Tuesday, February 18, 2020

चित्रकूट के सभी जल स्रोत हो पावन: साध्वी कात्यायनी गिरी

पयस्वनी उदगम ब्रह्मकुंड के शनिमंदिर में राम कथा का तीसरा दिन

चित्रकूट। पावन धाम के पावनस्थल ब्रह्मकुंड के शनि मंदिर पर चल रही श्री रामकथा के दौरान उपस्थित भक्तो को महादेव के विवाह का दर्शन कराया। उन्होंने बताया कि बाबा की बरात के बराती विचित्र वेशभूषा के साथ विचित्र वाद्ययन्त्रो पर अलौकिक नृत्य कर रहे थे।

उन्होंने कहा श्रद्धा का विश्वास से अटूट सम्बन्ध हैं ।संदेह में विश्वास नही हो सकता यह केवल श्रद्धा में ही संभव हैं । माँ पार्वती व  महादेव का विवाह हमें बतलाता है कि इनको अलग करना संभव नहीं है।ये दो दिखते हुए भी दो नहीं  है। बल्कि  श्रद्धा और विश्वास का ऐसा मिश्रण है कि ये एकाकार हो जाते है। ये तो एक दूसरे के पूरक हैंं
उन्होंने कहा कि हम नदी को बचाने में विश्वास रखते हैं तो वह विश्वास तब तक रहेगा जब  अपार श्रद्धा प्रकृति के प्रति हमारे मन में होगी ।बाबा कि बरात अलौकिक है
शिव का दरबार सबके लिए खुला है।भोले नंदी कि सवारी करते हैं अर्थात धर्मारुढ़ होकर विवाह करते हैं । व्यक्ति कोई भी कार्य करे धर्म से विमुख न हो.. रास्ते से ज़्यादा महत्त्व सवारी का है ।
दक्ष ने यज्ञ किया ,धर्म किया, रास्ता धर्म का था पर सर पर अधर्म सवार था।बाबा कहते हैं रास्ता तो निश्चित महत्त्वपूर्ण है परन्तु सवारी भी धर्म की  हो। अधर्म पर सवार होगे तो धर्म का मार्ग भी अधर्म हो जायेगा।
शैलजा का पाणिग्रहण शिव ने किया ।प्रकृति का साथ पुरुष के हाथ में है । यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि जिसका हाथ हमने थामा है उसका संरक्षण हम करे
प्रत्येक स्त्री व पुरुष के हाथ में प्रकृति का हाथ है ।उसको संभालना सजाना सवारना हम सबकी ज़िम्मेदारी हैं ।
उन्होंने कहा कि भोले बाबा स्वयं सजते नहीं ,परन्तु माता को  विवाह के बाद भी आभूषणों से सुसज्जित रखते हैं ।
खुद से ज़्यादा प्रकृति का ख्याल रखते हैं ।
आभूषण प्रतीक हैं साज सेवा के
प्रकृति को सजाना प्रत्येक मानव का धर्म है ।प्रकृति को चोट नही पहुँचाना है ।उसको बचाना है उसको सजाना है उसे सवारना है।  कथा को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था अखिलेश अवस्थी, सत्यनारायण मौर्य सत्ता बाबा, धर्मदास, विधासागर महराज, शिवगोबिंद पाल सहित अन्य लोग कर रहे है।

इस तरह के विकास से चित्रकूट को बचाइये मोदी जी

इक्वाक्षु वंशियों की पुरातन शरणस्थली है चित्रकूट 

संदीप रिछारिया 


 दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार चित्रकूट आ रहे नरेंद्र दामोदर दास मोदी के पिटारे से चित्रकूट के विकास को लेकर क्या निकलेगा, यह तो अभी भविष्य के गर्त छिपा है। लेकिन रविवार को योगीजी ने दावा किया कि हम राम के आश्रय स्थल को विकास की परिधि से कैसे बाहर रख सकते हैं। इक्वाक्षु वंश के राम और उनसे पहले महराज अंबरीश की शरणस्थली पर भाजपा सरकार की कृपा करने का आशय अब छह वर्षों में समझ आया, पर वास्तविकता में विकास की कहानी कोसों दूर ही दिखाई देती है।
वन प्रस्तरों के साथ ऐतिहासिक काल की गुफाओं, हजारों वर्ष पुराने भित्ति चित्रों के साथ चौरासी कोस में फैले सतयुग, त्रेता, द्वापर के साथ कलियुग के तमाम ऐतिहासिक
पाषण दस्तावेज इस बात की गवाही देते हैं कि अगर इन सब स्थानों पर वास्तविकता में सरकार अपनी नेमत बरसाए तो चित्रकूट में सही मायने में विकास हो सकता है। यह बात दीगर है कि विकास के नाम पर सरकारों ने सीमेंट और कंक्रीट की इमारतें खड़ी कर यहां की बहुमूल्य वन संपदा को नष्ट करने का काम ज्यादा तेजी से किया। जनता के रहनुमा बनने वाले नदियों से निकलने वाली बालू, पहाड़ों के पत्थर, जंगलों से मिलने वाली लकड़ियों व औषधियों के साथ ही भूमि के गर्भ में छिपे तमाम रत्नों के दम पर धनकुबेर बन यहां पर प्रदूषण फैलाने का काम किया। धन बल, जन बल के साथ ही विचार बल का प्रदूषण यहां पर मुख्य समस्या है।
वाल्मीकि रामायण कहती है कि राम के जमाने में चित्रकूट का वैभव क्यों था। क्यों यहां पर उन्हें भारद्वाज जी ने भेजा, क्यों वे यहां पर साढे ग्यारह साल रहे। तमाम ़़ऋषि मुनियों के पास याचक बनकर जाने के पीछे अभिप्राय क्या था। इसका जवाब एक छोटी सी कथा में भले ही कथाकार दे दें पर इतना तो साफ था कि वैदिक युग में चित्रकूट ज्ञान का वह केंद्र था जिसका मुकाबला मगध, अवंतिका, पाटिलपुत्र या अन्य बड़े साम्राज्य नही कर पाए। राम को चित्रकूट में ऐसा क्या मिला तो विश्वामित्र और भारद्वाज की योजना के अनुसार उन्हें चित्रकूट में आना पड़ा। अगर हम श्रीरामचरित मानस के अंदर घुसकर कथा के वास्तविक चरित्र को समझने का प्रयास करें तो पता चलता है, त्रेता युग में चित्रकूट अग्नेयास्त्र, आयुधों के उत्पादन का एक बड़ा केंद्र था। राम को मिथिला ले जाने के दौरान महिर्षि विश्वामित्र ने ताडका खरदूषण के वध के द्वारा जांच कर ली थी कि यही राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने इस पुनीत कार्य के लिए माता कैेकेई को तैयार किया। माता कैकेई ने आगे की रचना कर उन्हें पत्नी समेेत वन में भेजने का निर्णय लिया। चित्रकूट आकर राम ने विभिन्न ऋषियों से मिलकर तमाम आयुध प्राप्त किए। राम को ब्रहस्पतिकुंड के पास से जो धनुष व अग्निबाण मिले, उन्हीं से रावण की मृत्यु की बात सामने आती है। साढे ग्यारह वर्ष के बाद दंडकारण्य में प्रवेश करना भी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार था। बालीयुद्व,सुग्रीव से मिलना भी उसी कड़ी का अंश था। राम ने दिखाया कि अगर अपने शत्रु से विजय करनी है तो अपनी धरती से दूर रहकर बिना अपने घर का एक भी पैसा या व्यक्ति खर्च किये हुए कैसे लड़ाई को जीता जा सकता है। कैसे संगठन में एकता पैदा कर लड़ाई को हर एक के घर की लड़ाई में तब्दील किया जा सकता है।

