन के साथ कर्म के लिए भी तैयार करना होगा।
उन्होंने कहा कि बुद्वि ही मनुष्य को भगवान की पहचान कराने वाली है। बुद्वि श्रद्वा युक्त हो जाए तो वह भगवान को प्राप्त करा देती है। तर्क से भगवान को नही पाया जा सकता। केवल कान से कथा नही सुन सकते। मन, बुद्वि के साथ जब कान एकाकार होते हैं तभी कथा मन के अंदर प्रवेश कर आनंद देती है। जब यह संदेह से युक्त होती हे तो यह परमात्मा से दूर कर देती है। विज्ञान के कारण प्रदूषण बढ रहा है, विज्ञान जीवनदायी व विनाशक दोनों है। हमें निर्णय करना होगा कि वास्तव में सही क्या है।
इस दौरान कथा की व्यवस्था का कार्य अखिलेश अवस्थी, सत्ता बाबा, स्वामी गंगासागर जी व संत धर्मदास देख रहे हैं। परिक्षेत्र के सैकड़ों संत व स्थानीय लोग कथा के श्रवण का कार्य करते रहे।

लुप्त पयस्वनी को जीवांत बनाने को सब जुटें- साध्वी कात्यायिनी

संदीप रिछारिया

- रामकथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु,तुलसी सुभग स्नेह वन श्री रघुवीर विहारु।

चित्रकूट। श्री

रामजन्म भूमि के लिए लंबे समय तक संघर्ष करने वाले मणिराम छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास से सन्यास की दीक्षा व वर्तमान श्री राम जन्मभूमि मन्दिर न्यास के प्रमुख सदस्य युगपुरुष स्वामी परमानंद जी की शिष्या साध्वी कात्यासनी गिरि ने विश्व की पहली नदी पयस्वनी के पावन स्रोत ब्रह्मकुंड के ऊपर स्थापित प्राचीन शनि मंदिर प्रांगण में श्री रामकथा का शुभारंभ किया।
उन्होंने कथा की शुरुवात करते हुए रामकथा का चित्रकूट से सम्बंध परिभाषित करते हुए कहा कि चित्रकूट के कण कण में राम जी कथा विधमान है। उन्होंने ब्रह्मकुंड के बारे में बताते हुये कहा कि यह कथा अभी केवल पयस्वनी में मौजूद दिव्य आत्माओ को सुना रहे है। पयस्वनी की धारा सूख गई है,इसे जीवनदान देने के लिए हमे सबको स्वार्थ से ऊपर आना होगा, सभी को जुटना होगा। उन्होंने कहा कि स्वार्थ में  व्यक्ति अपने आपने रमने लगता है,वह किसका क्या  नुकसान कर रहा है,उसे पता नही चलता। रोज पूजा करने वाला भी मन्दाकिनी पयस्वनी का नुकसान कर रहा है।सभी लोग एक साथ आये तो पयस्वनी जीवित होगी। रामकथा ऐसा माध्यम है,जिससे सभी जुड़ेंगे और सभी जीवनदायिनी नदियों व जलस्रोतों को जीवन देने का काम करेंगे। रामकथा की शुरुवात 7 श्लोको से होने को परिभाषित किया। इस दौरान भारी मात्रा में साधू संत व स्थानीय लोग मौजूद रहे।कथा के आयोजक शनि मंदिर के सत्ता महराज व अखिलेश अवस्थी है। कथा में विशेष सहयोग स्वामी धर्मदास जी व महराज गंगासागर जी का है।

Saturday, February 15, 2020

चित्रकूट के विकास के जिम्मेदार ‘राहू-केतू‘


- परिक्रमा पथ से पुराने टीन व खंभे निकालकर नए लगाने की तैयारी
- रामघाट पर वाटर लेजर शो बन गया मजाक
- रामघाट के प्रमुख मंदिरों में करोड़ों रूपये से लगवाई गई लाइटें बेकार
- पांच साल में नही बना सकी पांच किलोमीटर सड़क पीडब्लूडी 

