Monday, March 28, 2011

खुद अपने हाथों लिख रहे मेहनतकश अपनी तकदीर

क्रासर- सूखी सिंघन नदी में निकला पानी


चित्रकूट, संवाददाता: भय, भूख और भ्रष्टाचार को सहने की बेबसी से जब ग्रामाणों ने आगे निकलकर सोचा तो एक नई इबारत लिख डाली। मानव और पशुओं की सूखती काया को जीवनदान देने का काम खुद अपने ही हाथों कर डाला। बरगढ़ के पास गांव सत्यनारायण नगर के भौंटी कैमहाई के पास सूखी पड़ी सिंघन नदी को एक बार फिर जिंदा कर दिया गया। लगभग साठ मीटर दूरी पर तीन फिट गहरी व सोलह फिट दूरी की नदी को बहते देख जितनी प्रसन्नता गांव वालों को हो रही है उससे ज्यादा प्रसन्नता वहां पर पहुंचे पुलिस अधीक्षक डा. तहसीलदार सिंह को हुई। वे अपने आपको रोक न पाये और खुद ही फावड़ा लेकर श्रमदान करने के लिये जुट गये। इस दौरान काम कर रहे ग्रामीणों में भी काफी उत्साह आ गया और वे भी प्रेरणा गीत गाकर उमंग के साथ काम में जुट गये। इसके बाद पुलिस अधीक्षक ने वहीं पर चौपाल लगाकर ग्रामीणों के साथ बातचीत की। ग्रामीणों ने उन्हें जानकारी दिया कि विकास खंड के छितैनी गांव में पिछले तीन माह से फ्रांस के अलेक्सिस व अमेरिका के जैफ फ्री मैन बरसात के पानी की एक-एकबूंद को बचाने के लिये ग्रामीणों को समझाने का काम कर रहे हैं। वे यहां पर सर्वोदय सेवा आश्रम द्वारा लाये गये हैं। पिछले दिनों जब पानी की कमी के कारण दिक्कतें बढ़ी और पलायन होने लगा तो आश्रम के अभिमन्यु सिंह ने जलपुरूष राजेन्द्र सिंह द्वारा पानी की कमी वाले राजस्थान में सूखी नदी को जिंदा करने की कथा सुनाई। ग्रामीणों में उत्साह भरा कि अगर वे चाहे तो यहां पर भी ऐसा हो सकता है। पानी की कमी के कारण बेबसी का सामना करने वाले मेहनतकशों ने कमर कसी और फावड़ा लेकर नदी में खुदाई प्रारंभ कर दी। देखते ही देखते नदी की सिल्ट हटी और जलस्रोत फूटने लगे। ग्रामीणों के साथ ही सर्वोदय सेवा आश्रम के संतोष, अखिलेश, कमलेश, रीतू, बबलू व भीमसेन आदि तो खुशी के मारे नाचने लगे। ग्रामीणों ने बताया कि पांच गांवों के लोग इस नदी से कभी पानी पीने आया करते थे अब फिर से पशुओं व सिंचाई के लिये पानी मिल सकेगा।
सर्वोदय सेवा आश्रम के मंत्री अभिमन्यु सिंह ने बताया कि अभी तो यह शुरुआत है अब जनसहयोग से बरगढ़ क्षेत्र की नेवादा, कितहाई, मेडना, मौना व मादा नदी को पुर्नजीवित करने का काम किया जायेगा। उन्होंने कहा कि जिलाधिकारी ने सभी नदियों में खुदाई के काम को मनरेगा से करवाने के आदेश दिये है। इससे तो सभी ग्रामीणों में बड़ी आशा का संचार हुआ है पर यहां पर तो पिछले पन्द्रह दिनों में ग्रामीणों ने लगभग साठ मीटर नदी खोद डाली है पर बीडीओ के आने के बाद भी ग्राम प्रधान ने इसे प्रस्ताव में शामिल नही किया है। बल्कि रविवार को ही ग्राम प्रधान काम कर रहे मजदूरों को लालच देकर सड़क बनाने के काम के लिये ले गये हैं।

जल्द ही जिले की हर नदी में होगा पानी

चित्रकूट, संवाददाता: बरदहा, ओहन, गेडुवा व बाल्मीकि के साथ ही जिले की अन्य सभी नदियों पर एक बार फिर सिंघन नदी की तरह ही पानी आने की प्रबल संभावना का जन्म हो चुका है। जहां बरगढ़ इलाके में नेबादा, कितहाई, मेडना, मौना आदि नदियों पर तो लोग खुद ही पहल कर अपने मेहनतकश हाथों से पानी निकालने का काम प्रारंभ करने वाले हैं वहीं जिलाधिकारी ने भी अपनी ओर से सभी नदियों और नालों को पुर्नजीवन देने के लिये मनरेगा से उन्हें मजदूरी दिये जाने के आदेश जारी कर दिये हैं।