 आज फिर एक नए धर्मयु़द्ध की जरूरत है। यह युद्ध विकास के आडंबर को लेकर है। जहां विकास के नाम पर लगातार विनास कर चित्रकूट को घायल किया जा रहा है। पर्यावरण का दोहन कर लगातार विकास की गाथा सुनाई जा रही है। वन प्रस्तरों को काटा जा रहा है, नदियों से बालू निकालकर उन्हें खोखला किया जा रहा है। पहाड़ों को खत्म किया जा रहा है। जमीन के अंदर से तमाम अयस्क निकालकर दोहन किया जा रहा है। इसको रोकना होगा।
 विशेष निवेदन यह है कि चित्रकूट या बुंदेलखंड का विकास केवल पर्यटन को आधार मानकर किया जा सकता है। अगर सभी इलाकों में हर एक स्थान की पहचान कर देशी व विदेशी प्रचार माध्यमों से उन्हें पूरे विश्व के सामने लाने का काम किया जाए और हर स्थान के बारे में सही जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए तो चित्रकूट या बुंदेलखंड देश में पर्यटन विकास को लेकर एक बड़ा स्थान साबित हो सकते हैं। और बिना बालू निकाले, बिना पत्थर तोड़े, बिना जमीन को खोखला किए राजस्व प्राप्ति का भी बड़ा साधन बन सकते हैं।

 

चित्रकूट: जहां परमात्मा बन जाते हैं याचक

चित्रकूट में विकास के मायने: (भाग एक)

क्यों श्री राम ने चित्रकूट में पूरा नही किया अपना वनवास 

संदीप रिछारिया 

चित्रकूट में आकर मुख्यमंत्री ने यहां पर विकास की गंगा बहाने का दावा किया। कहा कि जब राम की जन्मभूमि पर हमारी नेमतें बरस रही हैं तो हम उनकी आश्रय स्थली चित्रकूट को कैसे छोड़ देंगे। एक्सप्रेस वे, डिफेंस काॅरीडोर के सहारे बुंदेलखंड में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री को शायद यह भान नहीं कि चित्रकूट का उल्लेख वैदिक धर्म के सर्वाधिक पुरातन ग्रंथ ऋग्वेद की पिप्पलादि शाखा में साफ तौर पर किया गया है। उसमें कहा गया है कि आदि काल में राजा कसु यहां के प्रतापी शासक थे। बाबरनामा में तो स्वयं बाबर ने इस बात को स्वीकार किया है कि वह आर्यावर्त के तीन शासकों से भय खाता है। जिसमें एक चित्रकूट के प्रतापी महराज रामचंद्र देव हैं। 
चित्रकूट में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाली सरकार के मुखिया योगी जी को शायद ज्ञात ही होगा कि यह धरती त्रिवेद ( परमपिता ब्रहमा, श्री हरि विष्णु व महादेव ) की जननी स्थली है। यहां पर त्रिदेवों को एक बार नही अनेक बार अवतरित होना पड़ा। श्री हरि विष्णु के अवतारों की तो यह लीला स्थली है। राम, परशुराम, हंस, दत्तात्रेय, सहित अन्य अवतारों को यहां पर आना पड़ा। श्रीकृष्ण अवतार के अवतरण की शुरूआत इसी भूूमि से हुई। 
विकास की बात करें तो तमाम साहित्य यह धारणा प्रस्तुत करते हैं कि आखिर त्रेतायुग में श्री राम को महिर्षि भारद्वाज ने चित्रकूट में ही क्यों भेजा। कौन से कारण थे कि राजकुमार श्रीराम यहां पर कंदराओं और वन प्रस्तरों में निवास करने वाले ऋषियों के आश्रमों में याचक की भांति गए। वे कौन से कारण थे कि उन्होंने अपने वनवास का में 11 वर्ष 6 महीने और 18 दिन बिताने के बाद दंडकारण्य में प्रवेश किया। आखिर उन्हें चित्रकूट के बाद अपनी यात्रा की आवश्यकता क्या थी। अगर वह चाहते तो वह चित्रकूट में 14 वर्ष व्यतीत कर वापस अयोध्या लौटकर अपना राजपाट संभाल सकते थे। यह कुछ सवाल हैं जो आपके चिंतन के लिए छोड़कर जा रहा हूं। आशा है कि आप इन सवालों के जवाब जरूर ढ़ंूढेंगे। नही तो कल मैं स्वयं अपने बुद्वि विवेक से इन सवालों के जवाब व आगे की कहानी बता
ने का प्रयास करूंगा।

Monday, February 17, 2020

कर्मघाट की कथा को नहीं मिलता कभी विश्रामः साध्वी कात्यायनी गिरि

 कथा बन रही है पयस्वनी नदी को जिंदा करने का आंदोलन 

चित्रकूट। अयोध्या आंदोलन के दो बड़े चेहरे महंत नृत्य गोपाल दास जी महराज व युगपुरूष संत परमानंद जी की शिष्या साध्वी कात्यायनी गिरि ने पयस्वनी नदी उद्गम स्थल ब्रहृमकुंड स्थित प्राचीन शनि मंदिर में श्रीराम कथा के दूसरे दिन राम के नाम को कर्तव्य का पूरक बताया। कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी महराज जी ने कलियुग में भव सागर पार करने का मंत्र राम के रूप में दिया है। वास्तव में इस मंत्र को जपने का आशय यह है कि अपनी बुद्वि को निर्मल रखकर परमात्मा की प्राप्ति करें।
किसी भी ध्येय की प्राप्ति के लिए ज्ञान, भक्ति व कर्म के साथ शरणागति होना पड़ेगा। यदि हमें नदी बचानी है, हमें पर्यावरण बचाना है, हमें अपना शहर सुंदर बनाना है, तो हमें ज्ञान के साथ कर्म की शरण लेनी पड़ेगी। कर्मघाट में कभी विश्राम नही होता।
उन्होंने कहा कि संशय भरी बुद्वि से विवेक का जन्म नही हो सकता। माता पार्वती की बुद्वि निर्मल है, जबकि मां सती की बुद्वि में संशय है। इसलिए माता पार्वती की पूजा की जाती है। नदियों को बचाने के लिए हम सबको अपने मन के साथ कर्म के लिए भी तैयार करना होगा।
उन्होंने कहा कि बुद्वि ही मनुष्य को भगवान की पहचान कराने वाली है। बुद्वि श्रद्वा युक्त हो जाए तो वह भगवान को प्राप्त करा देती है। तर्क से भगवान को नही पाया जा सकता। केवल कान से कथा नही सुन सकते। मन, बुद्वि के साथ जब कान एकाकार होते हैं तभी कथा मन के अंदर प्रवेश कर आनंद देती है। जब यह संदेह से युक्त होती हे तो यह परमात्मा से दूर कर देती है। विज्ञान के कारण प्रदूषण बढ रहा है, विज्ञान जीवनदायी व विनाशक दोनों है। हमें निर्णय करना होगा कि वास्तव में सही क्या है।
इस दौरान कथा की व्यवस्था का कार्य अखिलेश अवस्थी, सत्ता बाबा, स्वामी गंगासागर जी व संत धर्मदास देख रहे हैं। परिक्षेत्र के सैकड़ों संत व स्थानीय लोग कथा के श्रवण का कार्य करते रहे।