संदीप रिछारिया

रामलला का नाम लेकर विकास का दावा करने वाली योगी सरकार का विकास उनके अधिकारी नही होने दे रहे हैं। चित्रकूट को विश्व के मानचित्र में लाने के लिए भरपूर प्रयास करने वाली सरकार के नुमाइंदे ही विकास का काम यथार्थ रूप् में करने की जगह अपनी जेबें भरने का काम कर रहे हैं। आका के द्वारा विकास के लिए जय विजय घोषित किए गए अधिकारी वास्तव में राहू केतू का रूप धरते दिखाई दे रहे हैं।
विकास की बानगी की शुरूआत करते हैं कामदगिरि परिक्रमा पथ से, यहां पर डीएम का आदेश है कि कम से कम तीन बार सूखा पोछा लगना चाहिए। स्थानीय लोगों की मानें तो कई महीने पहले मुख्यमंत्री के आने के बाद से आज तक पोंछा नही लगा है। कहने को तो यहां पर कई गांवों के सफाईकर्मियों की बड़ी फौज लगा दी गई है, पर वे जिला पंचायत राज्य अधिकारी की कृपा से वैसे ही काम कर रहे हैं जैसे वह अधिकारियों के घरों में रोटी बनाने से लेकर झाडू, पोंछा व बर्तन इत्यादि का करते हैं। वैसे भी परिक्रमा पथ की सफाई की जिम्मेदारी उठाने वाले सफाईकर्मियों का सबेरा सुबह दस बजे के बाद होता है, एक बार हल्की झाडू मारकर उनके काम की इति श्री हो जाती है।
वर्ष 2005 में समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद परिक्रमा पथ पर नए पत्थर व शेड आदि लगाने का काम प्रारंभ हुआ। अगर देखा जाए तो पिछले 15 साल बीत जाने के बाद आज तक पत्थर लगने का काम पूरा नही हो सका। अभी तक खाने कमाने की नियत के चलते चार बार पत्थर बदले जा चुके हैं। पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने खाने कमाने के और रास्ते परिक्रमा पथ पर लगी टीन शेड से निकालने का चुना है। एक सप्ताह में बरहा के हनुमान जी के पास, साक्षी गोपाल मंदिर के पास व बिरजा कुंड के पास व लाल बाबा आश्रम के सामने शेड को पूरी तरह से निकाल दिया है। पूर्व प्रधान अशोक त्रिपाठी कहते हैं कि टीन अगर बंदरों ने तोड़ी थी तो नई टीन लगा दी जाती। पूरा स्ट्रक्चर व खंभों समेत उखाड़ना समझ में नही आ रही है। अभी तक पुराने शेंडों में बिजली न शुरू करा पाए विभाग के द्वारा यह खाने कमाने का नया तरीका है।
रामघाट में विकास की बानगी देखें तो पर्यटन विभाग द्वारा एक जनवरी से शुरू किया जाने वाला लाइट लेजर शो अभी भी टेस्टिंग के दौर में चल रहा है। कभी साउंड बजता है तो कभी केवल फौव्वारा चलता है। तूुलसीदास जी द्वारा सुनाई जाने वाली रामकथा का अता पता नही है। चरखारी मंदिर के नीचे से लेकर छवि किशोर मंदिर की तरफ बनने वाला लोहे का पुल दिसंबर में पूरा होना था, पर वह भी अभी केवल बन ही रह रहा है। जिसकी वजह से लगातार लोगों को दिक्कत हो रही है। इसी प्रकार रामधाट के विभिन्न मंदिर यज्ञवेदी, बड़ा अखाड़ा, स्वामी मत्तगयेन्दनाथ जी महराज में लगी लाइटें भी ज्यादा पावर फुल नही दिखाई देतीं। बूढ़े हनुमान जी से लकर चरखारी मंदिर तक रामघाट में लगाई गईं करोड़ों रूपयों की लाइटें बेकार पड़ी हैं। खंभों में लगाई गई एलईडी लाइटें भी महीनों से लोगों ने जलती नही देखी। भाजपा के वरिष्ठ नेता के प्रभाव के बाद प्रशासन द्वारा संतो के सहयोग से प्रारंभ की गई मंदाकिनी गंगा आरती शुरूआत से विवादित रही। कभी एमपी के संतों को ज्यादा तरहीज देने के कारण तो कभी भरत मंदिर के महंत द्वारा कोषाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के कारण लगातार बातें सूनाई देती रहीं। पिछले दिनों वृन्दावन के संत रामदास द्वारा मंदाकिनी के घाट पर इसके विरोध स्वरूप अन्न जल का त्याग करने की बात भी खूब दिनों तक सुर्खियां बनीं। वैसे अभी भी मंदाकिनी आरती का स्वरूप् बदला नही है। आयोजक जल्द ही इसके फार्मेट में बदलाव की बात करते हैं।
 अब अगर बेडी पुलिया से लेकर रामघाट तक के मार्ग की बात करें तो पांच साल बीत जाने के बाद यह मार्ग अभी तक नही बन सका है। अबबत्ता पिछले पांच सालों में लोक निर्माण विभाग ने मार्ग को बनाने के नाम पर जहां बार-बार अपना इस्टीमेट रिवाइज कर जेबें भरने का काम किया, वहीं स्थानीय लोगों को परेशान करने का कोई भी तरीका छोड़ा नही है। हाल का मामला पर्यटक बंगले से सटे मलकाना रोड का है। दोनों तरफ से लेाकर सड़क किनारे बनने वाले नाले को अधूरा छोड़कर उसे छोटे लाने में मिलने का प्लान किया गया है। हाल यह है कि मोहल्ले के लोगों ने इसकी शिकायत जिलाधिकारी से की। जिलाधिकारी ने समस्या के समाधान का आश्वासन दिया, पर अवर अभियंता कमल किशोर लगातार स्थानीय लोगों से अपनी गुंडई कर रहे हैं।