हो सकता है कि आने वाली गर्मी में बंधोईन के आगे दम तोड़ चुकी मंदाकिनी को पुर्नजीवन मिल जाये। जिलाधिकारी दलीप कुमार गुप्ता द्वारा मंदाकिनी सहित जिले कीअन्य सभी नदियों और नालों को मनरेगा के द्वारा खुदाई व सफाई कराने के सभी खंड विकास अधिकारियों को दिये गये आदेश के बाद तो लोगों में खुशी का संचार हुआ है।
वैसे एक नहीं लगभग आधा दर्जन नदियों और दर्जनों नालों वाले इस जिले में इधर गर्मी ने दस्तक दी तो उधर गंभीर जल संकट ने अपने पैर फैलाने प्रारंभ कर दिये हैं। लेकिन पेयजल को लेकर हाहाकार मचे इसके पहले ही जिलाधिकारी ने खुद बढ़कर ऐसी पहल कर डाली है जिससे आने वाले में जल संकट को न केवल दूर किया जायेगा बल्कि पेयजल की उपलब्धता को लेकर जिले की दशा और दिशा दोनो बदल सकती है।
मामला जिले के प्रमुख नदी मंदाकिनी के साथ ही अन्य नदियों और नालों की जल धाराओं के टूटने का है। जिलाधिकारी दलीप कुमार गुप्ता ने इसका उपाय सरकारी और
गैरसरकारी दोनो स्तरों पर खोज लिया है। उन्होंने जिले के समस्त खंड विकास अधिकारियों को बैठक कर आने वाले दिनों में पाठा के साथ ही पूरे जिले में आने वाले जल संकट की भयावहता से परिचित कराते हुये कहा कि वे लोग अपने -अपने इलाकों की नदियों और नालों पर मजदूरों से खुदाई करवाना प्रारंभ करवा दें जिससे नदी की सिल्ट के साफ होने के साथ ही दबे पड़े जल स्रोत भी सामने आ सकें।
जिलाधिकारी ने जागरण से बातचीत में कहा कि नदियां जीवनदायिनी हैं। इसलिये ही इन्हें भारतीय संस्कृति में मां का दर्जा दिया गया है। अगर समय रहते इन पर ध्यान नही दिया गया तो ये गंदगी की आगोश में आकर विलुप्त हो सकती हैं। जिलाधिकारी कहते हैं कि मंदाकिनी सहित सभी नदियों और नालों पर खुदाई का काम करवाया जायेगा। सिल्ट साफ होने पर लगभग हर नदी में जलस्रोत अपने आप खुल जायेगे और इलाके से पानी की कमी दूर होगी।







Sunday, March 6, 2011

केंद्र सरकार से चित्रकूट का वैभव बचाने की अपील

 राष्ट्रीय रामायण मेले के 38 वें संस्करण के शाम की विद्वत गोष्ठी विद्वानों ने चित्रकूट को ही समर्पित कर इसके अलग स्वायत्तशाषी राज्य बनाये जाने की वकालत की।

बांदा से आये हिंदी के विद्वान डा. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने कहा कि चित्रकूट की संस्कृति तो सिंधु घाटी की सभ्यता से पुरानी है। इसे काल के अंतराल में बांटने का काम कोई कर ही नही सकता। आवश्कता तो इस क्षेत्र में अभी और उत्खनन के कार्य करके पुराने रहस्यों को उजागर करने की है। उन्होंने अद्भुत, अनोखे और अलौकिक इस परिक्षेत्र को राज्यों की मांग के बीच पिसने के कारण बर्बादी की कगार पर पहुंचने की बात कहते हुये कहा कि चित्रकूट में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश है चित्रकूट सबका है। इसे सबका रहने दिया जाये। केंद्र सरकार इसे सीधे अपने संरक्षण में लेकर इसका समुचित विकास करे तभी पूरे विश्व को यहां के बारे में सही जानकारी मिल सकेगी व उसका फायदा मिलेगा।
उन्होंने कविता के रूप में परिभाषित करते हुये कहा कि 'ऋषि राम रहीम जहां पर पैयस्वनी का जल है, संस्कृतियों के संगम वाला चित्रकूट स्थल है।' यह सृष्टि का सार्वभौमिक महत्व का अरण्य तीर्थ है। इसकी प्राकृतिक संपदा इसकी सौन्दर्य छवियां विश्व में सर्वाधिक मनोहारी है। चित्रकूट की संस्कृति जनवादी लोक व्यापी एवं त्याग तपस्या पर आधारित रही है। सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राचीन पयस्वनी घाटी की सभ्यता या चित्रकूट की सभ्यता अनुसंधान का विषय है। यहां की आग्नेय घाटी ज्वालामुखी, जल उद्गम्य श्रोत, पर्वतों से निकलने वाली जल धारायें झरने सभी कुछ आदिम और नैसर्गिक रूप को अभी भी सुरक्षित हैं। ऐसे में आवश्यकता है चित्रकूट को स्वायत्तशाषी क्षेत्र बना देने की। जो राजनीति से सर्वथा मुक्त हो। जिसका भूगोल, इतिहास, संस्कृति, भाषाई सौहार्द एवं इस धरती में आने वाले विभिन्न संप्रदायों एवं मत-मतान्तरों से ऊपर उठकर एक सर्वव्यापी संस्कृति का स्वर प्राणवान हो सके। चित्रकू ट की संस्कृति जोड़ने वाली है तोड़ने वाली नही, राम राज्य की मूल परिकल्पना लोक तंत्र की अवधारणा के बीच सबसे पहले इस धरती पर अवतरित हुई। जहां राज सत्ता पर चरित्र की विजय हुई जहां राम राज्य मुकुट उतारकर नंगे पांव परिभ्रमण करते हैं जहां आकांक्षाओं के अनुरूप दलितों, नारियों और वनवासियों की पीड़ा को अपनत्व प्रदान करते हैं। यही वह संस्कृति का स्थान है जो चित्रकूट को विश्व के सबसे प्रथम स्वतंत्र और सर्वोपरि महत्व प्रदान करती है।
अयोध्या से पधारे संत फलाहारी महराज ने कहा कि राम दलितों और निर्धनों के सम्बल बनकर चित्रकूट में आये। रामायण मेला के आयोजन के लिये डा. लोहिया ने चित्रकूट को इसलिये चुना कि वे यहां से एक लोक संस्कृति का नया संदेश दे सकें। जब तक जनता का मनोबल ऊंचा नहीं होगा और शोषण से मुक्ति नही मिलेगी तब तक हमारा प्रयास चलता रहेगा।
मेरठ के डा. सुधाकराचार्य ने कहा कि रामेश्वरम की स्थापना में जिन पत्थरों के तैरने का प्रसंग आता है वे वास्तव में पत्थरों को काट-काट कर बीच में पोला कर करके पम्पन पुल के रूप में बनाया गया था। जहा पर बीच में शिलाओं को जोड़कर बनाया गया।
अमरोहा के डा. राम अवध शास्त्री ने कहा कि राम कथा का नया संदर्भ ग्रहण किया जाना चाहिये। लखनऊ की विद्या विदुषी ने लोक गाथाओं में फैले हुये मां सीता के चरित्र को रेखांकित करते हुये कहा कि सीता ने कई बार राम का प्रतिरोध करने का मन बनाया। जब तक नारियों और बेटियों को समान दर्जा नही दिया जाता तब तक रामायण की कथा का कोई मूल्य नही है। अयोध्या से आये डा. हरि प्रसाद दुबे, गौहाटी से डा. देवेन्द्र चंद्र दास, तिरूपति से आये डा. आर उस त्रिपाठी, भागलपुर से आयी डा. राधा सिंह, बांदा के डा. सीताराम विश्वबंधु, बांदा से आये रस नायक, आगरा से डा. सरोज गुप्ता, डा. ओम प्रकाश शर्मा, ग्वालियर श्री लाल पचौंरी, भोपाल से अवधेश कुमार शुक्ला आदि विद्वानों ने अपने विचार रखे।
एक दूसरी विद्वत गोष्ठी में वृन्दावन से आये दामोदर शर्मा, कानपुर से आये डा. यतीन्द्र तिवारी, मेरठ के नरेन्द्र कुमार, चित्रकूट की डा. कुसुम सिंह, डा. प्रज्ञा मिश्र, डा. मानस मुक्ता यशुमति ने भी श्री राम चरित मानस के नायक राम के विभिन्न स्वरूपों को सामने लाने का प्रयास किया।
संचालन डा. सीताराम विश्वबंधु ने किया।