लुप्त पयस्वनी को जीवांत बनाने को सब जुटें- साध्वी कात्यायिनी

संदीप रिछारिया

- रामकथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु,तुलसी सुभग स्नेह वन श्री रघुवीर विहारु।

चित्रकूट। श्री

रामजन्म भूमि के लिए लंबे समय तक संघर्ष करने वाले मणिराम छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास से सन्यास की दीक्षा व वर्तमान श्री राम जन्मभूमि मन्दिर न्यास के प्रमुख सदस्य युगपुरुष स्वामी परमानंद जी की शिष्या साध्वी कात्यासनी गिरि ने विश्व की पहली नदी पयस्वनी के पावन स्रोत ब्रह्मकुंड के ऊपर स्थापित प्राचीन शनि मंदिर प्रांगण में श्री रामकथा का शुभारंभ किया।
उन्होंने कथा की शुरुवात करते हुए रामकथा का चित्रकूट से सम्बंध परिभाषित करते हुए कहा कि चित्रकूट के कण कण में राम जी कथा विधमान है। उन्होंने ब्रह्मकुंड के बारे में बताते हुये कहा कि यह कथा अभी केवल पयस्वनी में मौजूद दिव्य आत्माओ को सुना रहे है। पयस्वनी की धारा सूख गई है,इसे जीवनदान देने के लिए हमे सबको स्वार्थ से ऊपर आना होगा, सभी को जुटना होगा। उन्होंने कहा कि स्वार्थ में  व्यक्ति अपने आपने रमने लगता है,वह किसका क्या  नुकसान कर रहा है,उसे पता नही चलता। रोज पूजा करने वाला भी मन्दाकिनी पयस्वनी का नुकसान कर रहा है।सभी लोग एक साथ आये तो पयस्वनी जीवित होगी। रामकथा ऐसा माध्यम है,जिससे सभी जुड़ेंगे और सभी जीवनदायिनी नदियों व जलस्रोतों को जीवन देने का काम करेंगे। रामकथा की शुरुवात 7 श्लोको से होने को परिभाषित किया। इस दौरान भारी मात्रा में साधू संत व स्थानीय लोग मौजूद रहे।कथा के आयोजक शनि मंदिर के सत्ता महराज व अखिलेश अवस्थी है। कथा में विशेष सहयोग स्वामी धर्मदास जी व महराज गंगासागर जी का है।

Saturday, February 15, 2020

चित्रकूट के विकास के जिम्मेदार ‘राहू-केतू‘


- परिक्रमा पथ से पुराने टीन व खंभे निकालकर नए लगाने की तैयारी
- रामघाट पर वाटर लेजर शो बन गया मजाक
- रामघाट के प्रमुख मंदिरों में करोड़ों रूपये से लगवाई गई लाइटें बेकार
- पांच साल में नही बना सकी पांच किलोमीटर सड़क पीडब्लूडी 

संदीप रिछारिया

रामलला का नाम लेकर विकास का दावा करने वाली योगी सरकार का विकास उनके अधिकारी नही होने दे रहे हैं। चित्रकूट को विश्व के मानचित्र में लाने के लिए भरपूर प्रयास करने वाली सरकार के नुमाइंदे ही विकास का काम यथार्थ रूप् में करने की जगह अपनी जेबें भरने का काम कर रहे हैं। आका के द्वारा विकास के लिए जय विजय घोषित किए गए अधिकारी वास्तव में राहू केतू का रूप धरते दिखाई दे रहे हैं।
विकास की बानगी की शुरूआत करते हैं कामदगिरि परिक्रमा पथ से, यहां पर डीएम का आदेश है कि कम से कम तीन बार सूखा पोछा लगना चाहिए। स्थानीय लोगों की मानें तो कई महीने पहले मुख्यमंत्री के आने के बाद से आज तक पोंछा नही लगा है। कहने को तो यहां पर कई गांवों के सफाईकर्मियों की बड़ी फौज लगा दी गई है, पर वे जिला पंचायत राज्य अधिकारी की कृपा से वैसे ही काम कर रहे हैं जैसे वह अधिकारियों के घरों में रोटी बनाने से लेकर झाडू, पोंछा व बर्तन इत्यादि का करते हैं। वैसे भी परिक्रमा पथ की सफाई की जिम्मेदारी उठाने वाले सफाईकर्मियों का सबेरा सुबह दस बजे के बाद होता है, एक बार हल्की झाडू मारकर उनके काम की इति श्री हो जाती है।
वर्ष 2005 में समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद परिक्रमा पथ पर नए पत्थर व शेड आदि लगाने का काम प्रारंभ हुआ। अगर देखा जाए तो पिछले 15 साल बीत जाने के बाद आज तक पत्थर लगने का काम पूरा नही हो सका। अभी तक खाने कमाने की नियत के चलते चार बार पत्थर बदले जा चुके हैं। पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने खाने कमाने के और रास्ते परिक्रमा पथ पर लगी टीन शेड से निकालने का चुना है। एक सप्ताह में बरहा के हनुमान जी के पास, साक्षी गोपाल मंदिर के पास व बिरजा कुंड के पास व लाल बाबा आश्रम के सामने शेड को पूरी तरह से निकाल दिया है। पूर्व प्रधान अशोक त्रिपाठी कहते हैं कि टीन अगर बंदरों ने तोड़ी थी तो नई टीन लगा दी जाती। पूरा स्ट्रक्चर व खंभों समेत उखाड़ना समझ में नही आ रही है। अभी तक पुराने शेंडों में बिजली न शुरू करा पाए विभाग के द्वारा यह खाने कमाने का नया तरीका है।
रामघाट में विकास की बानगी देखें तो पर्यटन विभाग द्वारा एक जनवरी से शुरू किया जाने वाला लाइट लेजर शो अभी भी टेस्टिंग के दौर में चल रहा है। कभी साउंड बजता है तो कभी केवल फौव्वारा चलता है। तूुलसीदास जी द्वारा सुनाई जाने वाली रामकथा का अता पता नही है। चरखारी मंदिर के नीचे से लेकर छवि किशोर मंदिर की तरफ बनने वाला लोहे का पुल दिसंबर में पूरा होना था, पर वह भी अभी केवल बन ही रह रहा है। जिसकी वजह से लगातार लोगों को दिक्कत हो रही है। इसी प्रकार रामधाट के विभिन्न मंदिर यज्ञवेदी, बड़ा अखाड़ा, स्वामी मत्तगयेन्दनाथ जी महराज में लगी लाइटें भी ज्यादा पावर फुल नही दिखाई देतीं। बूढ़े हनुमान जी से लकर चरखारी मंदिर तक रामघाट में लगाई गईं करोड़ों रूपयों की लाइटें बेकार पड़ी हैं। खंभों में लगाई गई एलईडी लाइटें भी महीनों से लोगों ने जलती नही देखी। भाजपा के वरिष्ठ नेता के प्रभाव के बाद प्रशासन द्वारा संतो के सहयोग से प्रारंभ की गई मंदाकिनी गंगा आरती शुरूआत से विवादित रही। कभी एमपी के संतों को ज्यादा तरहीज देने के कारण तो कभी भरत मंदिर के महंत द्वारा कोषाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के कारण लगातार बातें सूनाई देती रहीं। पिछले दिनों वृन्दावन के संत रामदास द्वारा मंदाकिनी के घाट पर इसके विरोध स्वरूप अन्न जल का त्याग करने की बात भी खूब दिनों तक सुर्खियां बनीं। वैसे अभी भी मंदाकिनी आरती का स्वरूप् बदला नही है। आयोजक जल्द ही इसके फार्मेट में बदलाव की बात करते हैं।
 अब अगर बेडी पुलिया से लेकर रामघाट तक के मार्ग की बात करें तो पांच साल बीत जाने के बाद यह मार्ग अभी तक नही बन सका है। अबबत्ता पिछले पांच सालों में लोक निर्माण विभाग ने मार्ग को बनाने के नाम पर जहां बार-बार अपना इस्टीमेट रिवाइज कर जेबें भरने का काम किया, वहीं स्थानीय लोगों को परेशान करने का कोई भी तरीका छोड़ा नही है। हाल का मामला पर्यटक बंगले से सटे मलकाना रोड का है। दोनों तरफ से लेाकर सड़क किनारे बनने वाले नाले को अधूरा छोड़कर उसे छोटे लाने में मिलने का प्लान किया गया है। हाल यह है कि मोहल्ले के लोगों ने इसकी शिकायत जिलाधिकारी से की। जिलाधिकारी ने समस्या के समाधान का आश्वासन दिया, पर अवर अभियंता कमल किशोर लगातार स्थानीय लोगों से अपनी गुंडई कर रहे हैं।