Monday, February 10, 2020

वेलेंटाइन विशेष- चित्रकूट: काम नहीं राम की भूमि

श्रीराम ने चित्रकूट में की थी मां जानकी की पूजा
अपने हाथों से पुष्पों के आभूषण बनाकर किया था श्रंगार व पूजन  

रां ब्रहमनाद का वह स्वर जो सृष्टि के आरंभ से भूमंडल में गुंजायमान है। इस शब्द से निकलकर जब वह म से जुड़ा तो राम हो गया। अवध के राजकुमार राम के रूप में जब वह चित्रकूट आए तो वनवासी की तरह। मां केकैई से मिली सीख की वनवास में वनवासी के साथ रहना। प्रियतमा के साथ रहकर भी प्रेम रस में न डूबना, राम ने साकार कर दिखाया। दाम्पत्य जीवन का सर्वाधिक समय चित्रकूट में बिताने के दौरान राम ने यह दिखाया कि कैसे वह अपनी पत्नी के साथ सुमधुर क्षणों का स्वर्गीय आनंद ले सकते हैं।

विदेशी संस्कृति से ओतप्रोत युवा पीढ़ी के दिमाग में गंदगी भरने के लिए कुत्सित प्रयास लगातार जारी हैं। वेलेंटाइन डे वास्तव में हमारी संस्कृति को बर्बाद करने का मैकाले जैसा प्रयास है। वेलेंटाइन को संत बताकर प्रपोज डे, हग डे, रोज डे जैसे दिन बनाकर युवाओं के दिमाग में महिला व पुरूष शरीर के प्रति गंदगी भरने की गंदी मानसिकता है। जिन देशों में पिता, पुत्र, पत्नी, पुत्री व रिश्तेदारों के पास अपनों से मिलने का समय नहीं है। एक ही घर में अजनबियों की तरह रहते हैं। एक जीवन काल में दर्जनों विवाह करते हैं। यह उन्हीं के लिए उचित है। हम अपने आराध्य को जानें समझें और उसी हिसाब से आचरण करें। हमारे आराध्य श्रीराम व मां जानकी हैं। आइये जानते हैं कि उनके प्रेम का स्वरूप क्या था। 