डा. लोहिया की परिकल्पना से भटक गया रामायण मेला

संदीप रिछारिया, चित्रकूट : धर्म दीर्घकालीन राजनीति है। राजनीति अल्प कालीन धर्म। धर्म का काम है अच्छा करें और उसकी स्तुति करें। राजनीति का काम है बुराई से लड़े और उसकी निंदा करे। किंतु जब धर्म अच्छाई न कर केवल स्तुति भर करता है तो वह निष्प्राण हो जाता है और राजनीति जब बुराई से लड़ती नही तो वह कलंकित हो जाती है। पर यह सही है कि धर्म और राजनीति का अविवेकी मिलन दोनो को भ्रष्ट कर देता है। किसी एक धर्म को किसी एक राजनीति से नही मिलना चाहिये। इससे संप्रदायिक कट्टरता पनपती है। यह बातें चित्रकूट में रामायण मेला की कल्पना करने वाले समाजवादी आंदोलन के नायक डा. राम मनोहर लोहिया ने अपने घोषणा पत्र में लिखी थी। घोषणा पत्र में भले ही डा. लोहिया ने इसे राजनीति से सर्वथा अलग बताते हुये साफ तौर पर लिखा था कि रामायण मेले की पृष्ठभूमि में कोई राजनीतिक चाल नहीं है।

उनके शब्द थे कि 'मैं एक बात और स्पष्ट कर दूं कि चित्रकू ट के इस रामायण मेला से दल विशेष का संबंध नही है और न ही मेरी पार्टी सोसलिस्ट पार्टी से। हां सोसलिस्ट कार्यकर्ता जनहित का काम समझकर वैयक्तिक रूप में इसमें विशेष कार्य करें, उसी प्रकार वैयक्तिक रूप में कांग्रेस, कम्युनिष्ट व जनसंघ आदि पार्टियों से सम्बद्ध व्यक्ति भी रामायण मेला को कार्यान्वित करने में रूचि लें और सहयोग करें।'
कम्युनिष्टों से आज तक मेले में सहयोग लेने की कभी जरूरत नहीं समझी गई जबकि यहां के
सांसद और विधायक के पद पर कई बार भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के लोग विद्यमान रहे। जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के विपरीत जिसकी सरकार उसकी खुशामद के रूप मे यहां मामला चलता रहा। कांग्रेस के बाद भाजपा, सपा और बसपा के नेताओं को सरकारों के हिसाब से वरीयता दी गई। पिछले तीन सालों में रामायण मेला बसपा मय ही रहा। कुछ इसी तरह का हाल इस साल भी रहा। उद्घाटन सत्र पर पूर्व स्वागताध्यक्ष पूर्व सांसद भीष्म देव दुबे के पुत्र प्रदुम्न दुबे के अलावा मंच पर बसपा के अलावा किसी दूसरी पार्टी का कोई नेता नजर नहीं आया।
राष्ट्रीय रामायण मेले के 38 साल के सफरनामे पर भी नजर डाली जाये जो इस बात की पुष्टि होती है कि एक बार प्रधानमंत्री के रूप में मोरार जी देसाई तो विदेश मंत्री के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के अलावा राज्यपालों व राज्यमंत्रियों, कुलपतियों ने समय-समय पर उद्घाटन और समापन किया। जबकि सत्ता से अलग रही दूसरी पार्टियों के राजनेताओं और जिला स्तर के नेताओं को भी इस विशेष सम्मेलन में वरीयता नही दी गई। इस बार के आयोजन में उद्घाटन सत्र से लेकर अभी तक के कार्यक्रमों में बसपा नेताओं के अलावा सपा व भाजपा के नेताओं की मौजूदगी उस महामहोत्सव के दौरान बिल्कुल नहीं दिखी जिसे चित्रकूट का विकास का पर्याय माना जाता है।
गौरतलब है कि जब डा. लोहिया ने राष्ट्रीय रामायण मेला का पूरा कार्यक्रम तैयार कर घोषणा पत्र इसके आयोजकों को समर्पित किया था उनके जेहन में इस बात को लेकर बात साफ थी कि आने वाला समय चित्रकूट का होगा। रामायण मेला अगर उत्तरोत्तर प्रगति करता गया तो इससे चित्रकूट का विकास होगा। भौतिक संसाधन बढे़गे और यहां की गरीबी भी दूर होगी। पर क्या वास्तविकता में ऐसा हो पाया है?
सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राजबहादुर यादव, कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष पुष्पेन्द्र सिंह, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष लवकुश चतुर्वेदी व सपा नेता कमल सिंह मौर्या इस मुद्दे पर एक राय होकर कहते हैं कि रामायण मेला से वास्तव में चित्रकूट को एक नई पहचान मिली है पर यह तो अब पूरी तरह से वंशवाद का अखाड़ा बन गया है। यहां साल भर में शादियों, राम व भागवत कथाओं व अन्य आयोजनों के जरिये लाखों की आमदनी होने के बावजूद इसके संचालकों द्वारा मेले के आयोजन के लिये धनाभाव या सरकार की ओर से अनुदान कम मिलने की बात कहना हास्यास्पद लगता है। आयोजक धनाभाव बताकर अच्छे कार्यक्रम निरस्त कर लोगों की भावनाओं पर तुषाराघात कर रहे हैं।