Monday, February 10, 2020

वेलेंटाइन विशेष- चित्रकूट: काम नहीं राम की भूमि

श्रीराम ने चित्रकूट में की थी मां जानकी की पूजा
अपने हाथों से पुष्पों के आभूषण बनाकर किया था श्रंगार व पूजन  

रां ब्रहमनाद का वह स्वर जो सृष्टि के आरंभ से भूमंडल में गुंजायमान है। इस शब्द से निकलकर जब वह म से जुड़ा तो राम हो गया। अवध के राजकुमार राम के रूप में जब वह चित्रकूट आए तो वनवासी की तरह। मां केकैई से मिली सीख की वनवास में वनवासी के साथ रहना। प्रियतमा के साथ रहकर भी प्रेम रस में न डूबना, राम ने साकार कर दिखाया। दाम्पत्य जीवन का सर्वाधिक समय चित्रकूट में बिताने के दौरान राम ने यह दिखाया कि कैसे वह अपनी पत्नी के साथ सुमधुर क्षणों का स्वर्गीय आनंद ले सकते हैं।

विदेशी संस्कृति से ओतप्रोत युवा पीढ़ी के दिमाग में गंदगी भरने के लिए कुत्सित प्रयास लगातार जारी हैं। वेलेंटाइन डे वास्तव में हमारी संस्कृति को बर्बाद करने का मैकाले जैसा प्रयास है। वेलेंटाइन को संत बताकर प्रपोज डे, हग डे, रोज डे जैसे दिन बनाकर युवाओं के दिमाग में महिला व पुरूष शरीर के प्रति गंदगी भरने की गंदी मानसिकता है। जिन देशों में पिता, पुत्र, पत्नी, पुत्री व रिश्तेदारों के पास अपनों से मिलने का समय नहीं है। एक ही घर में अजनबियों की तरह रहते हैं। एक जीवन काल में दर्जनों विवाह करते हैं। यह उन्हीं के लिए उचित है। हम अपने आराध्य को जानें समझें और उसी हिसाब से आचरण करें। हमारे आराध्य श्रीराम व मां जानकी हैं। आइये जानते हैं कि उनके प्रेम का स्वरूप क्या था। 



आदि कवि महिर्षि वाल्मीकि, संत शिरोमणि तुलसीदासजी महराज या फिर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ सभी की लेखनी इस विशेष तथ्य और घटनाक्रम पर खूब चली, इतनी चली कि सभी ने भाव विहवल होकर उन विशेष क्षणों को न केवल जीवांत किया बल्कि यह भी सिद्व कर दिया कि प्रेम एक प्रक्रिया है, जो शास्वत है और उसमें काम को कोई स्थान नहीं। यह तो हर जीवधारी के अंदर बहती है। इस प्रक्रिया को अगर कायदे से रूपांतरित कर दिया जाए तो वह रावण जैसे राक्षसराज को मारने के लिए बड़े शस्त्र के रूप में भी काम आ सकती है।
महिर्षि वाल्मीकि ने अपने भाव व्यक्त किए ,,,
 मनः शिलाया स्तिलको गण्ड पाश्र्वे निवेशितः।
त्वया प्रणष्टे तिलके तं किलस्मर्तुं मर्हसि। (वा0रा0 5/40)


कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ के शब्दों में कहें तो

‘‘ मातः दशभुजा विश्व ज्योति हूं मैं, आश्रित

हो विद्व शक्ति से है खल महिषासुर मर्दित

जन रंजन चरण तल, धन्य सिंह गर्जित

यह, यह मेरा प्रतीक मातः समझा इंगित

मैं, सिंह इसी भाव से करूंगा अभिनंदित‘‘

(अनामिका)