आदि कवि महिर्षि वाल्मीकि, संत शिरोमणि तुलसीदासजी महराज या फिर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ सभी की लेखनी इस विशेष तथ्य और घटनाक्रम पर खूब चली, इतनी चली कि सभी ने भाव विहवल होकर उन विशेष क्षणों को न केवल जीवांत किया बल्कि यह भी सिद्व कर दिया कि प्रेम एक प्रक्रिया है, जो शास्वत है और उसमें काम को कोई स्थान नहीं। यह तो हर जीवधारी के अंदर बहती है। इस प्रक्रिया को अगर कायदे से रूपांतरित कर दिया जाए तो वह रावण जैसे राक्षसराज को मारने के लिए बड़े शस्त्र के रूप में भी काम आ सकती है।
महिर्षि वाल्मीकि ने अपने भाव व्यक्त किए ,,,
 मनः शिलाया स्तिलको गण्ड पाश्र्वे निवेशितः।
त्वया प्रणष्टे तिलके तं किलस्मर्तुं मर्हसि। (वा0रा0 5/40)


कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ के शब्दों में कहें तो

‘‘ मातः दशभुजा विश्व ज्योति हूं मैं, आश्रित

हो विद्व शक्ति से है खल महिषासुर मर्दित

जन रंजन चरण तल, धन्य सिंह गर्जित

यह, यह मेरा प्रतीक मातः समझा इंगित

मैं, सिंह इसी भाव से करूंगा अभिनंदित‘‘

(अनामिका)

इस दृश्य को जब महाकवि तुलसीदास जी महराज ने अपने भावों से उकेरा तो पूरी भावनाएं साफ हो गईं,,
फटिक शिला मृदु विशाल, संकुल सुरतरू तमाल
 ललित लता जाल, हरित छवि वितान की
मंदाकिनी तटिनि तीर मंजुल मृग विहंग भीर
धीर मुनि गिरा गंभीर सामगान की। 
मधुकर पिक वरहिं मुखर सुन्दर गिरि निरझर झर
जल कन धन छाॅह छन प्रभा न भान की 
 सबरितु रितुपति प्रभाउ संतत बहै त्रिविध बाउ
 जनु बिहार वाटिका नृप पंचवान की।
विरचित तहं परनशाल, अति विचित्र लखनलाल
 निवसत जॅह नित कृपाल राम जानकी
निजकर राजीव नयन पल्लव दल रचित शयन
प्यास परस्पर पीयूष प्रेम पान की।
सिय अंगलिखै धातु राग सुमननि भूषण विभाग
तिलक करनि क्यों कहउं कला निधान की 
माधुरी विलास हास गावत जस तुलसिदास
बसति हृदय जोरी प्रिय परन प्रान की। 
( गीतावलि) 
महाकवि ने इस अतभुद प्रेमरस का वर्णन मानस में किया तो आनंद की रसवर्षा का कोई ओर- छोर न रहा
‘ एक बार चुनि कुसुम सुहाए, मधुकर भूषण राम बनाए।
सीतहिं पहिराए प्रभु सादर,बैठे फटकि शिला पर संुदर।।

लगभग तीनों महान कवियों ने अपनी भावना को व्यक्त करने के लिए एक ही स्थान व कथानक चुना। यह बात और है कि तीनों के कहने का ढंग अलग-अलग है। लेकिन इसका यर्थाथ तो यही निकलता है कि शेषावतार लक्ष्मण जी की अनुपस्थिति में प्रभु श्रीराम ने श्रंगारवन से अपने हाथों से फूल चुनकर उनके आभूषण बनाएं और फिर का माताजी का श्रंगार कर पूजन किया। पैरों में महावर, अक्षत व कुंकुम से तिलक लगाने के साथ ही सिंदूर भी मांग में भरा। तुलसीदास जी ने अपने दोहों में सादर शब्द का उपयोग बहुत ही सोच समझकर किया है। वह यह बताना चाहते हैं कि चित्रकूट विश्व की आध्यात्मिक राजधानी क्यों है! इसलिए कि यहां पर श्रीराम ने मां जानकी का श्रंगार व पूजन किया तो दूसरी ओर श्रुति कहती है कि यत्रु नारयंते पूजिते, रमंते तत्र देवता और चित्रकूट की भूमि पर बाकी देवताओं की बात छोड़िए स्वयं त्रिदेवों को भी एक नहीं कई बार अवतरित होना पड़ा। अगर हम श्री हरि विष्णु के अवतारों की बात करें तो न केवल श्री राम, परशुराम, हंस भगवान ने इस धरती पर विचरण किया बल्कि श्रीकृष्ण की उत्पत्ति का सीधा कारण भी इसी भूमि पर मौजूद है। 