Saturday, March 5, 2011

केंद्र सरकार से चित्रकूट का वैभव बचाने की अपील

राष्ट्रीय रामायण मेले के 38 वें संस्करण के शाम की विद्वत गोष्ठी विद्वानों ने चित्रकूट को ही समर्पित कर इसके अलग स्वायत्तशाषी राज्य बनाये जाने की वकालत की।

बांदा से आये हिंदी के विद्वान डा. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने कहा कि चित्रकूट की संस्कृति तो सिंधु घाटी की सभ्यता से पुरानी है। इसे काल के अंतराल में बांटने का काम कोई कर ही नही सकता। आवश्कता तो इस क्षेत्र में अभी और उत्खनन के कार्य करके पुराने रहस्यों को उजागर करने की है। उन्होंने अद्भुत, अनोखे और अलौकिक इस परिक्षेत्र को राज्यों की मांग के बीच पिसने के कारण बर्बादी की कगार पर पहुंचने की बात कहते हुये कहा कि चित्रकूट में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश है चित्रकूट सबका है। इसे सबका रहने दिया जाये। केंद्र सरकार इसे सीधे अपने संरक्षण में लेकर इसका समुचित विकास करे तभी पूरे विश्व को यहां के बारे में सही जानकारी मिल सकेगी व उसका फायदा मिलेगा।
उन्होंने कविता के रूप में परिभाषित करते हुये कहा कि 'ऋषि राम रहीम जहां पर पैयस्वनी का जल है, संस्कृतियों के संगम वाला चित्रकूट स्थल है।' यह सृष्टि का सार्वभौमिक महत्व का अरण्य तीर्थ है। इसकी प्राकृतिक संपदा इसकी सौन्दर्य छवियां विश्व में सर्वाधिक मनोहारी है। चित्रकूट की संस्कृति जनवादी लोक व्यापी एवं त्याग तपस्या पर आधारित रही है। सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राचीन पयस्वनी घाटी की सभ्यता या चित्रकूट की सभ्यता अनुसंधान का विषय है। यहां की आग्नेय घाटी ज्वालामुखी, जल उद्गम्य श्रोत, पर्वतों से निकलने वाली जल धारायें झरने सभी कुछ आदिम और नैसर्गिक रूप को अभी भी सुरक्षित हैं। ऐसे में आवश्यकता है चित्रकूट को स्वायत्तशाषी क्षेत्र बना देने की। जो राजनीति से सर्वथा मुक्त हो। जिसका भूगोल, इतिहास, संस्कृति, भाषाई सौहार्द एवं इस धरती में आने वाले विभिन्न संप्रदायों एवं मत-मतान्तरों से ऊपर उठकर एक सर्वव्यापी संस्कृति का स्वर प्राणवान हो सके। चित्रकू ट की संस्कृति जोड़ने वाली है तोड़ने वाली नही, राम राज्य की मूल परिकल्पना लोक तंत्र की अवधारणा के बीच सबसे पहले इस धरती पर अवतरित हुई। जहां राज सत्ता पर चरित्र की विजय हुई जहां राम राज्य मुकुट उतारकर नंगे पांव परिभ्रमण करते हैं जहां आकांक्षाओं के अनुरूप दलितों, नारियों और वनवासियों की पीड़ा को अपनत्व प्रदान करते हैं। यही वह संस्कृति का स्थान है जो चित्रकूट को विश्व के सबसे प्रथम स्वतंत्र और सर्वोपरि महत्व प्रदान करती है।
अयोध्या से पधारे संत फलाहारी महराज ने कहा कि राम दलितों और निर्धनों के सम्बल बनकर चित्रकूट में आये। रामायण मेला के आयोजन के लिये डा. लोहिया ने चित्रकूट को इसलिये चुना कि वे यहां से एक लोक संस्कृति का नया संदेश दे सकें। जब तक जनता का मनोबल ऊंचा नहीं होगा और शोषण से मुक्ति नही मिलेगी तब तक हमारा प्रयास चलता रहेगा। मेरठ के डा. सुधाकराचार्य ने कहा कि रामेश्वरम की स्थापना में जिन पत्थरों के तैरने का प्रसंग आता है वे वास्तव में पत्थरों को काट-काट कर बीच में पोला कर करके पम्पन पुल के रूप में बनाया गया था। जहा पर बीच में शिलाओं को जोड़कर बनाया गया।
अमरोहा के डा. राम अवध शास्त्री ने कहा कि राम कथा का नया संदर्भ ग्रहण किया जाना चाहिये। लखनऊ की विद्या विदुषी ने लोक गाथाओं में फैले हुये मां सीता के चरित्र को रेखांकित करते हुये कहा कि सीता ने कई बार राम का प्रतिरोध करने का मन बनाया। जब तक नारियों और बेटियों को समान दर्जा नही दिया जाता तब तक रामायण की कथा का कोई मूल्य नही है। अयोध्या से आये डा. हरि प्रसाद दुबे, गौहाटी से डा. देवेन्द्र चंद्र दास, तिरूपति से आये डा. आर उस त्रिपाठी, भागलपुर से आयी डा. राधा सिंह, बांदा के डा. सीताराम विश्वबंधु, बांदा से आये रस नायक, आगरा से डा. सरोज गुप्ता, डा. ओम प्रकाश शर्मा, ग्वालियर श्री लाल पचौंरी, भोपाल से अवधेश कुमार शुक्ला आदि विद्वानों ने अपने विचार रखे।
एक दूसरी विद्वत गोष्ठी में वृन्दावन से आये दामोदर शर्मा, कानपुर से आये डा. यतीन्द्र तिवारी, मेरठ के नरेन्द्र कुमार, चित्रकूट की डा. कुसुम सिंह, डा. प्रज्ञा मिश्र, डा. मानस मुक्ता यशुमति ने भी श्री राम चरित मानस के नायक राम के विभिन्न स्वरूपों को सामने लाने का प्रयास किया।
संचालन डा. सीताराम विश्वबंधु ने किया।