इस दृश्य को जब महाकवि तुलसीदास जी महराज ने अपने भावों से उकेरा तो पूरी भावनाएं साफ हो गईं,,
फटिक शिला मृदु विशाल, संकुल सुरतरू तमाल
 ललित लता जाल, हरित छवि वितान की
मंदाकिनी तटिनि तीर मंजुल मृग विहंग भीर
धीर मुनि गिरा गंभीर सामगान की। 
मधुकर पिक वरहिं मुखर सुन्दर गिरि निरझर झर
जल कन धन छाॅह छन प्रभा न भान की 
 सबरितु रितुपति प्रभाउ संतत बहै त्रिविध बाउ
 जनु बिहार वाटिका नृप पंचवान की।
विरचित तहं परनशाल, अति विचित्र लखनलाल
 निवसत जॅह नित कृपाल राम जानकी
निजकर राजीव नयन पल्लव दल रचित शयन
प्यास परस्पर पीयूष प्रेम पान की।
सिय अंगलिखै धातु राग सुमननि भूषण विभाग
तिलक करनि क्यों कहउं कला निधान की 
माधुरी विलास हास गावत जस तुलसिदास
बसति हृदय जोरी प्रिय परन प्रान की। 
( गीतावलि) 
महाकवि ने इस अतभुद प्रेमरस का वर्णन मानस में किया तो आनंद की रसवर्षा का कोई ओर- छोर न रहा
‘ एक बार चुनि कुसुम सुहाए, मधुकर भूषण राम बनाए।
सीतहिं पहिराए प्रभु सादर,बैठे फटकि शिला पर संुदर।।

लगभग तीनों महान कवियों ने अपनी भावना को व्यक्त करने के लिए एक ही स्थान व कथानक चुना। यह बात और है कि तीनों के कहने का ढंग अलग-अलग है। लेकिन इसका यर्थाथ तो यही निकलता है कि शेषावतार लक्ष्मण जी की अनुपस्थिति में प्रभु श्रीराम ने श्रंगारवन से अपने हाथों से फूल चुनकर उनके आभूषण बनाएं और फिर का माताजी का श्रंगार कर पूजन किया। पैरों में महावर, अक्षत व कुंकुम से तिलक लगाने के साथ ही सिंदूर भी मांग में भरा। तुलसीदास जी ने अपने दोहों में सादर शब्द का उपयोग बहुत ही सोच समझकर किया है। वह यह बताना चाहते हैं कि चित्रकूट विश्व की आध्यात्मिक राजधानी क्यों है! इसलिए कि यहां पर श्रीराम ने मां जानकी का श्रंगार व पूजन किया तो दूसरी ओर श्रुति कहती है कि यत्रु नारयंते पूजिते, रमंते तत्र देवता और चित्रकूट की भूमि पर बाकी देवताओं की बात छोड़िए स्वयं त्रिदेवों को भी एक नहीं कई बार अवतरित होना पड़ा। अगर हम श्री हरि विष्णु के अवतारों की बात करें तो न केवल श्री राम, परशुराम, हंस भगवान ने इस धरती पर विचरण किया बल्कि श्रीकृष्ण की उत्पत्ति का सीधा कारण भी इसी भूमि पर मौजूद है। 

वैसे चित्रकूट आदि शक्ति मां जगद्जननी का भी प्राचीन स्थल है। तांत्रिक लक्ष्मी कचव में तो साफ तौर पर लिखा है ‘ सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूट निवासिनी। भयं हरते सदा पाषाद् भवबंधाद् विमोचयेत्। 

मोक्षदा स्त्रोत पढ़ने पर ज्ञात होता है कि चित्रकूट प्रेम की भूमि है। शांति की भूमि है, यहां की भूमि काम से राम की ओर ले जाती है। मोक्षदा देवी की आराधना का पहला मंत्र प्राणी मात्र से प्रेम करना है। 


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Saturday, February 8, 2020

काउनोमिक्सः मंदाकिनी को जीवन देने की कोशिश

गोमूत्र, गोबर व जड़़ी बूटियों से बदल रही है त्रिवेणी की सूरत
एक महीने में फर्क दिखाने का कंपनी का है दावा,
 20 दिन में ही दिख रहा है काफी फर्क 
गोयनका घाट से भरत घाट तक 500 मीटर नदी का चल रहा है उपचार 

संदीप रिछारिया 

 मृत्युशैया पर मंदाकिनी, जैसे ही लोगों को लगा कि वास्तव में मां मंदाकिनी कोमा में पहुंच चुकी है। नदी का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ चुका है। नदी में पानी की मात्रा कम और गंदगी की मात्रा ज्यादा है। लाखों मछलियां व अन्य जीव लगातार मरते जा रहे हैं। लोग जागे काफी हो हल्ला हुआ। कुछ लोगों ने फावड़े चलाए, पोक लैंड से सफाई हुई, पर नजीता वही ढाक के तीन पात। मंदाकिनी की गंदगी लगातार बढ़ती रही। डा0 जीडी अग्रवाल, डा0 घनश्याम गुप्ता जैसे लोग रोते कलपते रहे, गाय़़त्री परिवार के स्थानीय प्रमुख डा0 रामनारायण त्रिपाठी लगातार अपनी टोली के साथ सफाई के काम में लगे रहे, पर निष्कर्ष कुछ भी न निकला।
लगातार 20 सालों के संघर्ष को अब रास्ता मिलता दिखाई दे रहा है। यमुना की सहायक नदी के तहत चयनित मंदाकिनी को वास्तविकता में बचाने का काम विधायक नीलांशु चतुर्वेदी ने किया है। नगर पंचायत अध्यक्ष व विधायक बनने के पहले नीलांशु ने डिजायर ग्रुप की स्थापना कर मंदाकिनी को पुर्नजीवन देने के लिए काफी संघर्ष किया। इस वर्ष के प्रारंभ में जैसे ही उन्हें मालूम चला कि दिल्ली की एक कंपनी वैदिक तरीके से जलाशयों व नदियों का आयुर्वेदिक दवाओं के सहारे उपचार कर साफ करने का काम करती है तो उन्होंने कंपनी के प्रतिनिधि प्रदीप द्विवेदी को बुलवाया। तय किया गया कि नदी का 500 मीटर का क्षेत्र कंपनी को दिया जाएगा। वह उस एरिया में अपना उपचार करेंगे, अगर उनका उपचार कारगर रहा तो आगे फिर उनसे बाकी की नदी साफ कराई जाएगी। कंपनी के प्रतिनिधि ने अपने उच्चाधिकारियों के साथ मिलकर नदी को साफ करने का काम 16 जनवरी से गोयनका घाट से लेकर भरतघाट के बीच शुरू किया। गोबर, गो मूत्र व अन्य आयुर्वेदिक दवाओं को पानी में मिलाकर कई स्थानों पर इसे डाला गया। धीरे-धीरे नदी की सूरत बदल रही है। जहां पहले पहली सीढ़ी के नीचे ही गंदगी का अंबार दिखाई देता था। अब रामघाट में नदी की 7 सीढ़ियों के नीचे साफ पानी दिखाई देता है।
प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि यह पूरी तरह आयुर्वेदिक है। वास्तव में यह छिति, जल पावक व गगन, समीरा यानि पांच तत्वों पर आधारित जल उपचार प्रक्रिया है। इससे जल का पारिस्थिति तंत्र सही हो जाता है। नदी के नीचे मिटृटी से गाद साफ होती है। जिससे अपने आप मछलियां व अन्य जीव जंतु पैदा हो जाते हैं। अगर इस उपचार को पूरी नदी पर किया जाए तो लगभग एक साल में पूरी नदी को बिलकुल साफ यानि जैसा इस नदी का नाम है पयस्वनी तो दूध के समान धारा बनाया जा सकता है।उन्होंने कहा कि दूसरे पुल के बाद यह नदी उप्र के क्षेत्र में आती है। फिलहाल अभी पुल तक इस उपचार का असर दिखाई देगा। भविष्य में अगर उपचार के लिए आगे आदेश मिलेगा तो किया जाएगा।