वैसे चित्रकूट आदि शक्ति मां जगद्जननी का भी प्राचीन स्थल है। तांत्रिक लक्ष्मी कचव में तो साफ तौर पर लिखा है ‘ सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूट निवासिनी। भयं हरते सदा पाषाद् भवबंधाद् विमोचयेत्। 

मोक्षदा स्त्रोत पढ़ने पर ज्ञात होता है कि चित्रकूट प्रेम की भूमि है। शांति की भूमि है, यहां की भूमि काम से राम की ओर ले जाती है। मोक्षदा देवी की आराधना का पहला मंत्र प्राणी मात्र से प्रेम करना है। 


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Saturday, February 8, 2020

काउनोमिक्सः मंदाकिनी को जीवन देने की कोशिश

गोमूत्र, गोबर व जड़़ी बूटियों से बदल रही है त्रिवेणी की सूरत
एक महीने में फर्क दिखाने का कंपनी का है दावा,
 20 दिन में ही दिख रहा है काफी फर्क 
गोयनका घाट से भरत घाट तक 500 मीटर नदी का चल रहा है उपचार 

संदीप रिछारिया 

 मृत्युशैया पर मंदाकिनी, जैसे ही लोगों को लगा कि वास्तव में मां मंदाकिनी कोमा में पहुंच चुकी है। नदी का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ चुका है। नदी में पानी की मात्रा कम और गंदगी की मात्रा ज्यादा है। लाखों मछलियां व अन्य जीव लगातार मरते जा रहे हैं। लोग जागे काफी हो हल्ला हुआ। कुछ लोगों ने फावड़े चलाए, पोक लैंड से सफाई हुई, पर नजीता वही ढाक के तीन पात। मंदाकिनी की गंदगी लगातार बढ़ती रही। डा0 जीडी अग्रवाल, डा0 घनश्याम गुप्ता जैसे लोग रोते कलपते रहे, गाय़़त्री परिवार के स्थानीय प्रमुख डा0 रामनारायण त्रिपाठी लगातार अपनी टोली के साथ सफाई के काम में लगे रहे, पर निष्कर्ष कुछ भी न निकला।
लगातार 20 सालों के संघर्ष को अब रास्ता मिलता दिखाई दे रहा है। यमुना की सहायक नदी के तहत चयनित मंदाकिनी को वास्तविकता में बचाने का काम विधायक नीलांशु चतुर्वेदी ने किया है। नगर पंचायत अध्यक्ष व विधायक बनने के पहले नीलांशु ने डिजायर ग्रुप की स्थापना कर मंदाकिनी को पुर्नजीवन देने के लिए काफी संघर्ष किया। इस वर्ष के प्रारंभ में जैसे ही उन्हें मालूम चला कि दिल्ली की एक कंपनी वैदिक तरीके से जलाशयों व नदियों का आयुर्वेदिक दवाओं के सहारे उपचार कर साफ करने का काम करती है तो उन्होंने कंपनी के प्रतिनिधि प्रदीप द्विवेदी को बुलवाया। तय किया गया कि नदी का 500 मीटर का क्षेत्र कंपनी को दिया जाएगा। वह उस एरिया में अपना उपचार करेंगे, अगर उनका उपचार कारगर रहा तो आगे फिर उनसे बाकी की नदी साफ कराई जाएगी। कंपनी के प्रतिनिधि ने अपने उच्चाधिकारियों के साथ मिलकर नदी को साफ करने का काम 16 जनवरी से गोयनका घाट से लेकर भरतघाट के बीच शुरू किया। गोबर, गो मूत्र व अन्य आयुर्वेदिक दवाओं को पानी में मिलाकर कई स्थानों पर इसे डाला गया। धीरे-धीरे नदी की सूरत बदल रही है। जहां पहले पहली सीढ़ी के नीचे ही गंदगी का अंबार दिखाई देता था। अब रामघाट में नदी की 7 सीढ़ियों के नीचे साफ पानी दिखाई देता है।
प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि यह पूरी तरह आयुर्वेदिक है। वास्तव में यह छिति, जल पावक व गगन, समीरा यानि पांच तत्वों पर आधारित जल उपचार प्रक्रिया है। इससे जल का पारिस्थिति तंत्र सही हो जाता है। नदी के नीचे मिटृटी से गाद साफ होती है। जिससे अपने आप मछलियां व अन्य जीव जंतु पैदा हो जाते हैं। अगर इस उपचार को पूरी नदी पर किया जाए तो लगभग एक साल में पूरी नदी को बिलकुल साफ यानि जैसा इस नदी का नाम है पयस्वनी तो दूध के समान धारा बनाया जा सकता है।उन्होंने कहा कि दूसरे पुल के बाद यह नदी उप्र के क्षेत्र में आती है। फिलहाल अभी पुल तक इस उपचार का असर दिखाई देगा। भविष्य में अगर उपचार के लिए आगे आदेश मिलेगा तो किया जाएगा।