Thursday, February 3, 2011

स्‍वामी कामतानाथ जी महाराज

चित्रकूट के घाट पर..

प्रागैतिहासिक काल की गुफाओं, झरनों, उच्च शैल शिखरों व हैरान करने वाली कंदराओं के बीच चित्रकूट आज भी विश्वयुगीन समस्याओं के समाधान के केंद्र के रुप में विख्यात है। कर्मकांडीय ब्राहमण हों या फिर राजसत्ता भोगने वाले- सभी यहां आकर नैसर्गिक प्राकृतिक हास्य को देखकर अपनी सुधबुध खो बैठते हैं। शैव, शाक्य, वैष्णव, जैन, प्रणामी संप्रदाय के साथ ही बौद्धों की श्रद्धा का केंद्र चित्रकूट आज भी अपने अतीत के वैभव को जीता सा दिखाई देता है। मुगलिया सल्तनत के दौरान शहंशाह अकबर के दरबार के नौरत्नों में से प्रमुख संगीत सम्राट तानसेन व राजा बीरबल का संबंध भी यहां से रहा है। भक्तिकाल के प्रमुख कवि अब्दुल रहीम खानखाना ने तो अपने बुरे दिनों में यहां पर आकर भाड भूजनें का काम भी किया है। उनके लिखे- चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश, जापर विपदा परत है सो आवत यहि देश, को आज कौन नही जानता।
धार्मिक स्थल
स्वामी कामतानाथ का मंदिर व परिक्रमा: मान्यताओं के अनुसार आदिकाल में पर्वत से निकलकर प्रभु कामदनाथ विग्रह के रूप में प्रकटे। मानवी काया के अनुसार उनके मुख पर दांत भी हैं। सात शालीग्राम रूपी दांतों में पांच का पूजन रोजाना किया जाता है। साढे पांच किलोमीटर की परिक्रमा मुख्य द्वार से प्रारंभ होती है। चारों दिशाओं में चार द्वार हैं जिनमें विग्रह विराजमान हैं। इसके साथ ही अलौकिक छटायुक्त पर्वत के चारों ओर शनि मंदिर, महलों वाले मंदिर के पीछे गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लगाया गया पीपल का वृक्ष, उनके द्वारा लिखी गई रामचरितमानस की हस्तलिखित प्रति, मां पयस्वनी का उद्गम स्थल, ब्रह्मकुंड, साक्षी गोपाल, कामधेनु, भरत मिलाप, रामबन पथ गमन स्थल ,लक्ष्मण पहाडी, स्वर्गाश्रम पीलीकोठी, बरहा के हनुमान जी, सरयू धारा आदि स्थान यहां पर देखने योग्य हैं।
मंदाकिनी के घाट:
 वैसे तो मंदाकिनी अनुसुइया के जंगलों से निकलती हैं। लेकिन इसके बहाव के स्थानों पर अलग-अलग घाट अपनी अलग विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध हैं। टाठी घाट जंगलों के मध्य स्थित देवरहा बाबा की साधना का स्थल माना जाता है। यहां की धारा में थाली घूमने लगती है। सर्वाधिक लोकप्रिय स्थल राघव प्रयाग घाट व रामघाट, भरत घाट है। राघव प्रयाग घाट पर सरयू व पयस्वनी का संगम है। यहां पर राम ने अपने पिता दशरथ का पिंड तर्पण किया था। इसके साथ ही यहां पर चित्रकूट के क्षेत्राधिपति स्वयं शंकर स्वामी मत्स्यगयेन्द्र नाथ के विग्रह के रूप में विराजमान हैं। इसके साथ ही स्फटिक शिला पर राम ने मां जानकी का पुष्पों से श्रंगार किया था। यह विशालकाय शिला आज भी अपने पूरे वैभव के साथ मौजूद है। इसके साथ ही जानकीकुंड, पंचवटी घाट, प्रमोदवन घाट, सूरजकुंड का घाट जहां मां मंदाकिनी पश्चिम मुखी हो जाती हैं देखने योग्य हैं।
अनुसुइया आश्रम: महर्षि कर्दम की पुत्री और महर्षि अत्रि की पत्नी महासती अनुसुइया का विशाल गुरुकुल वाला स्थान धर्मनगरी से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। यहां पर नैसर्गिक प्राकृतिक सुषमा से युक्त पर्वत व झरनों के साथ सुगंधित जडी बूटियों के पहाड लोगों का मन मोह कर एक नया उत्साह प्रकट करते हैं। यहां पर योगिनी शिला, हनुमान मंदिर, वनवासी राम मंदिर, परमहंस आश्रम आदि दर्शनीय हैं। इसके साथ ही मां मंदाकिनी की सैकडों धाराओं को यहां से निकलते देखा जा सकता है।
अमरावती: राम अपने कुल के पहले चित्रकूट आने वाले वनवासी नही थे। इस बात का प्रमाण आम के वृक्षों की अमराई वाले अमरावती में दिखाई देता है। दृष्टांतों के आधार पर राम की दसवीं पीढी के पूर्वज अयोध्या नरेश महाराज अम्बरीश ने यहां पर आकर कठोर तप किया था। यह स्थान अनुसुइया आश्रम से लगभग तीन किलोमीटर दूर जंगलों के बीच में दुर्गम है।
भभका उद्गम: यह स्थान भी अनुसुइया आश्रम से लगभग दो किलोमीटर दूर झूरी नदी का उद्गम स्थल है। यह स्थान गुरु गोरखनाथ की प्राचीन तपस्या स्थली माना जाता है।