Thursday, February 6, 2020

डाक्टर मोदी ने बताया डंडे से पिटने का इलाज है सूर्य नमस्कार

संसद लाइव,,, 


संदीप रिछारिया

 तमाम यूनीवर्सिटीज से डीलिट की उपाधि प्राप्त कर चुके प्रधानमंत्री डाक्टर नरेंद्र मोदी ने गुरूवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए डंडे से पीटे जाने का इलाज सूर्य नमस्कार को नई दवाई के रूप में देश के सामने प्रस्तुत कर दिया। उनके इस कथन पर कुछ देर तक तो राजग के सांसद भी सन्न रह गए, पर मोदी तो मोदी हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 20 साल से जैसे वह गाली सुनते सुनते गाली पू्रफ हो गए हैं, वैसे ही अब वह अपने आपको डंडा प्रूफ बना लेंगे।


मामला कुछ इस प्रकार है, सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को एक जनसभा में कहा था कि बेरोजगारी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ नही बोलते हैंै। उनका न बोलना युवाओं को अखर रहा है, यही हालत रही तो 6 महीने में युवा उन्हें डंडों से पीटने लगेंगे। उनके इस विवादास्पद बयान के बाद किसी अन्य भाजपा नेता का बयान तो सामने नहीं आया। आज संसद में मोदीजी ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि उन्होेंने 6 महीने की समय सीमा बताकर तैयारी का वक्त दे दिया है।

 6 महीने में वह अपने सूर्य नमस्कार की संख्या को बढ़ाकर पीठ को और मजबूत कर लेंगे। उनकी पीठ भी मजबूत हो सके। हालांकि उन्होंने इस दौरान भूकंप आने का भी जिक्र किया कि देश ने भूकंप को भी लाने वालों को देखा और उसकी सच्चाई देखी। उनके इस बयान के बाद ससंद से निकलने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने राहुल गांधी पर हमलावर होते हुए कहा कि देश उनके बाप का नही है, यह आम लोगों का है। उनको जनता से अभी कम सबक सिखाया है, जो और कुछ देखना बाकी है।




 वैसे इसके पूर्व संसद में प्रधानमंत्री ने नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस के अधीर रंजन चैधरी के बार -बार खड़े होकर बोलने पर कहा कि अब उनका सीआर सही हो गया है। जिस पर बहुत देर तक ठहाके लगते रहे।

चकनाचूर हो रहे हैं सेक्यूलरों के बनाए फाल्स नैरेटिव

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श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि व बाबा विश्‍वनाथ जी के साथ 5000 मंदिरों को खाली कराने की तैयारी
- 2020 की चैत्र नवमी होगी खास, श्री रामजन्‍म भूमि मंदिर रामलला के भव्‍यतम मंदिर की तैयारी 

संदीप रिछारिया 

नौमी  तिथि मधुमास पुनीता, चैत्र रामनवमी यानि प्रभु श्री राम के अवतरण का दिन। अब 2020 की नवमी तिथि वास्तव में खास बनाने की तैयारी भाजपा सरकार कर रही है। दूरदृष्टि, पक्का इरादा और कर्मठता के साथ मेहनत भाजपा की यही पुरानी पूंजी रही है। राम मंदिर आंदोलन के समय नारा दिया गया था, रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे तो विरोधियों यानि सेक्यूलर जमात के चिंटुओं ने इसमें जोड़ा कि तारीख नहीं बताएंगे। अटलजी की सरकार के साथ मोदीजी पार्ट वन में भी इस नारे को लेकर सेक्यूलर खूब हल्ला मचाते रहे। भाजपा के शीर्षस्थ नेता कहते रहे अदालत का फैसला सर्वोपरि है। यूपी में बसपा शासन काल में हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि जमीन के तीन बराबर हिस्से कर दिए जाएं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले को आइनेे की तरह साफ कर दिया। विद्वान अधिवक्ता के पराशरन के तर्कों के सामने जहरयाव जिलानी सहित अन्य सेक्यूलर वकील पानी मांग गए। उनके तथ्य, साक्ष्य और तर्कों के सामने किसी की नहीं चली। अंततः फैसला सबके आया। हां, इस दौरान कोर्ट ने सुलह समझौता का भी रास्ता निकाला। कभी बाबा रामदेव, तो कभी श्रीश्री रविशंकर जैसे तमाम नाम अपने आपको हिंदू समाज में स्थापित करने का प्रयास करते रहे। इस दौरान तमाम जगद्गुरू भी अपने आपको संघ व विहिप का खास बताकर रेवडियां लूटने में आगे लगे रहे। लेकिन जब रेवडियां बटने की बारी आई तो वह मुंह टापते दिखाई दिए। अयोध्या में चल रहा संतों का विरोध जायज है। इसमें कुछ संतों को शामिल रकने व अयोध्या के प्रमुख संतों की भागीदारी की जगह विहिप के लोगों को अधिक मात्रा में लेने से नाराजगी है।
अब वैसे यह न्यू इंडिया, विजनरी इंडिया है। ये मोदी का बनाया नया इंडिया है। जिस इंडिया में वर्ष 2014 के पहले राम का नाम लेना पाप समझा जाता था, भाजपा का समर्थक पापी माना जाता था। हिंदू आतंकवाद की नई परिभाषाएं गढ़ी जाती रहीं, और तो और औरंगजेब इनके लिए देवता और राम काल्पनिक चरित्र होते थे। मंदिरों से टैक्स व मस्जिदों के इमा के पेंशन दी जाती रही। केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी, बसपा और अन्य गिरोहबंद राजनैतिक पार्टियों व उनके पालित मीडिया के चिंटुओं ने राष्ट्रवाद के जनक के तौर पर गांधी व नेहरू परिवार को पोषित करने के लिए तमाम कहानियां बनाई। वो तो भला हो शिवसेना के सुप्रीम बाल ठाकरे व हिंदूवादी नेता सुब्रमणियम स्वामी का, जिन्होंने हिंदुत्व, हिंदू व हिंदुस्तान की सही अवधारणा सामने लाए। वैसे बाल ठाकरे ने भय बिनु होय न प्रीत वाली कहावत को सिद्व किया। एनआरसी को लेकर मुसलमानों की चिंता को नजर अंदाज किया जाना उचित नही है, अच्छा होगा इसका निर्णय लेने का अधिकार सुब्रमणियम स्वामी व के पाराशरन को सौंप दे। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के बाद श्री कृष्ण जन्म भूमि, बाबा विश्वनाथ के साथ पांच हजार मंदिरों को मुसलमानों के कब्जे से मुक्त कराने की लड़ाई वह कर रहे हैं।
फिलहाल अब इस बात को लेकर हिंदू जनमानस में इस बात की खुशी दिखाई देती है कि जो नैरेटिव गलत तथ्यों के सहारे आम लोगों के अंदर सेट करने का काम कांग्रेस व उसके पालित तथाकथित साहित्यकारों, इतिहासकारों,कवियों व पत्रकारों ने किया, अ बवह टूटता नजर आ रहा है। जल्द ही
आने वाले समय में आगे के और भी नैरेटिव टूटते रहेंगे।