Thursday, February 6, 2020

डाक्टर मोदी ने बताया डंडे से पिटने का इलाज है सूर्य नमस्कार

संसद लाइव,,, 


संदीप रिछारिया

 तमाम यूनीवर्सिटीज से डीलिट की उपाधि प्राप्त कर चुके प्रधानमंत्री डाक्टर नरेंद्र मोदी ने गुरूवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए डंडे से पीटे जाने का इलाज सूर्य नमस्कार को नई दवाई के रूप में देश के सामने प्रस्तुत कर दिया। उनके इस कथन पर कुछ देर तक तो राजग के सांसद भी सन्न रह गए, पर मोदी तो मोदी हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 20 साल से जैसे वह गाली सुनते सुनते गाली पू्रफ हो गए हैं, वैसे ही अब वह अपने आपको डंडा प्रूफ बना लेंगे।


मामला कुछ इस प्रकार है, सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को एक जनसभा में कहा था कि बेरोजगारी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ नही बोलते हैंै। उनका न बोलना युवाओं को अखर रहा है, यही हालत रही तो 6 महीने में युवा उन्हें डंडों से पीटने लगेंगे। उनके इस विवादास्पद बयान के बाद किसी अन्य भाजपा नेता का बयान तो सामने नहीं आया। आज संसद में मोदीजी ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि उन्होेंने 6 महीने की समय सीमा बताकर तैयारी का वक्त दे दिया है।

 6 महीने में वह अपने सूर्य नमस्कार की संख्या को बढ़ाकर पीठ को और मजबूत कर लेंगे। उनकी पीठ भी मजबूत हो सके। हालांकि उन्होंने इस दौरान भूकंप आने का भी जिक्र किया कि देश ने भूकंप को भी लाने वालों को देखा और उसकी सच्चाई देखी। उनके इस बयान के बाद ससंद से निकलने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने राहुल गांधी पर हमलावर होते हुए कहा कि देश उनके बाप का नही है, यह आम लोगों का है। उनको जनता से अभी कम सबक सिखाया है, जो और कुछ देखना बाकी है।




 वैसे इसके पूर्व संसद में प्रधानमंत्री ने नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस के अधीर रंजन चैधरी के बार -बार खड़े होकर बोलने पर कहा कि अब उनका सीआर सही हो गया है। जिस पर बहुत देर तक ठहाके लगते रहे।