गुप्त गोदावरी: प्रकृति की अनमोल धरोहर गुप्त गोदावरी ऐसा स्थान है जहां पर आकर पर्यटक अपनी सुधबुध खो देता है। प्रकृति की विलक्षण कारीगरी वाली गुफाओं में नक्काशी देखते ही बनती है। एक गुफा तो सूखी है। यहां पर गोदावरी मां के साथ ही अन्य देवता गण स्थापित है और यहां पर राजा इंद्र का पुत्र जयंत खटखटा चोर के रूप में आज भी लटका हुआ है। गोदावरी धारा की विशाल जलराशि वाली दूसरी गुफा से जल निकलकर बाहर कुंड के बाद दिखाई नही देता इसका रहस्य अभी सामने नही आया है।
हनुमान धारा: रामघाट से तीन किलोमीटर दूर पर्वत श्रेणी पर विराजमान हनुमान के हाथों से निकलने वाली धारा का दृश्य अत्यंत मनोहारी है। इसके स्थान के ठीक ऊपर सीता रसोई है। हनुमान धारा के नीचे नरसिंह धारा, पंचमुखी हनुमान मंदिर है। रामघाट से हनुमान धारा जाने के बीच में ही वनदेवी नामक विलक्षण स्थान है।
और भी हैं विलक्षण स्थान
जहां चित्रों के कूट चित्रकूट के दस किलोमीटर के क्षेत्रफल में तमाम मंदिरों के समूह हैं। वहीं धार्मिक, ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक काल के तमाम स्थान अवलोकनीय है।
वाल्मीकि आश्रम लालापुर: महर्षि वाल्मीकि की तपस्थली लालापुर चित्रकूट से इलाहाबाद जाने के रास्ते पर मिलती है। झुकेही से निकली तमसा नदी इस आश्रम के समीप से बहती हुई सिरसर के समीप यमुना में मिल जाती है। पूरी पहाडी पर अलंकृत स्तंभ और शीर्ष वाले प्रस्तर खंड बिखरे पडे हैं जिनसे इस स्थल की प्राचीनता का बोध होता है। इस गुफा में श्वेतवर्ण से अंकित ब्राही लिपि भी मिल चुकी है। चंदेलकालीन आशांबरा देवी का मंदिर इसी स्थान पर है और कहा जाता है कि यही पर स्वामी प्राणनाथ को दिव्य ज्ञान की अनुभूति हुई थी। उन्होंने बाद में पन्ना नगरी में जाकर प्रणामी संप्रदाय की शुरुआत की।
रसियन: चित्रकूट से इलाहाबाद जाते समय मऊ से उत्तर दिशा में 14 किलोमीटर दूर रसियन नामक स्थान पडता है। चौरासी हजार देवताओं की साधनास्थली के बारे में कहा जाता है कि पूज्य देवरहा बाबा ने यहां पर उग्र तप किया था। वैसे यह स्थान चित्रकूट धाम का प्रवेश द्वार भी माना जाता है। बाणासुर की धर्मपत्‍‌नी बरहा के नाम पर गांव का नाम ही बरहा कोटरा रख दिया गया था। प्रख्यात शिव मंदिर के ध्वंसावशेष यहां पर बिखरे पडे दिखाई देते हैं। इस मंदिर का सूक्ष्म अलंकरण और भव्य वास्तुकला विस्मित कर देती है। पुरातत्वविद बाणासुर के दुर्ग के पास बने बांध के ध्वंसावशेषों को सिंधु काल की सभ्यता के समकालीन बताते हैं। मन को विस्मित कर देने वाले इस स्थान पर जाते ही अद्भुत शांति का अनुभव होता है। वैसे यहां पर पास ही पहाडी पर आदि काल के मानव-निर्मित शैल चित्रों के साथ ही बौद्ध मूर्तियों के भग्नावशेष भी देखने योग्य हैं। जाने का दुर्गम रास्ता और शासन के ध्यान न देने के कारण पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान लगभग उपेक्षित सा ही है।
बांकेसिद्ध, कोटितीर्थ, देवांगना: चित्रकूट की पंचकोसी यात्रा का प्रथम पडाव अनुसुइया के भ्राता सांख्यदर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल का स्थान बांकेसिद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। इस गुफा में जहां बीस हजार वर्ष पूर्व के शैल चित्र विद्यमान हैं जो अब मानव भूलों के कारण अंतिम सांसे ले रहे हैं। साल भर गंधक युक्त झरनों और विशेष किस्म के फूलों से सुशोभित इस स्थान को चित्रकूट का हृदय कहा जाता है। देवांगना में भी झरने और पुष्पों की लताओं से लदे पेड दर्शनीय है कोटितीर्थ और पंपासर में हनुमान मंदिर आज भी लाखों लोगों की आस्था का केंद्र हैं। इसके आगे पर्वतीय मार्ग पर सरस्वती नदी, यमतीर्थ, सिद्धाश्रम, गृधाश्रम, मणिकर्णिका आश्रम इत्यादि हैं। पास ही मध्य में चंद्र, सूर्य, वायु, अग्नि और वरुण तीर्थ मिलते हैं। इन पांच देवताओं के यहां पर निवास करने के कारण इसे पंचतीर्थ कहते हैं और कुछ ही दूरी पर ब्रह्मपद तीर्थ है।