Wednesday, February 5, 2020

राम मंदिर का रास्ता साफ हुआ, ट्रस्ट बनाकर निर्माण की योजना सौंपने की तैयारी में सरकार

 शंकराचार्यों को मिली जगह, रामानंदाचार्यों से किनारा
 अखाड़ों के महंत व केंद्र व राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी होंगे ट्रस्ट के कर्ताधर्ता  

संदीप रिछारिया 

सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे और अब इस नारे के पूरा होने का समय नजदीक भी आ गया है। तमाम संतों की राय सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने भी राम मंदिर निर्माण की शुरूआत के लिए रामनवती की तिथि तय करने का मंसूबा बना लिया है।
केंद्र सरकार ने अदालत द्वारा दी गई तारीख के चार दिन पहले बुधवार को ही राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट का गठन कर दिया। सुप्रीम को कोर्ट ने 9 नवंबर को अपने आदेश में तीन महीने में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया था। अब यही ट्रस्ट राम का निर्माण करेगा। ट्रस्ट का पंजीकरण दिल्ली में होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखते हुए कैबिनेट की बैठक में कई अहम फैसले किए गए। सरकार ने राम मंदिर निर्माण के लिए अहम फैसले के बड़ी योजना बनाई है। सरकार ने राम जन्म भूमि तीर्थ ट्रस्ट गठन का प्रस्ताव किया है। यह ट्रस्ट अयोध्या में राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए उत्तरदायी होगा। कहा कि पांच एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने के लिए उप्र सरकार ने अनुरोध किया है, जिसे प्रदेश सरकार ने मान लिया है।
67 एकड जमीन में बनेंगा भव्य राम मंदिर 
एक्ट के तहत अधिग्रहित की गई 67 एकड भूमि पर राम मंदिर का निर्माण होगा। इसकी कार्ययोजना पूरी तरह से बना ली गई है। योगी कैबिनेट पांच एकड़ जमीन के आवंटन का पत्र भी बोर्ड को देगी। संभावना जताई जा रही हेै कि अयोध्या के पास लखनउ हाइवे पर रौनाही के धन्नीपुर में चिहिंन्त 5 एकड भूमि वक्फ बोर्ड को दी जाए।
चार शंकराचार्य ट्रस्ट में शामिल, निर्माेही अखाड़े को भी मिला सम्मान 
उच्च पदस्त सूत्रों के मुताबिक आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारो पीठों के शंकराचार्यों को ट्रस्ट में स्थान दिया गया है। इसके साथ ही अयोध्या के महंत नृत्य गोपाल दास, दिगंबर अनी अखाड़े के महंत सुरेश दास, निर्माेही अखाड़े के महंत दीनेंद्र दास, गोरक्षपीठ गोरखपुर के प्रतिनिधि, कर्नाटक के उडूपी पेजावर पीठ के प्रतिनिधि, विहिप से ओम प्रकाश सिंहल, उपाध्यक्ष चंपक राय, विहिप के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष व अयोध्या आंदोलन के जनक स्व0 अशोक सिंहल के भतीजे सलिल डालमिया, दिवंगत विष्णु हरि डालमिया के परिवार से पुनीत डालमिया, एक दलित प्रतिनिधि व एक महिला प्रतिनिधि शामिल होंगी। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी, प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में अयोध्या के डीएम को शामिल किया जा सकता है।


Tuesday, February 4, 2020

डिफेंस एस्पोः भविष्य का बुंदेलखंड

डिफेंस काॅरीडोर के लिए चयनित हैं झांसी व चित्रकूट 


 संदीप रिछारिया 


 बडे़ लडईया महुबे वाले इनसे हार गई तलवार। देश में जब बुंदेलखंड की बात आती है तो यहां के शौर्य की चर्चा जरूर होती है! दो नाम अपने आप जुबा पर आ जाते हैं एक महोबा व दूसरा झांसी। रानी लक्ष्मी बाई और आल्हा उदल की धरती। लेकिन एक सबसे प्रमुख बात तब छिपती दिखाई देती है कि आखिर भाजपा के थिंक टैंक ने रक्षा उपकरणों के निर्माण के लिए झांसी के साथ चित्रकूट को क्यों चुना। चित्रकूट में रक्षा उपकरणों के निर्माण के बारे में विचार करने के लिए हमें अपने टाइम स्केल को पीछे ले जाना होगा। टाइम स्केल सेट करना होगा श्री राम के जमाने में। राजकुमार राम चित्रकूट आते हैं अपनी भार्या सीता व भाई लक्ष्मण के साथ। वह यहां पर तत्कालीन ऋषियों से मिलते हैं। ज्ञान और भक्ति की बातें करते हैं, उनका आर्शीवाद लेते हैं। तभी एक घटना महिर्षि सरभंग व सुतीक्षण आश्रम के पास ऐसी घटती है। सरभंग ऋषि के आश्रम से सुतीक्षण ऋषि के आश्रम जाते समय उन्होंने एक अस्थियों का पर्वत दिखाई देता है। साथ में चलने वाले ऋषि कुमार उन्हें बताते हैं कि यह पर्वत संतों व ऋषियों की अस्थियों का है। राक्षस उन्हें मारकर खा जाते हैं और उनकी अस्थियों का ढेर लगाकर उसे पर्वत के रूप में एकत्र कर दिया है। दंडकारण्य की इस सीमा पर ऋषियों व तप करने वालों को यज्ञ आदि की अनुमति नही है। वह यह सुनते ही रघुकुल नंदन अपनी भुजा उठाकर प्रण लेते हैं कि ‘ निशिचर हीन करौं महि‘। श्री राम चरित मानस में वर्णित है कि श्री राम ने सिद्वा पहाड़ पर ऋषि व संतों की अस्थियों के ढेर देखकर प्रण किया वह धरती से राक्षसों की संतति का विनाश कर देंगे। उस समय सीता जी व लक्ष्मण जी उनके साथ थे। अब सवाल उठता है कि कि आखिर इस स्टोरी के पीछे चित्रकूट में स्थापित होने जा रहे रक्षा आयुध उपकरणों की फैक्ट्रियों से क्या संबंध है। संबंध तो है ही और पूरा है। चित्रकूट परिक्षेत्र भले ही तप और वैराग्य से भरा रहा हो। हजारों संत यहां पर आदि काल से तपस्या में रत रहे हों, लेकिन वास्तविकता यह है कि वे संत कोई मामूली नही थे। जहां उनके तप में धर्म और आध्यात्म अपनी पराकाष्ठा तक पहुंचा। वाल्मीकि जी आदि कवि थे तो सुतीक्षण, सरभंग, अगस्त, गौतम, सहित दर्जनों ऐसे ऋषि थे, जिनके पास अग्नेयास्त्र व प्रक्षेपास्त्र का भंडार था। राम को सुदर्शन चक्र व अपना धनुष भी इसी परिक्षेत्र में प्राप्त हुआ। अग्निबाण,खरबाण सहित अन्य आयुध और रक्षा करने के अन्य उपकरण यहां पर प्राप्त हुए। माता सीता को मां अनुसूइया ने अक्षय पात्र के साथ ही कभी मलीन न होने वाले वस्त्र भविष्य की योजना के अनुसार ही प्रदान किए थे। इतना ही नहीं राम जी को महिर्षि अत्रि के पुत्र आत्रेय ने आयुर्वेद का ज्ञान भी प्राप्त कराया था। उनकी चिकित्सा से बेसुध हुई सेना उठकर खडी हो जाती थी। मंगलवार से लखनउ में हो रहे डिफेंस एक्पो में विश्व भर से रक्षा उपकरण बनाने वाले कंपनियों में कितनी कंपनियां चित्रकूट में अपना कारखाना लगाने का काम करेंगी, यह तो भविष्य की बात है, पर भाजपा सरकार ने 3000 हेक्टेयर भूमि की व्यवस्था तो उनके लिए कर ही दी है। वैसे गैर सरकारी रिपोर्ट में मुताबिक पूर्व में 36 कंपनियों ने चित्रकूट में अपनी फैक्ट्री लगाने के लिए सहमति जताई थी। फ्रांस, कनाड़ा, बिट्रेन व अमेरिका, जापान जैसे देशों की कंपनियों के यहां पर आने की बात सामने आ रही थी, अब देखना यह होगा कि पांच दिनों के इस आयुध मेले का फल चित्रकूट या बुंदेलखंड को क्या मिलता है। पौराणिक आख्यान वाल्मीकि रामायण में महिर्षि अगस्त द्वारा श्री राम को शस्त्र यौंपने का वर्णन हुछ इस प्रकार मिलता है। इसमें प्रमुख रूप से भगवान विष्णु का धनुष सौंपने की बात कही जाती है। इदं दिव्यं महच्चापं हेम वजं विभूषितम।् वैष्णवं पुरूष व्याघ्र निर्मितं विश्वकर्मणा ।। अनेन धनुषा राम हत्या संख्ये महासुरान। तद्वनुस्तौ च तूर्णा च शरं खडं च मानद्।। (वारा 3ः12ः32ः35ः36) अर्थातः- पुरूष सिंह। यह विश्वकर्मा द्वारा निर्मित स्वर्णाकिंत हीरों से सुसज्जित विशालतम भगवान विष्णु का दिव्य धनुष है। इस धनुष के द्वारा संग्राम मेें भयावह असुरों का संहार कर देवताओं की लक्ष्मी लौटा लाओ। मानद! तुम इस धनुष इन दो तूणीरों को बाण व तलवार से विजय के लिए स्वीकार करो। श्री राम को महिर्षि अगस्त द्वारा शारंग धनुष सौंपने के कारण पन्ना जिले में इस गांव का नाम सारंग पड़ गया। वैसे मिथला में भी जिस स्थान पर भगवान राम ने अजगव का खंडन किया था, उस जिले का नाम ही धनुषा है। वैसे वाल्मीकि रामायण के युद्व कांड के 108 श्लोक में साफ तौर पर वर्णित है कि जब भगवान राम को रावण से युद्व करते काफी समय बीत गया तो देवराज इंद्र के सारथी मातुल ने उन्हें स्मरण कराया कि आप इस पर ब्रहृमास्त्र का प्रयोग करें। श्री राम ने उनके वाक्य पर ब्रहमास्त्र का प्रयोग किया और सर्प के समान फुफकारते हुए वाण ने रावण का संहार कर दिया। महिर्षि अगस्त द्वारा दिए गए दो बाणों में एक ब्रहमास्त्र भी था।

Monday, February 3, 2020

मंदाकिनी गंगा आरती पर विवाद

वृन्दावन से आए संत ने लगाया पारंपरिक तरीका खत्म करने का आरोप कहा कि, यह मंदाकिनी की नहीं अपितु गंगा की आरती
चित्रकूट के रामघाट पर तुलसी चबूतरे के नीचे 8 नवंबर से शुरू हुई मंदाकिनी गंगा आरती के आयोजन पर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। शनिवार को वृन्दावन से आए संत रामदास जी ने काशी की तर्ज पर वहीं से लाई गई रिकार्डिंग के आधार पर की जा रही भव्य आरती पर प्रश्नचिंह खड़े करते हुए इसे फिल्मी आरती कहा था। उन्होंने तर्क दिया था कि आरती को पारंपरिक घंटा व घडियालों के माध्यम से ही कराया जाना चाहिए। आरती गंगा की नहीं बल्कि मंदाकिनी, पनयस्वनी व सरयू की हो। बाबा भोलेनाथ की स्तुति रावणकृत न होकर संत तुलसीदास कृत रामचरित मानस वाली होनी चाहिए। रविवार की शाम भी मंदाकिनी गंगा आरती के पूर्व उन्होंने विवाद खड़ा कर आरती को प्रारंभ नहीं होने दिया। आयोजक काफी देर तक हाथ पैर मारते रहे, फिर भरत मंदिर के महंत व मंदाकिनी गंगा आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे चुके महंत दिव्यजीवन दास नीचे आए और उन्होंने काफी देर तक महंत रामदास को समझाने का काम किया। इसी दौरान आयोजकों ने राममोहल्ला से प्रमुख द्वार के अधिकारी मदन गोपाल दास को भी बुलवा दिया। दोनों महंतों के समझाने के बाद रविवार को महंत रिकार्डिंग से आरती करवाने को राजी हुए। रविवार को आरती लगभग आधा घंटा देर से प्रारंभ हुई। आरती के बाद भी काफी देर तक विवाद की स्थिति बनी रही। आयोजकों ने रामदास जी को मनाने का बहुत प्रयास किया। अंत में रामदास जी ने घोषणा किया कि सोमवार को वह स्वयं ही पारंपरिक तरीके से आरती करवायेंगे। जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय ने कहा कि यह आरती चित्रकूट के संतों ने प्रारंभ की है। महंत रामदास जी हमारे अतिथि हैं। सभी लोग उनका सम्मान करते हैं। उनको भी यहां के संतों का सम्मान करना चाहिए। गौरतलब है कि मंदाकिनी गंगा आरती के प्रारंभ से ही विवाद जुड़े रहे हैं। कभी स्थानीय पंडा समाज द्वारा जमीन को लेकर विवाद रहा तो कभी उत्तर प्रदेश की आरती में मध्य प्रदेश के संतों की भागीदारी को लेकर विवाद रहा। समय समय पर लोग इसका विरोध जताते भी रहे।