मडफा: चित्रकूट से बीस किलोमीटर दूर घुरेटनपुर के पास पर्वत पर भगवान शंकर अपने पंचमुखी रूप में सशरीर विद्यमान हैं। किंवदती के अनुसार ऋषि मांडव्य की इस तपस्थली में महाराज दुष्यंत की पत्‍‌नी शकुंतला ने पुत्र भरत को जन्म दिया था। चंदेलकालीन वैभवशाली नगर के ध्वंशावशेष यहां पर बिखरे पडे दिखाई देते हैं। जैन धर्म के प्रर्वतक आदिनाथ के साथ ही अन्य जैन मूर्तियां यहां अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं। अत्रि आश्रम: महर्षि वाल्मीकि और महाकवि कालीदास ने इस स्थान का काफी रोचक वर्णन अपने ग्रंथों में किया है। चित्रकूट से लगभग 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में मंदाकिनी के किनारे अत्रि-अनुसुइया और उनके पुत्र चंद्रमा, दत्तात्रेय व दुर्वासा के स्थान हैं। यहां पर पाए जाने वाले शैलचित्र इसे पुराप्राचीन काल का घोषित करते हैं। मंदाकिनी नदी के उत्तरी किनारे पर भवनों के ध्वंसावशेष मिलते हैं जो कुलपति कण्व के आश्रम के माने जाते हैं। इस आश्रम की निकटवर्ती पहाडियों पर काफी मात्रा में शैलाश्रय और उनमें रामकथाश्रित शैलचित्र प्राप्त हुए हैं। सप्तर्षियों में सम्मिलित महर्षि अत्रि का विद्यापीठ प्राचीन भारत के महान विद्यापीठों में गिना जाता है। यहां से दंडकारण्य की सीमा प्रारंभ हो जाती है और तीन मील दूर एक झरना और हनुमान जी की मूर्ति प्रतिष्ठित है यहीं पर विराध कुंड है।
शरभंग आश्रम: सतना के वीरसिंहपुर से लगभग 12 किलोमीटर दूर यह स्थान राम और ऋषि शरभंग के अद्भुत मिलन का स्थल है। यहीं पर भगवान विष्णु से कुपित होकर ऋषि ने अपने शरीर का हवन किया था। यहां पर दो दिव्य कुंड हैं जो ऋषि शरभंग के तप बल की पुष्टि करती है। विराध कुंड की गहराई मापने के कई प्रयास हो चुके हैं पर अभी तक इसमें सफलता नही मिली है।
राजापुर: यमुना के किनारे बसी गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज की जन्म स्थली। राम बोला से तुलसीदास जी ने जब रत्नावली के द्वारा ज्ञान प्राप्त किया तो चित्रकूट में आकर गुरु से दीक्षा लेकर रामचरितमानस के साथ ही अनेक ग्रंथ अपने आराध्य राम के बारे में लिख डाले। यहां पर उनके द्वारा स्थापित संकटमोचन हनुमान मंदिर व उनके द्वारा पूजित लगभग 15 किलोमीटर दूर नांदी के हनुमान जी का मंदिर दर्शनीय है। वैसे पहाडी के पास ही साईपुर में दाता साई का मंदिर व स्थान दर्शनीय है। यहां पर हिंदू और मुस्लिम एकता को बढाने वाला मेला लगता है।
कैसे पहुंचे
चित्रकूट के लिए कर्वी निकटतम रेलवे स्टेशन है। यह दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बनारस, लखनऊ, भोपाल, जबलपुर व रायपुर से सीधा जुडा हुआ है। चित्रकूट से 30 किलोमीटर दूर माणिकपुर जंक्शन भी है। यहां से देश के अन्य भागों के लिए ट्रेने मिलती हैं। इसके साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग 76 पर कर्वी का बस स्टाप है यहां से लखनऊ, बनारस, कानपुर, इलाहाबाद आदि स्थानों के लिए सीधी बस सेवा है। वैसे जानकीकुंड में भी अन्तर्राज्यीय बस स्टैंड हैं। यहां से सतना, रीवा, जबलपुर, पन्ना, मैहर आदि के लिए बसें मिलती हैं। निकटतम हवाई अड्डा खजुराहो, लखनऊ व बनारस हैं। इसके अलावा टैक्सी सेवा हर समय यहां पर मिलती है।
कहां रुकें
चित्रकूट में रुकने के लिए वैसे तो तमाम धर्मशालाएं, लॉज और यात्री निवास हैं। इनमें प्रमुख उप्र और मप्र के टूरिस्ट बंगले, जयपुरिया स्मृति भवन, कामदगिरि भवन, विनोद लाज, पंचवटी ,रामदरबार होटल आदि हैं। वैसे हर मठ और मंदिर ने भी अपने गेस्ट हाउस बना रखे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का विश्राम गृह कर्वी में जबकि मप्र सरकार का विश्राम गृह सिरसावन में है।
घूमने का मौसम
वैसे तो वर्ष भर यहां पर घूमने का मौसम रहता है। पर जुलाई से लेकर मार्च-अप्रैल तक का समय पर्यटकों व दर्शनार्थियों के लिए ज्यादा मुफीद बताया जाता है।
सुतीक्षण आश्रम: वीरसिंहपुर से 10 किलोमीटर दूर यह स्थान शातकर्णी ऋषि के पंचाप्सर तीर्थ और शरभंग आश्रम के मध्य स्थित है। सुतीक्षण के भाई अगस्त्य ऋषि का आश्रम यहां से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है। इस स्थान को ब्रह्म लोक के समान पवित्र कहा गया है।
सरहट: चित्रकूट से तीस किलोमीटर दूर मानिकपुर के पास सरहट नामक स्थान पर प्राचीनतम शैलचित्र भारी संख्या में मौजूद हैं। ये तीस हजार साल पुराने बताए जाते हैं। सरहट के पास ही बांसा चूहा, खांभा, चूल्ही में भी इस तरह के शैलचित्र मिलते हैं। सरहट के 20 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में करपटिया में 40 शिलाश्रयों का समूह दर्शनीय है।
भरतकूप व रामशैया: चित्रकूट से लगभग 15 किलोमीटर दूर इस स्थान पर राम के राज्याभिषेक के लिए लाए गए सभी नदियों व सरोवर के पवित्र जल को एक कुंए में डाल दिया गया था। यह स्थान दर्शनीय है। यहीं पास में रामशैया नामक स्थान भी है। कहा जाता है कि यहां पर राम ने चित्रकूट में पर्दापण करने के बाद पहली रात्रि का विश्राम किया था। शिवरामपुर के पास पथरौंडी गांव की पहाडी पर भी दाता साई का स्थान है। यहां के बारे में मान्यता है कि जो भी संत इस गद्दी पर विराजमान होता है वह अपनी पूरी जिंदगी पहाड से नीचे नही उतरता। सूरजकुंड: सूर्य भगवान के तप्त वेग के प्रभाव से जहां मंदाकिनी भी पश्चिम मुखी होकर बहने लगती है। सूर्य का प्रभाव यहां पर पत्थरों में नजर आता है। अपने ताप से बचने के लिए ब्राह्मणों को छाता और जूता दान देने की प्रक्रिया की शुरुआत करने वाला स्थान।
धारकुंडी: चित्रकूट से लगभग पचास किलोमीटर दूर जंगलों के मध्य दिव्य स्थान। यहां पर अघमर्षण कुंड पर महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा यक्ष के प्रश्नों के उत्तर देने के साथ ही स्थानीय जाति की राजकुमारी हिडिंबा का विवाह भीम के साथ होने की कथा कही जाती है। गंधक के साथ ही अन्य जडी बूटियों से मिश्रित झरने के पानी के स्नान व सेवन को चर्म रोगों से मुक्ति का साधन भी माना जाता है।
अन्य दर्शनीय स्थान
बाला जी का मंदिर: चित्रकूट में मंदाकिनी के किनारे शहंशाह औरंगजेब के द्वारा बनवाया गया बाला जी का मंदिर दर्शनीय है।
गणेश बाग: मुंबई में बेसिन की संधि के बाद यहां की जागीर मराठों को देने के बाद उनके वंशज अमृतराय द्वारा बनवाया गया शिल्प का अद्भुत नमूना, इसे मिनी खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है। यहां की सात खंडों की बावली भी दर्शनीय है।
तरौंहा का किला व झारखंडी मां का मंदिर: सुर्की राजवंश की अमर कहानी कहता यह किला कर्वी के तरौंहा में स्थित है। वैसे अब तो यह किला बदहाल है पर यहां की वादियों में इतिहास का पूरा एक अध्याय सांस लेता है। बीरबल हों या तानसेन दोनो ही यहां के सुर्की सम्राट राजा राम कृष्ण जूदेव के दरबार से दिल्ली गए थे। यहीं पर मां झारखंडी देवी का मंदिर भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह देश के 51 शक्तिपीठों में एक है।
चर का सोमनाथ मंदिर: सोमनाथ के मंदिर की तर्ज पर नाम पर बना शिल्प कला का अद्भुत नमूना। यहां पर शिव लिंग के अनेक प्रकार लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इसके साथ ही दशरथ घाट व कलवलिया का शिव मंदिर भी दर्शनीय है।
चित्रकूट में यहां-यहां पडे राम चरण
जिले के प्रवेश द्वार मुरका नामके गांव का माना जाता है। यहां पर सर्वप्रथम राम के चरण पडे। इसके बाद ऋषियन व सीतापहाडी पर विश्राम करने के बाद व यमुना नदी के गरौली घाट पर आए। यहां पर तेहि अवसर एक तापस आवा वाली घटना हुई। रामनगर के कुमार द्वय तालाब पर स्नान करने के बाद रैपुरा पहुंचे। कहा जाता है कि यहां पर श्रीराम ने अयोध्या से निकलने के बाद पांचवी रात्रि का विश्राम किया। चित्रकूट में प्रवास के दौरान उन्होंने मांडव्य ऋषि के आश्रम मडफा, भरतकूप, अमरावती, विराध कुंड, पुष्करणी सरोवर, मांडकर्णी आश्रम, श्रद्धा पहाड सहित अन्य स्थानों का भ्रमण किया।
लुप्तप्राय स्थान: सुभद्रक कुंड, सर्वतोभद्र कुंड, मणि भद्रक तीर्थ, आर्वे आश्रम, काम स्थान, मंडल तीर्थ, गौरी देवी स्थान, योगिना देवी, भार्गव तीर्थ, सावित्री देवी, दिव्य साकेत, महामाया पीठ, शीतला पीठ, मारकुंडी, वन देवी, हंस तीर्थ, फलकी वन, तुंगारण्य, व्यास कुंड, सारंग ऋषि आश्रम, ब्रहस्पति कुंड।
विशेष स्थान: मारकुंडी के निकट पर्वतों के बीच में चट्टानों से निर्झरित होती विशाल जलराशि जब विशालकाय कुंड में गिरती है तो उसे देखकर लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं। शबरी प्रपात के नाम से विख्यात विशाल कुंड और झरना बाहर से आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेता है। यह स्थान शासन की उपेक्षा के चलते अभी ज्यादा ख्याति अर्जित नही कर सका है। अगर इस स्थान पर शासन स्तर पर ध्यान दिया जाए तो यह विशेष स्थान न केवल बाहर से आने वालों के लिए एक विशेष स्थान सिद्ध होगा बल्कि गरीब ग्रामवासियों के लिए रोजगार के साधन मुहैया कराने का भी बडा काम करेगा।
इन स्थानों के अतिरिक्त तमाम और स्थान चित्रकूट के ऊपर लिखे गए लगभग पांच सौ ग्रंथों व पुस्तकों में हैं जिनके बारे में अब जानकारी नही मिलती है।

लेख व फोटो: संदीप रिछारिया
दैनिक जागरण यात्रा से साभार
दिनांक 30 .1. 11